समय के साथ युग को भांपकर दृढ़ पग बढ़ाओ
चुनौती आ पड़े तो चिंतना में गुनगुनाओ
न भ्रम भय और हिम्मत की नहीं कोई कमी हो
विजय पथ पर कदम के साथ विजयी गीत गाओ
प्रस्तुत है अप्रतिपक्ष ¹ आचार्य श्री ओम शङ्कर जी का आज चैत्र कृष्ण पक्ष तृतीया विक्रमी संवत् २०८० तदनुसार 28 मार्च 2024 का सदाचार संप्रेषण
९७३ वां सार -संक्षेप
1 अनुपम
इन सदाचार संप्रेषणों के विचार अद्भुत हैं हमारे लिए ये लाभकारी तभी हैं जब हम इन्हें क्रिया में परिवर्तित करें
आनन्द और उत्साह के साथ हमें अपने लक्ष्य (सामान्य या परम )की प्राप्ति हेतु आगे बढ़ते रहना चाहिए बड़े से बड़े संकट आने पर भी
लक्ष्य न ओझल होने पाए, कदम मिलाकर चल ।
मंजिल तेरे पग चूमेगी, आज नहीं तो कल ॥
यही रामत्व है
किसी भी प्रकार से मन में दंभ न रखते हुए दंभी का अवसान -संकल्प रामत्व है यह है भारतीय मनीषा का चिन्तन- पथ
और इससे विपरीत रावणत्व देखिए
छुधा छीन बलहीन सुर सहजेहिं मिलिहहिं आइ।
तब मारिहउँ कि छाड़िहउँ भली भाँति अपनाइ॥ 181॥
भूख से दुर्बल और बलहीन होकर सुर आसानी से आ मिलेंगे। तब या तो उनको मैं मार डालूँगा अन्यथा भली-भाँति अपने अधीन करके छोड़ दूँगा
निराशा में आशा की किरण दिखाती आचार्य जी द्वारा रचित निम्नांकित पंक्तियां देखिए
मैं कौन हूं क्या हूं कहां हूं और क्या करना मुझे
सच बताऊं कुछ नहीं जाना बताऊं क्या तुझे
जन्म जीवन जागरण से शयन तक का सिलसिला
सतत चलता चल रहा है एक एकल काफिला
काफिले से छूटना भयभीत कर देता मुझे
हे प्रभु आनन्ददाता ज्ञान फिर कुछ दीजिए
मानसिक और भावनात्मक शांति देने वाला अध्यात्म सदैव शौर्य से प्रमंडित होना चाहिए
आंख हर दर पर मनस् हो एक दर पर
आत्म का विस्तार जग भर के बशर पर
पर भरत -भू की प्रथा यह भी रही है
वज्र का आघात हरदम ही कहर पर
हम यह भ्रम न पालें कि हर पुस्तक ज्ञान की गंगा है आचार्य जी ने यह सुस्पष्ट किया कि कला जीवन के लिए होनी चाहिए और अवतारवाद के पीछे का उद्देश्य बताया हम दशावतार ही देख लें
एक परिस्थिति के अनुसार परमात्मा का स्वरूप इस सृष्टि के संरक्षण परिरक्षण संवर्धन और दिशा -दृष्टि देने हेतु अवतार के रूप में प्रकट होता है
अवतारवाद भ्रम नहीं है हमें परशुराम के लिए भ्रमित किया गया
शौर्यप्रमंडित अध्यात्म में क्षात्र -धर्म और ब्राह्मण- धर्म साथ साथ चलते हैं
आचार्य जी ने अपने दीनदयाल विद्यालय में रसायन विज्ञान के आचार्य श्री कोहली जी के प्रसंग का उल्लेख करते हुए क्षात्र -धर्म और छात्र -धर्म में सामञ्जस्य को अनिवार्य बताया इसी सामञ्जस्य का एक उदाहरण निम्नांकित है
धर्मरक्षक प्रतापी संत परशुराम देव ने अपने तपोबल से राजस्थान में फकीरों के हिन्दू विरोधी उन्माद का पर्याप्त मात्रा में शमन किया था
इसके अतिरिक्त जयपुर से आमेर मार्ग पर क्या बना है जिसे हमें देखना चाहिए आदि जानने के लिए सुनें