28.4.24

 केवल संदेश नहीं छानें हर गाँव-गली,

दुश्मन घर भीतर घुसा हुआ धर रूप छली, 

पहचान करें अपने हर सगे सहोदर की, 

संकल्पित अक्षत सहित भ्रमण हो गली-गली। ।


प्रस्तुत है आचार्य श्री ओम शङ्कर जी का आज वैसाख कृष्ण पक्ष पञ्चमी विक्रमी संवत् २०८१  (कालयुक्त संवत्सर )  28 अप्रैल 2024 का  सदाचार सम्प्रेषण 

  १००४ वां सार -संक्षेप


इस समय चुनाव का माहौल है  वैदिक काल का लोकतन्त्र अद्भुत था लेकिन यह लोकतन्त्र विकृत है  ऐसे में हमें जाग्रत रहने की अत्यन्त आवश्यकता है प्रायः ऐसा होता है कि हम अपने में ही मग्न रहते हैं हम enjoy करते रहते हैं

इसी से संबन्धित 

श्रीमद्भागवत् में १०/८४/१३  वां छंद है जो इस प्रकार है 


यस्यात्मबुद्धि: कुणपे त्रिधातुके

स्वधी: कलत्रादिषु भौम इज्यधी: ।

यत्तीर्थबुद्धि: सलिले न कर्हिचि-

ज्जनेष्वभिज्ञेषु स एव गोखर: ॥ १३ ॥



जो स्वयं को  त्रिधातु अर्थात् कफ , पित्त, वायु से बने जड़ शरीर के रूप में पहचानता है, जो अपनी पत्नी और परिवार को स्थायी रूप से अपना मानता है, जो मिट्टी की छवि या अपनी जन्मभूमि को पूजनीय मानता है या जो तीर्थ स्थान को जल के कारण पूजनीय मानता है जिसमें तीर्थ में तीर्थत्व का भाव नहीं रहता है जो उसे picnic के रूप में देखता  है , लेकिन जो कभी भी आध्यात्मिक सत्य में बुद्धिमान लोगों के साथ अपनी पहचान नहीं बनाता है, उनकी पूजा नहीं करता है या यहां तक ​​​​कि उनके पास भी नहीं जाता है - ऐसा व्यक्ति बैल या गधे से बेहतर नहीं है।

ऐसे लोगों के लिए सत्य ही कहा गया है 


येषां न विद्या न तपो न दानं, ज्ञानं न शीलं न गुणो न धर्मः । ते मर्त्यलोके भुविभारभूता, मनुष्यरूपेण मृगाश्चरन्ति ॥ 

इस कारण हमें मनुष्यत्व की अनुभूति होनी चाहिए अपने पराये की पहचान आनी चाहिए जिनसे हमें भाईचारा करना चाहिए उन्हें हम त्रैवर्णिक न होने पर त्यागने लगते हैं आरक्षण पर तूफान खड़ा कर देते हैं  और हम यह नहीं देखते कि उनपर कितने दिन तक अत्याचार हुए हैं 

अपने आत्मतत्त्व को विकसित कर चिन्तन मनन में यदि हम जाते हैं और चिन्तन मनन के बाद कर्म की योजना बनाते हैं तो ये सदाचार संप्रेषण हमारे लिए लाभकारी हैं लोभ मोह से विरक्त होकर कर्म करें 

जागरण शयन में संतुलन बनाएं सात्विक भोजन करें 

भगवान् श्रीकृष्ण अर्जुन को समझा रहे हैं



किं कर्म किमकर्मेति कवयोऽप्यत्र मोहिताः।


तत्ते कर्म प्रवक्ष्यामि यज्ज्ञात्वा मोक्ष्यसेऽशुभात्।।4.16।।


कर्म अकर्म के विषय में बुद्धिमान पुरुष भी भ्रमित हो जाते हैं। इसलिये मैं तुम्हें कर्म  और अकर्म का स्वरूप समझाऊँगा जिसे जानकर तुम अशुभ संसार बन्धन से मुक्त हो जाओगे।।


इसके अतिरिक्त आचार्य जी ने कर्नाटक की चर्चा क्यों की प्रदीप सिंह, ओंकार चौधरी, अत्रि आदि का नाम क्यों लिया क्या सिद्धान्तों से इतर भी हमें देखना है  जानने के लिए सुनें