12.4.24

आचार्य श्री ओम शङ्कर जी का चैत्र शुक्ल पक्ष चतुर्थी विक्रमी संवत् २०८१ (कालयुक्त संवत्सर )तदनुसार 12 अप्रैल 2024 का सदाचार सम्प्रेषण ९८८ वां सार -संक्षेप

 हमारे देश का गौरव क्षितिज में छा उठे फिर से

पताका विश्वविजयी व्योम में लहरा उठे फिर से | |१३ | ।


प्रस्तुत है विशेषित ¹  आचार्य श्री ओम शङ्कर जी का आज चैत्र शुक्ल पक्ष चतुर्थी विक्रमी संवत् २०८१  (कालयुक्त संवत्सर )तदनुसार  12 अप्रैल 2024 का  सदाचार सम्प्रेषण 

  ९८८ वां सार -संक्षेप

1 विलक्षण


हम विलक्षण बनें , षड्रिपु हमसे दूर रहें, कर्म करते चलें, इन सदाचारमय विचारों को सुनकर गुनकर हम इन्हें व्यवहार -जगत में उतारते चलें, हम पं दीनदयाल जी के अधूरे सपनों को पूरा करें , पं दीनदयाल जी के आदर्शों का अनुभव करते हुए उनका समाज में हम प्रयोग करें इसके लिए आचार्य जी नित्य प्रयास करते हैं हमें इसकी महत्ता समझनी चाहिए  समय के सदुपयोग का यह एक अच्छा उपाय है हमें उत्साहित करने वाले,परमात्मतत्व की अनुभूति कराने वाले,पीड़ाओं में समाधान सुझाने वाले,गौमाता,गीता,गंगा, गायत्री का मान बढ़ाने वाले,हमारे शौर्य पराक्रम को उत्थित कराने वाले, सांसारिक प्रपंचों से हमें परिमार्जित करने वाले ये  सदाचार संप्रेषण अद्भुत हैं

इनके माध्यम से आचार्य जी बताते हैं कि हम जड़त्व का कितना उपयोग करें चैतन्य के प्रति कितने आग्रही बनें,सद्गुण -विकृति से बचते हुए सद्गुणों को ग्रहण करें और अन्य को, भावी पीढ़ी को  भी प्रेरित करें जाग्रत करें 

यही भारतीय संस्कृति है

यह सिलसिला चलता रहना चाहिए जो वेदों से लेकर आज तक के साहित्य में संयुत है हमारा साहित्य प्रचुर मात्रा में है लेकिन अस्ताचल देशों के कारण हम भ्रमित हो गए 

अब समय बदला है भ्रम के कुछ बादल छंटने लगे हैं 

 शरीरों में शरीरी की जहां अनुभूति है रहती 

वहां शुभगान गाती प्राण की भागीरथी बहती

मनस् में शौर्यमय शृङ्गार का उत्सव उमगता है 

मरणधर्मा जगत में अमर स्वर सौरभ दमकता है

(उमगना :उमंग से भरना)

हमारे बीच में ही ऐसे अनेक उदाहरण हैं जिनसे हमें प्रेरणा मिल सकती है जैसे भैया संतोष मिश्र जी


हम सब जवान हैं हम अपनी जवानी की अनुभूति करें उसका प्रयोग करें राजनैतिक कर्तव्य पूर्ण करें धार्मिक कर्तव्यों को पूर्ण करें 

धार्मिक जीवन का प्रकटीकरण करें हम भीड़ नहीं हैं  हमारा व्यक्तित्व अच्छा बने व्यक्तित्व व्यक्ति के भीतर की ऊर्जा की अनुभूति है 

सनातन धर्म के प्रति आग्रही बनें Society की मांग जवानी के लक्षण नहीं हैं जवानी साधना तप त्याग है हमारी जवानी सोनी नहीं चाहिए वह जगे भी औरों को जगाए भी 


जवानी जुल्म का ज्वालामुखी बढ़कर बुझाती है

फड़कते क्रान्ति के नव छन्‍द युग-कवि को सुझाती है

जवानी दीप्तिमय सन्देश की अद्भुत किरण सी है

सनातन पावनी गंगा बसन्‍ती आभरण सी है

जवानी के अनोखे स्वप्न जब संकल्प बन जाते

फड़कते हैं सबल भुजदण्ड उन्‍नत भाल तन जाते

जवानी को न सुख की नींद जीवन भर सुहाती है

जकड़ कर मुट्टियों में वज़ युग-जड़ता ढहाती है | ।९। |


जवानी केसरी बाना लपकती ज्वाल जौहर की

भवानी की भयद भयकार वह हुंकार हर हर की

जवानी का उमड़ता जोश जय का घोष होता है

चमकती चंचला सी खड़्ग वाला रोष होता है


जवानी विन्ध्य के तल में कभी सह्याद्रि पर होती

विजय-पथ की शिलायें बन कभी वह हो सिन्धु पर सोती है|

 जवानी के सभी साधन भुजाओं में बसे रहते 

शरासन पर चढ़े या फिर सजग तूणीर में रहते | ।१० |


 ज़वानी शील के सम्मान की सीमा समझती है

 प्रपंचों की शबल चालें समझ तत्क्षण गरजती हैं

 जवानी ने जवानी दे बुढ़ापे को बचाया है 

 लुटा कर स्वयं का मधु गरल अन्तर में पचाया है 

 जवानी की धरोहर को जवानी ही सँजोती है

 धरा में क्रान्ति की तकदीर अपने हाथ बोती है

जवानी को जवानी ने न जब-जब जान पाया है | 

तभी गहरा अँधेरा व्योम में भरपूर छाया है| ।११। | |


जवानी जब जवानी को समय पर जान लेती है

 स्वयं के शत्रु को जब भी तुरत पहचान लेती है

धरा का तब न घुट-घुट कर सहज सौभाग्य रोता है

 

 किलकता दूध” “अनुभव” शान्ति की सुख नींद सोता है


 तभी इतिहास गौरव से भरा अध्याय लिखता है 

विहँसती है तभी धरती गगन में तोष दिखता है

विधाता | कुछ करो ऐसा जगे जीवन जवानी का

 प्रणव के मंत्र गूँजें और हो अर्चन भवानी का । ।१२। |



इसके अतिरिक्त आचार्य जी ने श्रद्धेय बैरिस्टर साहब का नाम क्यों लिया युगभारती का संकल्प क्या है जानने के लिए सुनें