बड़े संकट समस्याएँ जटिल अवरोध अनगिन हैं,
यही सब सोच कर लगता कि यह संसार घिनघिन है,
मगर हिमनग महासागर सघन वन जब नजर आते,
कि लगता है यहीं पर स्वर्ग का आनन्द कानन है।
प्रस्तुत है आचार्य श्री ओम शङ्कर जी का आज वैसाख कृष्ण पक्ष षष्ठी विक्रमी संवत् २०८१ (कालयुक्त संवत्सर ) 29 अप्रैल 2024 का सदाचार सम्प्रेषण
१००५ वां सार -संक्षेप
संसार हम सभी को प्रभावित करता है जिनके प्रपंचों में हम फंसे रहते हैं इसके बाद भी कुछ क्षणों के लिए संसार से मुक्त रहते हुए आनन्द की प्राप्ति के प्रति आशान्वित रहते हुए शुद्ध अध्यात्म की अनुभूति हेतु अपनों के प्रति अपनत्व की भावना जाग्रत करने के लिए शौर्याग्नि शक्ति से युक्त जाग्रत सद्विवेक के अनुभव हेतु भारत में पुनः भास्वरता लाने का संकल्प करने हेतु हम इन सदाचार वेलाओं को सुनने के प्रति लालायित रहते हैं यह भारतवर्ष के रक्षाकवच हनुमान जी, जिन्हें रामकृपा प्राप्त है और जो विविध भावों चेष्टाओं रूपों में असीम शक्तियों के साथ भगवान् राम के आदेश का पालन करते हुए कलियुग में भी विद्यमान हैं ,की ही महती कृपा है
हमें ऐसे भावों में प्रविष्ट रहना चाहिए कि
यदृच्छालाभसन्तुष्टो द्वन्द्वातीतो विमत्सरः।
समः सिद्धावसिद्धौ च कृत्वापि न निबध्यते।।4.22।।
यदृच्छया अर्थात् अपने आप ही जो कुछ प्राप्त हो उसमें ही सन्तृप्त रहने वाला, द्वन्द्वों से दूर, मत्सर से रहित, सिद्धि व असिद्धि में समान भाव वाला व्यक्ति कर्म करके भी नहीं बंधता है।।
गतसङ्गस्य मुक्तस्य ज्ञानावस्थितचेतसः।
यज्ञायाचरतः कर्म समग्रं प्रविलीयते।।4.23।।
जो आसक्ति से रहित और मुक्त है, जिसका चित्त ज्ञान में सम्यक् प्रकार से स्थित है, यज्ञ हेतु आचरण करने वाले ऐसे व्यक्ति के सारे कर्म विलीन हो जाते हैं।।
हमें बचपन से ही अद्भुत संस्कार मिलते रहे हैं
स्वादिष्ट भोजन को देखकर मन ललचा रहा है लेकिन भोजन से पहले भोजन मन्त्र बोलेंगे
तब भोजन करेंगे
ब्रह्मार्पणं ब्रह्महविर्ब्रह्माग्नौ ब्रह्मणा हुतम्।
ब्रह्मैव तेन गन्तव्यं ब्रह्मकर्मसमाधिना।।4.24।।
ॐ सहनाववतु सहनौ भुनक्तु। सहवीर्यं करवावहै। तेजस्विनावधीतमस्तु मा विद्विषावहै॥..
ऐसे संस्कारों का अंकुरण पल्लवन हुआ जिनके फलन का यह उचित समय है
ऐसे संस्कारों का विस्तार आवश्यक है ताकि समाज को समझ में आए कि सभी स्थानों में अंधकार नहीं है कुछ प्रकाश के पुंज अभी भी दिखाई दे रहे हैं यही संदेश हमें सितम्बर में होने जा रहे राष्ट्रीय अधिवेशन से भी देना है
अपने देश की समस्याओं पर विचार करें तो हम देखते हैं
जब हमारा ब्रह्मत्व खंड खंड हो गया हम एकांगी हो गए तो इधर उधर के लोग आ गए
शौर्य विहीन अध्यात्म ने हमें अत्यधिक हानि पहुंचाई
इसी तरह की समस्याओं का खाका खींचते हुए हमें दिशा देने के लिए सनातन धर्म के प्रति विश्वास जाग्रत करने के लिए आचार्य जी ने अपनी रचित एक कविता सुनाई जिसकी कुछ पंक्तियां इस प्रकार हैं
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इन सभी समस्याओं का मूल गुलामी है।
मन पर छा चुकी एक अद्भुत नाकामी है ।।
कुछ कहते इसका कारण बस प्रारब्ध एक।
पर मैं कहता शौर्याग्निशक्ति से वंचित जाग्रत सद्विवेक। ।
आओ मिल सद्विवेक में ज्वाला धधकाएँ।
फिर से अपने भारत में भास्वरता लाएँ ।।
यह पूरी कविता क्या है चित्त की पांच अवस्थाएं कौन सी हैं आदि जानने के लिए सुनें