11.4.24

आचार्य श्री ओम शङ्कर जी का चैत्र शुक्ल पक्ष तृतीया विक्रमी संवत् २०८१ (कालयुक्त संवत्सर )तदनुसार 11 अप्रैल 2024 का सदाचार सम्प्रेषण *९८७ वां* सार -संक्षेप

 प्रस्तुत है परिपन्थिन् -रिपु ¹ आचार्य श्री ओम शङ्कर जी का आज चैत्र शुक्ल पक्ष तृतीया विक्रमी संवत् २०८१ (कालयुक्त संवत्सर )तदनुसार 11 अप्रैल 2024 का सदाचार सम्प्रेषण

  *९८७ वां* सार -संक्षेप
1 विघ्न डालने वाले के शत्रु

 विघ्न डालने वाले दुष्ट आज भी हैं और उस समय भी थे जब तुलसीदास जी ने श्रीरामचरित मानस रची थी बहुत भयानक समय था
ऐसा ही भयानक वातावरण रावण के कारण था
रावनु रथी बिरथ रघुबीरा। देखि बिभीषन भयउ अधीरा॥
अधिक प्रीति मन भा संदेहा। बंदि चरन कह सहित सनेहा॥1॥
लेकिन हमें विभीषण की तरह दुविधा में नहीं रहना है हमें विभीषण नहीं हनुमान बनना है
यह हनुमान जी की कृपा है कि यह सदाचार वेला सतत चल रही है सातत्य हमारे सनातन धर्म की एक बहुत बड़ी निधि है हम कहते हैं कि हम मरते नहीं हैं केवल शरीर बदलते हैं यह सतत यात्रा संसार का धर्म और जीवन का मर्म है
कबीरदास कहते हैं
चलती को गाड़ी कहै नगद माल को खोया
रंगी को नारंगी कहै देख कबीरा रोया
(इसी को फिल्म जागते रहो के गाने जिंदगी खाब है में इस तरह कहा गया है
रंगी को नारंगी कहें बने दूध को खोया
चलती को गाड़ी कहें देख कबीरा रोया)

गाड़ी कहकर कबीरदास जी जमीन में गड़ी हुई वस्तु की ओर संकेत कर रहे हैं जो कभी हिल नही सकती और उसमें बैठकर हम चलते हैं,
रंगी हुई चीज को दुनिया नारंगी कहती है और जब दूध कुछ बन जाता है तो उसे खोया (spoiled या बिगड़ा हुआ )
कितना विरोधाभास है इनमें
कबीर का यह अद्भुत चिन्तन है
साहित्य में कबीर, दादू, तुलसी, सूरदास आदि अनेक कवि हैं
इसी तरह अनेक तपस्वी हुए हैं जैसे भगीरथ ने गंगा के प्रवाह को सदा के लिए भारतवर्ष में प्रवाहित कर दिया इससे संयुत एक अर्थवती कथा है अपना पूरा साहित्य ही कथामय है कथा जीवन का तत्त्व है हमारे यहां की अधिकतर कथाएं व्यथाओं पर विजय प्राप्त कर सुख शान्ति आनन्द का संदेश देती हैं
अमरत्व की अनुभूति कराने वाला भारतीय जीवनदर्शनमय साहित्य आशामय विश्वासमय है
शरीरों में शरीरी की जहां अनुभूति है रहती
वहां शुभगान गाती प्राण की भागीरथी बहती

प्राणिक ऊर्जा लिए शरीरी हमारे भीतर बैठा है जहां मन प्रफ़ुल्लित रहते हैं वहां संकट में समाधान दिख जाते हैं निराश मन के कारण समाधान भी संकट की आहट सुनाते हैं
संकट में समाधान खोजने का हम व्रत धारण करें
मन में किसी भी प्रकार का भय भ्रम न रखें

सुनु गिरिजा हरिचरित सुहाए। बिपुल बिसद निगमागम गाए॥
हरि अवतार हेतु जेहि होई। इदमित्थं कहि जाइ न सोई l

तस मैं सुमुखि सुनावउँ तोही। समुझि परइ जस कारन मोही॥
जब जब होई धरम कै हानी। बाढ़हिं असुर अधम अभिमानी॥

तब तब प्रभु विविध शरीर धारण करते हैं और हमें दुष्टों से मुक्ति दिलाते हैं
हमें भी रामत्व का अनुभव करना है और उसे प्रकट भी करना है
हम अपने कर्मों की मोमबत्तियां जलाएं जलना मोमबत्ती का काम है देशहित के हर कार्य में हमें भाग लेना है
जन जन को जाग्रत करने की आवश्यकता है
हम आगामी चुनाव हेतु भी सक्रिय हों

इसके अतिरिक्त आचार्य जी ने किस मेले की चर्चा की भैया संतोष मिश्र जी का AI से संबन्धित क्या प्रसंग है पत्रकार प्रदीप सिंह की चर्चा क्यों हुई भैया आलोक सांवल जी का नाम क्यों आया जानने के लिए सुनें