20.4.24

आचार्य श्री ओम शङ्कर जी का चैत्र शुक्ल पक्ष द्वादशी विक्रमी संवत् २०८१ (कालयुक्त संवत्सर )तदनुसार 20 अप्रैल 2024 का सदाचार सम्प्रेषण ९९६ वां सार -संक्षेप

 प्रस्तुत है  वचनपटु  आचार्य श्री ओम शङ्कर जी का आज चैत्र शुक्ल पक्ष द्वादशी विक्रमी संवत् २०८१  (कालयुक्त संवत्सर )तदनुसार  20 अप्रैल 2024 का  सदाचार सम्प्रेषण 

  ९९६ वां सार -संक्षेप


आचार्य जी नित्य प्रयास करते हैं कि हमारी मेधा परिष्कृत हो जाए  वे हम मानस पुत्रों को विकसित करने के लिए विद्वत्ता की ओर ले जाने का अद्भुत प्रयास करते हैं 

नित्य का यह सदाचार संप्रेषण अध्यात्म, जो मनुष्य के मनुष्यत्व का आधार है,से आवेष्टित रहता है अध्यात्म, जिसकी हमारे ऋषियों ने तपस्यापूर्वक गवेषणा की है,भारतवर्ष के रोम रोम में रमा है किन्तु अनुभव नहीं होता


खोजता वन - वन तिमिर का ब्रह्म पर पर्दा लगाकर।

 ढूँढ़ता है अन्ध मानव ज्योति अपने में छिपाकर l

अध्यात्म में प्रविष्ट होने पर बाधाएं व्यथाएं समस्याएं तिरोहित होने लगती हैं  हम भौतिकता से दूर होने लगते हैं जो इसके अखंड अभ्यासी  हैं वे संसार में रहते हुए भी संसारी भाव से मुक्त रहते हैं और जीवन्मुक्त कहलाते हैं

जीवन्मुक्त अर्थात् जो जीवित दशा में ही आत्मज्ञान प्राप्त कर सांसारिक मायाबंधन से छूट गया हो ।

सांख्य और योग के मत से पुरुष व प्रकृति के बीच विवेक ज्ञान होने से जीवन्मुक्तता प्राप्त होती है अद्भुत पौराणिक चिन्तन और दर्शन से परिपूर्ण इन सदाचार संप्रेषणों से हमें जीवन्मुक्तता का अनुभव होता है

श्रीरामचरित मानस अद्भुत है जो झोपड़ी से लेकर महल तक सबमें प्रवेश कर गई क्योंकि उसमें कथा के साथ साथ तत्त्व भी है और अध्यात्म तो स्थान स्थान पर अनुस्यूत है 

राक्षसों और दैत्यों के क्षमतावान् विश्वकर्मा मय की पुत्री मन्दोदरी 


(अहल्या द्रौपदी तारा सीता मन्दोदरी तथा। पञ्चकन्या: स्मरेतन्नित्यं महापातकनाशम्॥)

रावण को समझा रही है

मन्दोदरी ने भगवान् राम का विश्वरूप वर्णित किया 

बिस्वरूप रघुबंस मनि करहु बचन बिस्वासु।

लोक कल्पना बेद कर अंग अंग प्रति जासु॥ 14॥


भगवान् राम का विश्वरूप हमें  भी भा जाता है राम राम हैं राम निर्गुण निर्विकार हैं ऐसा भाव तुलसीदास में भी प्रविष्ट हुआ  उनके बचपन में राम जिज्ञासा थे बाद में उन्होंने वैदिक ज्ञान और राम में सामञ्जस्य स्थापित किया




रोम राजि अष्टादस भारा। अस्थि सैल सरिता नस जारा॥

उदर उदधि अधगो जातना। जगमय प्रभु का बहु कलपना॥


अस बिचारि सुनु प्रानपति प्रभु सन बयरु बिहाइ।

प्रीति करहु रघुबीर पद मम अहिवात न जाइ॥ 15(ख)॥


 लेकिन रावण कुछ समझना ही नहीं चाहता


बिहँसा नारि बचन सुनि काना। अहो मोह महिमा बलवाना॥

नारि सुभाउ सत्य सब कहहीं। अवगुन आठ सदा उर रहहीं॥

यह रावण का दुर्भाग्य था कि उसे विदुषी अर्धाङ्गिनी मन्दोदरी की बात समझ में नहीं आई 


इसके अतिरिक्त आचार्य जी ने तुलसीदास जी के जीवन से संयुत कुछ बातें बताईं 


आचार्य जी ने अरुण गोविल की चर्चा क्यों की 

The Higgs boson which is popularly known as the "the God Particle" का प्रसंग किस कारण उठा जानने के लिए सुनें