कर्ममय जीवन जगत का मूल है
द्वीप को तट समझ लेना भूल है
गीत गाना है सदा विश्वास के
स्वप्न बुनने हैं प्रगति के, आस के ,
देहली दीपक धरा का न्याय है
कर्म-कुण्ठा पतन का पर्याय है
स्वर्ण शोभा हो भले पर
अंकुरण के लिये व्याकुल बस धरा की धूल है।
प्रस्तुत है अरिन्दम ¹ आचार्य श्री ओम शङ्कर जी का आज चैत्र शुक्ल पक्ष अष्टमी विक्रमी संवत् २०८१ (कालयुक्त संवत्सर )तदनुसार 16 अप्रैल 2024 का सदाचार सम्प्रेषण
*९९२ वां* सार -संक्षेप
1 शत्रुओं का नाश करने वाला
हनुमान जी के प्रसाद के रूप में प्राप्त इन सदाचार संप्रेषणों का नैरन्तर्य अध्यात्म की दृष्टि से भगवान् का लीला विलास है और व्यावहारिक दृष्टि से संसार को चैतन्य बनाने का,सनातन धर्मियों, जो जानते हैं कि वे स्वयं जीवित नहीं भी रहते तो भी उनकी परम्परा जीवित रहती है, को जाग्रत करने का ,हम एककरों में समाजोन्मुखता प्रवेश कराने का, हमें एकांगी चिन्तन से क्षुद्र कुत्सित विचारों से, स्वार्थ से बचाने का, हम अपने बन्द झरोखे खोल लें यह जताने का, हमें सत्पथ का अनुगामी बनाने का एक प्रयास है
ज्योतियों को विशाल ज्वाला जिसका प्रकाश सूर्य का प्रतिरूप है बनाने में सक्षम इन संप्रेषणों के विचारों को हम यदि क्रिया में परिवर्तित कर देते हैं तो वास्तव में ये संप्रेषण फलप्रद हो जाएंगे
विशाल ज्वाला प्रकाश तो देती ही है गंदगी भी साफ कर देती है साथ ही ताप से सचेत करती है ताप की ऊर्जा से जाग्रत भी करती है
आचार्य जी की हम मानसपुत्रों, जिनपर आचार्य जी का बहुत ध्यान रहता है,से अपेक्षा है कि हमारे भाव आचार्य जी के मनोकूल हो जाएं और इसमें कोई बुराई नहीं है क्योंकि ये भाव दुर्भाव नहीं हैं
आचार्य जी आकलन करते रहते हैं कि हम कितने समाजोन्मुखी प्रयास कर रहे हैं राष्ट्र हित हेतु कितने प्रयास कर रहे हैं इसका भी आकलन करते हैं कि इन प्रयासों को एक साथ एकत्रित करने हेतु कितने प्रवास हो रहे हैं
हमें सवर्ण अवर्ण के चक्कर में नहीं पड़ना है
हम कहते हैं हिन्दू मुस्लिम सिख ईसाई जब कि सिख हिन्दू ही हैं जैन बौद्ध अल्पसंख्यक बताए जा रहे हैं जब कि ऐसा नहीं होना चाहिए
इस पर विचार चिन्तन लेखन आवश्यक है
हमें उपेक्षित पड़े गांवों को संवारना है
इसके अतिरिक्त आचार्य जी ने हम लोगों के सरौंहां गांव का नाम क्यों लिया भैया सौरभ द्विवेदी जी का नाम क्यों लिया श्री हरीश वर्मा जी का साक्षात्कार किसने लिया जानने के लिए सुनें