26.4.24

आचार्य श्री ओम शङ्कर जी का वैसाख कृष्ण पक्ष तृतीया विक्रमी संवत् २०८१ (कालयुक्त संवत्सर ) 26 अप्रैल 2024 का सदाचार सम्प्रेषण १००२ वां सार -संक्षेप

 प्रस्तुत है आचार्य श्री ओम शङ्कर जी का आज वैसाख कृष्ण पक्ष तृतीया विक्रमी संवत् २०८१  (कालयुक्त संवत्सर )  26 अप्रैल 2024 का  सदाचार सम्प्रेषण 

  १००२ वां सार -संक्षेप


भाव बहुत गहन होते हैं भाषा के माध्यम से भावुक के भाव जब भावक के पास पहुंचते हैं तो दोनों के बीच अत्यन्त आनन्द की उत्पत्ति होती है

आर्ष परम्परा का अनुसरण करते हुए आचार्य जी परामर्श दे रहे हैं कि देवता की इस कृपा का हम आनन्द लें, आनन्द के साथ शक्ति भी अर्जित करें,संसार के सार और असार को समझते हुए अध्यात्म पर आधारित संसारोचित व्यवहार करें


हमारा सौभाग्य है कि हम आनन्दमय देश में, जिसमें शिक्षा के अनेक संस्कार -सेतु रहे हैं,आनन्दित करने वाली संस्कृति के साथ रह रहे हैं दुर्भाग्य है कि सांसारिक कलुषता को स्वीकारने पर हम व्याकुल होने लगते हैं 

लेकिन ज्ञान और बुद्धि के साधनों से इस कालुष्य को हम समाप्त करने में भी सक्षम हैं और ऐसा करने पर प्रसन्नतापूर्वक इस संसार की यात्रा को पूरी करते हैं

हम  भावों के बहुत अधिक सम्मिश्रण वाले दीनदयाल विद्यालय के छात्र रहे हैं जो हमारे लिए संस्कार का सेतु रहा है व्यापार केन्द्र न होकर शौर्य प्रमंडित अध्यात्म को आत्मसात् करने वाला  विद्या और शिक्षा के समन्वित स्वरूप वाला यह विद्यालय चैतन्य जाग्रत करता रहा है विचारों का पल्लवन करता रहा है सत्कर्मों के लिए प्रेरित करता रहा है


अष्ट सिद्धि नव निधि के दाता, अस वर दीन जानकी माता"

का उल्लेख करते हुए आचार्य जी ने अष्ट सिद्धियों और नौ निधियों के बारे में बताया 

आठ माया का अंक है और नौ ब्रह्म का अंक है 

माया भी पूज्य है क्योंकि हम मायामय संसार में रह रहे हैं 

 हनुमान जी आठ सिद्धियों से संपन्न हैं।


अणिमा महिमा चैव लघिमा गरिमा तथा ।


प्राप्तिः प्राकाम्यमीशित्वं वशित्वं चाष्ट सिद्धयः ।।


अर्थ - अणिमा , महिमा, लघिमा, गरिमा तथा प्राप्ति प्राकाम्य इशित्व और वशित्व  नामक  सिद्धियां "अष्टसिद्धि" कहलाती हैं।


'सिद्धि' का तात्पर्य सामान्यतः ऐसी पारलौकिक और आत्मिक शक्तियों से है जिन्हें तप और साधना के द्वारा प्राप्त किया जाता है । हिन्दु धर्म शास्त्रों में अनेक प्रकार की सिद्धियां वर्णित हैं जिनमें ये आठ सिद्धियां अधिक प्रसिद्ध हैं सिद्धियां अपने प्रयास और भक्ति से मिलती हैं निधियां कृपा से मिलती हैं 



कुबेर के कोष का नाम निधि है जिसमें नौ प्रकार की निधियाँ हैं। 1. पद्म निधि, 2. महापद्म निधि, 3. नील निधि, 4. मुकुन्द निधि, 5. नन्द निधि, 6. मकर निधि, 7. कच्छप निधि, 8. शंख निधि और 9. खर्व या मिश्र निधि।


माना जाता है कि नौ निधियों में केवल खर्व निधि को छोड़कर शेष आठ निधियां पद्मिनी नामक विद्या के सिद्ध होने पर प्राप्त हो जाती हैं

इसके अतिरिक्त प्रावृत्ति -संहारक आचार्य जी ने अष्टका, अष्टांग योग,अष्टमूर्ति, अष्टाध्यायी, अष्टगंध, नवग्रह, नवखंड, नवधातु, नवदुर्गा के विषय में क्या बताया

भैया न्यायमूर्ति श्री सुरेश जी गुप्त और भैया पंकज श्रीवास्तव जी का नाम क्यों लिया जानने के लिए सुनें