प्रस्तुत है वशंवद ¹ आचार्य श्री ओम शङ्कर जी का आज चैत्र शुक्ल पक्ष पूर्णिमा विक्रमी संवत् २०८१ (कालयुक्त संवत्सर ) 23 अप्रैल 2024 का सदाचार सम्प्रेषण
९९९ वां सार -संक्षेप
¹ विनीत
साधु ऐसा चाहिए जैसा सूप सुभाय, सार-सार को गहि रहै, थोथा देई उड़ाय।
प्रस्तुत है वशंवद ¹ आचार्य श्री ओम शङ्कर जी का आज चैत्र शुक्ल पक्ष पूर्णिमा विक्रमी संवत् २०८१ (कालयुक्त संवत्सर ) 23 अप्रैल 2024 का सदाचार सम्प्रेषण
९९९ वां सार -संक्षेप
¹ विनीत
भगवान् के प्रसाद के रूप में उपलब्ध इन प्रेरक सदाचार संप्रेषणों में आनन्द, उत्साह, सेवा, स्वाध्याय, समर्पण, त्याग,संयम, शौर्य प्रमंडित अध्यात्म, भक्ति और भक्ति से उत्पन्न शक्ति, स्वधर्म
श्रेयान्स्वधर्मो विगुणः परधर्मात्स्वनुष्ठितात्। स्वधर्मे निधनं श्रेयः परधर्मो भयावहः।।3.35।।
की चर्चा होती है इस चर्चा से लाभान्वित होकर हमें आत्मबोध हो यही इनका उद्देश्य है हम शरीर नहीं हैं हम मन नहीं हैं हम बुद्धि नहीं हैं हम क्या हैं?
उत्तर है
चिदानन्द रूपः शिवोऽहं शिवोऽहम्
इस प्रकार का भाव कुछ क्षणों के लिए भी आता है तो यह निश्चित रूप से कल्याणकारी है
आत्म को विस्तार देते इन सदाचार संप्रेषणों से प्राप्त विचारों में हमें संसार की समस्याओं के समाधान प्राप्त होते हैं
भारतीय जीवनशैली में अपनों के कष्टों के निराकरण का प्रयास सम्मिलित है
हम अपनी समस्या दूसरे को बता सकते हैं क्योंकि हम आशा करते हैं कि वह इसका हल अवश्य बताएगा कोई भी व्यक्ति पूर्ण नहीं होता पूर्ण तो परमात्मा होता है
ॐ पूर्णमदः पूर्णमिदं पूर्णात्पूर्णमुदच्यते । पूर्णस्य पूर्णमादाय पूर्णमेवावशिष्यते ॥
हम अपूर्ण हैं इसलिए पूर्ण होने के लिए हमें सहयोग सामञ्जस्य चाहिए
स्वे स्वे कर्मण्यभिरतः संसिद्धिं लभते नरः।
स्वकर्मनिरतः सिद्धिं यथा विन्दति तच्छृणु ॥45॥
मनुष्य वही जो मनुष्य के लिए जिए और मरे
हम मनुष्यत्व की अनुभूति करें अपना विवेक जाग्रत करें
अपने को पहचानें
शिथिलता की समीक्षा करें परिस्थितियों को भांपें संगठन के विस्तार के प्रयास करें
इसके अतिरिक्त आचार्य जी ने भैया त्रिलोचन जी भैया मोहन जी की चर्चा क्यों की जानने के लिए सुनें