अष्टवर्षे चतुर्वेदी द्वादशे सर्वशास्त्रवित्। षोडशे कृतवान् भाष्यं द्वात्रिंशे मुनिरभ्यगात्॥
प्रस्तुत है अरिकर्षण ¹ आचार्य श्री ओम शङ्कर जी का आज चैत्र शुक्ल पक्ष पञ्चमी विक्रमी संवत् २०८१ (कालयुक्त संवत्सर )तदनुसार 13 अप्रैल 2024 का सदाचार सम्प्रेषण
९८९ वां सार -संक्षेप
1 शत्रुओं को पराभूत करने वाला
शत्रुओं को पराभूत करने के लिए हमें सदैव जाग्रत रहना चाहिए
संसार हृत्क:श्रुतिजात्म बोधः
हम पर्यावरण और परिवेश पर भी नजर रखें
हम अंशांशावतारियों में आत्मचिन्तन के साथ आत्मविश्वास अत्यन्त आवश्यक है
हम जवान शिष्य शरीरी में अवस्थित होने का प्रयास करें मन के विजेता बनें हमें मनोज न जीतें तब हम निराश हताश नहीं होंगे हमारे अन्दर का उत्साह बढ़ेगा हम ऐसे तपस्वी बनें जो अपने लिए न जी कर अपनों के लिए जिएं
अपने लिए जिए तो क्या जिए, तू जी ए दिल ज़माने के लिए...फिल्म ' बादल '
हम ऐसे कार्य करें जिससे हमारे देश का गौरव क्षितिज में छा जाए विश्वविजयी पताका फिर से व्योम में लहरा जाए
इन सदाचार संप्रेषणों की अभिव्यक्तियां अद्भुत हैं संप्रेषण रूपी जागरण का उद्घोष हमारे रोम रोम में प्रविष्ट हो जाए इसका आचार्य जी प्रयास करते हैं
आचार्य जी नित्य अपना बहुमूल्य समय हमारे हित के लिए दे रहे हैं हमें इसका महत्त्व समझना चाहिए
को वा गुरुर्यो हि हितोपदेष्टा
शिष्यस्तु को यो गुरु भक्त एव ।
को दीर्घ रोगो भव एव साधो
किमौषधिं तस्य विचार एव ॥ ७॥
भारत का वातावरण अत्यन्त शुद्ध मंगलमय है
आचार्य जी ने वातावरण का अर्थ स्पष्ट किया वातावरण अर्थात् वात का आवरण
वात पृथ्वी और आकाश
के बीच का संयोजक है
इसी तरह पर्यावरण अर्थात् परि +आवरण
और परिवेश शब्द हैं इन सबसे प्रकृति बनती है जो हमारे भीतर बैठी है
जवानी की अनुभूति बहुत बड़ी शक्ति है
अरे ओ नौजवानों उठ पड़ो परखो जवानी को
शिवा का शौर्य गुरु की तेग बन्दा की रवानी को
महाराणा बनो युग के करो हुंकार जी भर के...
इसके अतिरिक्त आचार्य जी ने भैया डा अशोक तिवारी जी, मुंशी प्रेमचन्द्र का नाम क्यों लिया जानने के लिए सुनें