24.4.24

आचार्य श्री ओम शङ्कर जी का वैसाख कृष्ण पक्ष प्रतिप्रदा विक्रमी संवत् २०८१ (कालयुक्त संवत्सर ) 24 अप्रैल 2024 का सदाचार सम्प्रेषण १००० वां सार -संक्षेप

 प्रस्तुत है  रससिद्ध ¹ आचार्य श्री ओम शङ्कर जी का आज वैसाख कृष्ण पक्ष प्रतिप्रदा विक्रमी संवत् २०८१  (कालयुक्त संवत्सर )  24 अप्रैल 2024 का  सदाचार सम्प्रेषण 

  १००० वां सार -संक्षेप

¹ काव्यसम्पन्न


जीवन गतिमान है जब इसकी गति बन्द हो जाती है तो यह जीवन नहीं रहता जब हम किसी मृत शरीर को देखते हैं तो उसको नहीं चाहते 

चाहते तब थे जब उसमें जीवन था 

यह ज्ञान मृत्यु,पीड़ा के समय खुलता है जब समस्याएं विकराल रूप ले लेती हैं तब खुलता है

इसका अर्थ है कि पीड़ा में ही परमेश्वर हमें दर्शन देता है हमारा आधॆय बनता है यह भौतिकवादियों की समझ के बाहर है 

आध्यात्मिकता अद्भुत है जिसके माध्यम से हम भौतिकता की व्याकुलता को स्वयं समाप्त कर सकते हैं और समाप्त भी करते हैं भौतिकता के संकटों को सुलझाने में जब हम सक्षम होते हैं तो अन्य को भी आकर्षित करते हैं 

आध्यात्मिकता हमें बोध कराती है कि कष्ट दुःख क्लेश आदि के लिए हम स्वयं ही उत्तरदायी हैं आध्यात्मिकता के चक्षुओं से सभी प्राणियों में हमें परमात्मा का अंश दिखता है


लोकवत्तु लीला कैवल्यम्।

परमात्मा अपनी लीला करने के लिए इस संसार को तो रचता ही है स्वयं 

संसारी रूप में हम लोगों के बीच भी अवस्थित रहता है हम सभी मनुष्य उस परमात्मशक्ति की विभूति की अनुभूति करते हैं

अवतार अनन्त हैं 

राम कहत चलु, राम कहत चलु, राम कहत चलु भाई रे। 


गोविन्दम् आदिपुरुषं तम अहं भजामि


हम भी अंशांशावतार हैं 

अहं ब्रह्मास्मि 

हमारा चिन्तन  व्यवहार अद्भुत है भारतवर्ष का यह स्वरूप स्वभाव अद्वितीय है 

आचार्य जी ने पंचम वेद महाभारत के द्रोणपर्व के अन्तर्गत आने वाली एक कथा का उल्लेख किया

 जिसमें अर्जुन को लक्ष्य करके एक योद्धा भगदत्‍त का छोड़ा हुआ वैष्णवास्‍त्र (ब्रह्मास्त्र से भी भयानक )सबका विनाश करने वाला था तब भगवान् श्रीकृष्‍ण ने अर्जुन को ओट में करके स्‍वयं ही अपनी छाती पर उसकी चोट सह ली थी


संपूर्ण लोकों की रक्षा करने के लिए प्रभु बार बार अवतरित होते हैं 

हम भी जब उस परमात्मा के अंश हैं यह अनुभूति कर लेते हैं तो हम निराश हताश नहीं होते  बड़े बड़े कामों का संधान कर लेते हैं 

प्राणिक ऊर्जा की अनुभूति के विस्मृत रहने पर हम व्याकुल होते हैं 

चिदानन्द रूपः शिवोऽहं शिवोऽहम् की अनुभूति करें 


इसके अतिरिक्त आचार्य जी ने भैया त्रिलोचन जी भैया मनीष जी भैया मोहन जी का नाम क्यों लिया  २६ अप्रैल को किसके आठ वर्ष पूर्ण हो रहे हैं २८ अप्रैल के लिए आचार्य जी ने क्या परामर्श दिया जानने के लिए सुनें