19.4.24

आचार्य श्री ओम शङ्कर जी का चैत्र शुक्ल पक्ष एकादशी विक्रमी संवत् २०८१ (कालयुक्त संवत्सर )तदनुसार 19 अप्रैल 2024 का सदाचार सम्प्रेषण ९९५ वां सार -संक्षेप

 प्रस्तुत है  व्यायत ¹  आचार्य श्री ओम शङ्कर जी का आज चैत्र शुक्ल पक्ष एकादशी विक्रमी संवत् २०८१  (कालयुक्त संवत्सर )तदनुसार  19 अप्रैल 2024 का  सदाचार सम्प्रेषण 

  ९९५ वां सार -संक्षेप

1शक्तिशाली


अपनी असीमित शक्तियों की अनुभूति रामत्व है  जो यह अनुभूति  करते हैं वे राम के विग्रह के दर्शन कर अश्रु बहाने लगते हैं यह भाव ही भक्ति का एक स्रोत है प्रतिदिन विभु आत्मा के अंश हम अणु आत्मा  नित्य मिले नए जीवन को उत्साह उमंग से भरने वाली मंगल अनुभूति में प्रवेश को अपना लक्ष्य बनाएं विगत व्यथाओं को ढोने का कोई लाभ नहीं 


हमारी कामनाएं चैन से कब बैठने देतीं 


अतीती संस्मरणों की सरणियों में घुमाती हैं


कथाएं रह गईं जो भी अधूरी श्रावकों के बिन 

वही अब मौन के स्वर में स्वयं ही गुनगुनाती हैं


कभी कांटे कभी उत्फुल्ल फूलों की नुमाइश है 

कभी स्वर्गीय संपोषण कभी दुःखप्रद रिहाइश है


अजब संसार का सरगम न जिसमें ताल द्रुत गति यति 

यहां हर बेसुरे को ही सिखाने की सिफारिश है


अपनी परंपराओं से अपनी भाषा से अपने देश से प्रेम आवश्यक है

हमारे यहां का साहित्य अद्भुत है साहित्य का अर्थ ही है जो मनुष्य का हित करे 

विगत दिवस की सांसारिक समस्याओं को विस्मृत कर आज के प्रभात को आनन्ददायी बनाने के लिए आइये प्रवेश करें आज की वेला में


पुल बन गया है रावण को पता चला 


बाँध्यो बननिधि नीरनिधि जलधि सिंधु बारीस।

सत्य तोयनिधि कंपति उदधि पयोधि नदीस॥ ५॥


वननिधि, नीरनिधि, जलधि, सिंधु, वारीश, तोयनिधि, कंपति, उदधि, पयोधि, नदीश को क्या वास्तव में  बाँध लिया?



 विदुषी मन्दोदरी समझ गई वह मूर्ख रावण को समझा रही है



नाथ बयरु कीजे ताही सों। बुधि बल सकिअ जीति जाही सों॥

तुम्हहि रघुपतिहि अंतर कैसा। खलु खद्योत दिनकरहि जैसा॥


हे नाथ! वैर उसी के साथ करना चाहिए, जिससे बुद्धि और बल के द्वारा जीता जा सके। आप में और रघुनाथ में वैसा ही अंतर है जैसा जुगनू और सूर्य में




बिस्वरूप रघुबंस मनि करहु बचन बिस्वासु।

लोक कल्पना बेद कर अंग अंग प्रति जासु॥ १४॥


मेरे इन वचनों पर निश्चित रूप से विश्वास कीजिए कि ये रघुवंश के शिरोमणि राम विश्व रूप हैं अर्थात् यह संपूर्ण विश्व उन्हीं का रूप है

 वेद  जिनके अंग प्रत्यंग में लोकों की कल्पना करते हैं



पद पाताल सीस अज धामा। अपर लोक अँग अँग बिश्रामा॥

भृकुटि बिलास भयंकर काला। नयन दिवाकर कच घन माला॥


पाताल उन भगवान का चरण है, ब्रह्म लोक सिर  अन्य  लोक  जिनके अन्य भिन्न-भिन्न अंगों पर हैं । भयंकर काल जिनका भृकुटि संचालन है,सूर्य नेत्र और बादलों का समूह बाल हैं


ऐसा है रामत्व 

इसके अतिरिक्त आचार्य जी ने रामेश्वरम की चर्चा क्यों की जानने के लिए सुनें