शिक्षित व्यक्ति अगर व्याकुल है, तो वह अशिक्षित है.....
प्रस्तुत है अप्रमाद ¹ आचार्य श्री ओम शङ्कर जी का आज चैत्र कृष्ण पक्ष षष्ठी विक्रमी संवत् २०८० तदनुसार 31 मार्च 2024 का सदाचार सम्प्रेषण
*९७६ वां* सार -संक्षेप
1 जागरूक
सदा प्रमाद से दूर रहने वाले , जागरूक, प्रसन्न, स्वावलम्बी आचार्य जी नित्य इन सदाचार संप्रेषणों द्वारा हमारा मार्गदर्शन करते हैं और हमें अध्ययन स्वाध्याय चिन्तन मनन निदिध्यासन के लिए प्रेरित करते हैं हमें इनका लाभ उठाना चाहिए दिन भर हमें ऊर्जस्वित करने वाले इनके विचार अद्भुत हैं ये आत्मतत्त्व के रूप में प्रतिष्ठित संप्रेषण आनन्द का विस्तार हैं आनन्द ही जीवन है सुख शरीरी है आनन्द प्राणिक है आनन्द आत्मा तक पहुंचता है कठिनाइयां विस्मृत हो जाती हैं
आनन्दो ब्रह्मेति व्यजानात्। आनन्दाध्येव खल्विमानि भूतानि जायन्ते। आनन्देन जातानि जीवन्ति। आनन्दं प्रयन्त्यभिसंविशन्तीति।सैषा भार्गवी वारुणी विद्या। परमे व्योमन्प्रतिष्ठिता।स य एवं वेद प्रतितिष्ठति। अन्नवानन्नादो भवति। महान्भवति प्रजया पशुभिर्ब्रह्मवर्चसेन महान् कीर्त्या॥
उन्हें ज्ञात हुआ कि आनन्द ही ब्रह्म है। क्योंकि ऐसा लगता है कि मात्र आनन्द से ही ये सारे प्राणी उत्पन्न हुए हैं और आनन्द के द्वारा ही ये जीवित रहते हैं तथा प्रयाण करके आनन्द में ही समाविष्ट हो जाते है। यही है भार्गवी विद्या वारुणी विद्या जिसकी परम व्योम द्युलोक में सुदृढ़ प्रतिष्ठा है। जो यह जानता है उसे भी सुदृढ़ प्रतिष्ठा मिलती है। वह अन्न का स्वामी औऱ अन्नभोक्ता बन जाता है। वह प्रजा सन्तति से, पशुधन से, ब्रह्मतेज से महान् हो जाता है, वह कीर्ति से महान् बन जाता है।
यह आनन्द सतत बना रहे
इसके लिए
अन्नं न निन्द्यात्। तद् व्रतम्। प्राणो वा अन्नम्।शरीरमन्नादम्। प्राणे शरीरं प्रतिष्ठितम्। शरीरे प्राणः प्रतिष्ठितः। तदेतदन्नमन्ने प्रतिष्ठितम्।स य एतदन्नमन्ने प्रतिष्ठितं वेद प्रतितिष्ठति। अन्नवानन्नादो भवति। महान् भवति प्रजया पशुभिर्ब्रह्मवर्चसेन। महान् कीर्त्या॥
हमें अन्न की निन्दा नहीं करनी चाहिए क्योंकि वह हमारे श्रम का व्रत है। वस्तुतः प्राण भी अन्न है एवं शरीर भोक्ता है। शरीर प्राण पर प्रतिष्ठित है तथा प्राण शरीर पर प्रतिष्ठित है। अतएव यहाँ अन्न पर अन्न प्रतिष्ठित है।
प्रकृति इस धरती में धातुएं तो उत्पन्न करती ही है वह प्राणवान् वस्तुएं भी उत्पन्न करती है
ऐसी अद्भुत रही है हमारी प्राचीन काल की शिक्षा जबकि हमारी वर्तमान शिक्षा का विकृत स्वरूप रहा है और हमारा दुर्भाग्य रहा है कि हमारे अंदर जड़ के प्रति आकर्षण पैदा किया गया और चेतन के प्रति विकर्षण
आचार्य जी ने परामर्श दिया कि हम तैत्तिरीय उपनिषद् का अध्ययन अवश्य करें इसकी शिक्षावल्ली अद्भुत है अध्ययन के पश्चात् परस्पर चिन्तन विचार करें प्रश्न पूछें उत्तर मिलेंगे ज्ञान का कोष खुल जाएगा ज्ञान प्राप्त कर लेने पर हमें और कुछ प्राप्त करने की आवश्यकता नहीं रह जाती ज्ञान ही हमें शक्तिसम्पन्न भी बनाएगा
हमारी युगभारती का मूल लक्ष्य यही होना चाहिए
हमारा कर्तव्य है कि हम अपने लोगों की निराशा दूर करते रहें नई पीढ़ी का भी मार्गदर्शन करें
इसके अतिरिक्त आचार्य जी ने भैया पुनीत श्रीवास्तव जी भैया प्रदीप वाजपेयी जी भैया शरद तिवारी जी भैया प्रशान्त मिश्र जी का नाम क्यों लिया जानने के लिए सुनें