14.4.24

आचार्य श्री ओम शङ्कर जी का चैत्र शुक्ल पक्ष षष्ठी विक्रमी संवत् २०८१ (कालयुक्त संवत्सर )तदनुसार 14 अप्रैल 2024 का सदाचार सम्प्रेषण ९९० वां सार -संक्षेप

 प्रस्तुत है अरिघ्न ¹  आचार्य श्री ओम शङ्कर जी का आज चैत्र शुक्ल पक्ष षष्ठी विक्रमी संवत् २०८१  (कालयुक्त संवत्सर )तदनुसार  14 अप्रैल 2024 का  सदाचार सम्प्रेषण 

  ९९० वां सार -संक्षेप

1 शत्रुओं का नाश करने वाला


प्रकृति के विकास का चरण महातत्त्व है इस महातत्त्व में बुद्धि

 (जो निश्चय निर्धारण करती है) भी है( बुद्धि के मौलिक गुण हैं धर्म ज्ञान वैराग्य ऐश्वर्य) और अहम् भी है अहम् के दो भेद हैं और दोनों में भाव है  दोनों का प्रभाव है रूप कोई नहीं सांसारिक अहम्  जो त्याज्य है और तात्त्विक अहम् जो अत्यन्त महत्त्वपूर्ण है 


महाभूतान्यहङ्कारो बुद्धिरव्यक्तमेव च।


इन्द्रियाणि दशैकं च पञ्च चेन्द्रियगोचराः।।13.6।।

इस महातत्त्व में मन भी है जो अद्भुत है चंचल भी है और इसी मन का निग्रह भी किया जाता है अर्थात् मनोनिग्रह 


 और प्रकृति परमात्मा की अभिव्यक्ति है परमात्मा सब कुछ है


सर्वेन्द्रियगुणाभासं सर्वेन्द्रियविवर्जितम्।


असक्तं सर्वभृच्चैव निर्गुणं गुणभोक्तृ च।।13.15।।



वह सारी इन्द्रियों के कार्यों  से प्रकाशित होने वाला, परन्तु  समस्त इन्द्रियों से रहित है आसक्ति रहित है गुण रहित है फिर भी सारे भावमय संसार का भरण पोषण करता है सारे गुणों का भोक्ता है


बिनु पद चलइ सुनइ बिनु काना। कर बिनु करम करइ बिधि नाना॥

आनन रहित सकल रस भोगी। बिनु बानी बकता बड़ जोगी॥


वह  बिना पैर के चलता है, बिना कान के सुनता है, बिना हाथ के बहुत से काम करता है, बिना आनन सारे  रसों का आनंद लेता है और बिना वाणी के अतियोग्य वक्ता है।

ऐसा है परमात्मा और हम उसके प्रतिनिधि हैं

हम मनुष्य हैं हमें मनुष्यत्व की अनुभूति होनी चाहिए यह मनुष्यत्व की अनुभूति ही इन सदाचार वेलाओं का मूलतत्त्व है 

भाव, विचार और क्रिया का भारतीय जीवन दर्शन में अत्यन्त गहन चिन्तन किया गया है इस त्रिवेणी का स्थूल और सूक्ष्म स्वरूप दोनों है

भारतीय जीवन दर्शन की परिकल्पना है कि हम आते हैं जाते हैं और फिर आते हैं इस परिकल्पना के आनन्द को जब हम प्राप्त करने लगते हैं तो हम कह सकते हैं कि हम सदाचारी जीवन के मूल्यों को समझने लगे हैं

 आचार्य जी ने यह भी स्पष्ट किया कि पाण्डित्य को क्या विकसित करती है 

हमारा सनातनत्व अद्भुत है हमारे यहां योग और आयुर्वेद प्राणिक ऊर्जा का एक सांसारिक अनुसंधान है यह अत्यन्त लाभकारी है 

सर्वत्र फैले हम युगभारती के सदस्यों को अपनी शक्ति और बुद्धि को जाग्रत करने की आवश्यकता है मोर्चे बहुत से है हमें किसी न किसी मोर्चे पर डटकर खड़े होना है  जैसे हम बाबा रामदेव और सुप्रीम कोर्ट वाले विषय में अपना पक्ष रखें 

इसके अतिरिक्त वस्तु के अन्वेषण की कौन सी दो परम्पराएं थीं कल अपने गांव सरौंहां में क्या कार्यक्रम था भैया वीरेन्द्र जी भैया विवेक जी भैया दीपक शर्मा जी भैया मोहन जी भैया अनुराग सिंह जी का नाम आचार्य जी ने क्यों लिया श्री दिलीप मृदुल जी की चर्चा क्यों हुई जानने के लिए सुनें