प्रस्तुत है विधानग ¹ आचार्य श्री ओम शङ्कर जी का आज वैसाख कृष्ण पक्ष द्वितीया विक्रमी संवत् २०८१ (कालयुक्त संवत्सर ) 25 अप्रैल 2024 का सदाचार सम्प्रेषण
१००१ वां सार -संक्षेप
¹ बुद्धिमान् पुरुष
हम सौभाग्यशाली हैं कि हमें हनुमान जी की कृपा से अत्यन्त अनुभवी आचार्य जी के भावों और विचारों के प्रस्फुरण के रूप में आनन्दमय पक्ष का चिन्तन कराने का उत्साह प्रदान करने वाले ये सदाचार संप्रेषण प्राप्त हैं इन सदाचार संप्रेषणों के आज आठ वर्ष पूर्ण हो रहे हैं वायवीय माध्यम से हम लोगों को उत्साहित ऊर्जस्वित करने की आचार्य जी की आठ वर्षों की यह साधना बेजोड़ है हमारे लिए एक प्रेरणा है यह नैरन्तर्य अप्रतिम है हम कामना करते हैं कि भविष्य में भी उनसे हमें ऐसा संरक्षण प्राप्त होता रहे
आचार्य जी का प्रयास रहता है कि हम सदाचारमय विचारों को प्राप्त कर चिन्तन, मनन, अध्ययन, स्वाध्याय, सेवा, साधना, ध्यान, धारणा में रत हों अपने समझदारी के नेत्र खोलें
हमारे यहां का शास्त्रीय चिन्तन अद्भुत है
परमात्मा ने ॐ के रूप में हमें भाषा प्रदान की उसका विस्तार हुआ हमें बहुत सी चीजें प्राप्त हुईं
तैत्तिरीय उपनिषद् में
ॐ शीक्षां व्याख्यास्यामः। वर्णः स्वरः। मात्रा बलम्। साम सन्तानः। इत्युक्तः शीक्षाध्यायः॥
हम शिक्षा अर्थात् मौलिक तत्त्वों की व्याख्या करेंगे।
वर्ण,स्वर,मात्रा, बल अर्थात् प्रयास, साम तथा सातत्य के द्वारा हमने शिक्षा के अध्याय का कथन किया है।
शिक्षा का यह स्वरूप अद्भुत था सशक्त था उससे हमें संस्कार प्राप्त होते थे लेकिन शिक्षा का स्वरूप विकृत कर दिया गया और वह साधन के रूप में प्रयोग की जाने लगी और अभी भी उसी रूप में प्रयोग की जा रही है
यह संसार क्या है इसका चिन्तन भी हमारे यहां बहुत विस्तार से हुआ
और समझ में आ गया कि सब कुछ परमेश्वर का पैसारा है
ईशा वास्यमिदं सर्वं यत्किञ्च जगत्यां जगत्।
तेन त्यक्तेन भुञ्जीथा मा गृधः कस्यस्विद्धनम् ॥
इसका अन्वय इस प्रकार है
जगत्यां यत् किं च जगत् अस्ति इदं सर्वम् ईशा वास्यम्। तेन त्यक्तेन भुञ्जीथाः। कस्यस्वित् धनं मा गृधः ॥
इस अत्यधिक गतिशील समष्टि-जगत् (umiversal motion )में जो भी यह दृश्यमान गतिशील, वैयक्तिक जगत् है-यह सबका सब ईश्वर के आवास हेतु ही है। इन सबका त्यागपूर्वक उपभोग करना चाहिए भोग करने से मनाही नहीं है किसी भी दूसरे की धन-सम्पत्ति पर ललचाई दृष्टि नहीं डालें
इस जगत्याम् पर बार बार मन अटक जाता है
जड़ चेतन गुन दोषमय बिस्व कीन्ह करतार। संत हंस गुन गहहिं पय परिहरि बारि बिकार।
हमारे अभिभावक चिन्तक विचारक ऋषि का यह मनुष्य के लिए संदेश है
व्यावहारिक जगत को अनिवार्य बताते हुए आचार्य जी कहते हैं कि वे अभिभावक धन्य हैं जो अपनी संतानों की प्रशंसा करते हैं फिर ऐसी संतानें अपने अभिभावकों से लगाव रखती हैं
इसके अतिरिक्त आचार्य जी ने बताया कि माया का अंक आठ है और ब्रह्म का नौ
आठ नौ के बिल्कुल निकट होता है इसका अर्थ हुआ माया ब्रह्म के निकट है सीता राम की निकटता दर्शाती ये पंक्तियां देखिए
सीता राम गुणग्राम पुण्यारण्य विहारिणौ। वन्दे विशुद्ध विज्ञानौ कवीश्वर कपीश्वरौ।
उभय बीच श्री सोहइ कैसी। ब्रह्म जीव बिच माया जैसी॥
राम नवें हैं सीता माया हैं लेकिन माया हमारी रक्षा
करती है वह त्याज्य नहीं है वह पूज्य है लेकिन इसके लिए माया के प्रति हमारा भाव पूजा का हो
भोग का नहीं
आचार्य जी ने परामर्श दिया कि इन पर हम प्रश्न करें राग को पहचान लेने पर विराग भी आनन्द देता है
इसके अतिरिक्त आचार्य जी ने चारणी वृत्ति के विषय में क्या बताया जानने के लिए सुनें