*९७४ वां* सार -संक्षेप
1 दानशील
स्थान :उन्नाव
यह सदाचार संप्रेषण रूपी आनन्दार्णव हमारा भय भ्रम हमारी व्याकुलता समाप्त करने में सक्षम है हमें इसका लाभ उठाना चाहिए
संगठन में शक्ति है मिलकर चलने में हम सफल सशक्त उद्यमी उत्साहित रहेंगे आचार्य जी ने परामर्श दिया कि अच्छे विचारों की चर्चा अवश्य करें नई पीढ़ी का भी मार्गदर्शन करें
यदि संसार के कार्यव्यवहार के साथ चिन्तन मनन विचार भी बना रहेगा तो हमारा उत्कर्ष अवश्य होगा
हम अणुआत्मा हैं और विभुआत्मा से हमारा संबन्ध है
ब्रह्मसत्यं जगन्मिथ्या जीवो ब्रह्मैव नापर: अर्थात् ब्रह्म सत्य है और जगत् मिथ्या
लेकिन मिथ्या और सत्य का सम्बन्ध बड़ा अद्भुत है
जीव ही ब्रह्म है इसके अतिरिक्त कुछ नहीं । भगवान् शङ्कराचार्य के अद्वैत दर्शन का यही मूल आधार है ।
रामानुजाचार्य कहते हैं जगत् ब्रह्म का शरीर है
शरीर मिथ्या है शरीरी मिथ्या नहीं
किसी की मृत्यु पर हम कहते हैं वो चले गए जब कि शरीर तो पड़ा हुआ दिख रहा है
मध्वाचार्य कहते हैं ब्रह्म सत्य है किन्तु जड़त्व के कारण वह परतन्त्र है वल्लभाचार्य के अनुसार जगत् कार्य है और ब्रह्म कारण
यह भिन्नता भी अद्भुत है
तर्कोऽप्रतिष्ठः श्रुतयो विभिन्ना, नैको ऋषिर्यस्य मतं प्रमाणम् ।
धर्मस्य तत्त्वं निहितं गुहायां, महाजनो येन गतः स पन्थाः ।। { महाभारत-वनपर्व ~ ३१३-११७ }
परशुराम अवतार अद्भुत है
अग्रत: चतुरो वेदा: पृष्ठत: सशरं धनु:।
इदं ब्राह्मं इदं क्षात्रं शापादपि शरादपि।।
चार वेद मौखिक हैं अर्थात् पूर्ण ज्ञान , पीठ पर धनुष बाण हैं अर्थात् शौर्य कहने का तात्पर्य है कि यहां ब्राह्मतेज एवं क्षात्रतेज दोनों ही हैं। जो भी इनका विरोध करेगा, उसे शाप देकर अथवा शर (बाण) से परशुराम पराजित करेंगे, ऐसी है उनकी विशेषता
गीता में
विद्याविनयसंपन्ने ब्राह्मणे गवि हस्तिनि।
शुनि चैव श्वपाके च पण्डिताः समदर्शिनः।।5.18।।
ज्ञानी महापुरुष विद्या और विनय से युक्त ब्राह्मण (जिसमें भान है लेकिन अभिमान नहीं )में, चाण्डाल में, गाय, हाथी, कुत्ते में भी समरूप परमात्मा को देखने वाले होते हैं।
कठोपनिषद् के अनुसार
ब्रह्म और जीव का संबन्ध धूप और छाया की तरह है (छाया और अंधकार में अन्तर है)
धर्म के दस लक्षणों का उल्लेख करते हुए आचार्य जी ने भावना कामना वासना में अन्तर बताया इसी प्रकार शौर्य निराशा का अन्तर स्पष्ट किया मोह त्याग का मूल भी है यह बताया स्पर्धात्मक चिन्तन को भी सुस्पष्ट किया
इसके अतिरिक्त आचार्य जी ने भैया अमित गुप्त जी का नाम क्यों लिया
आचार्य जी आज उन्नाव क्यों आये हैं जानने के लिए सुनें