30.4.24

आचार्य श्री ओम शङ्कर जी का वैसाख कृष्ण पक्ष सप्तमी विक्रमी संवत् २०८१ (कालयुक्त संवत्सर ) 30 अप्रैल 2024 का सदाचार सम्प्रेषण १००६ वां सार -संक्षेप

 प्रस्तुत है आचार्य श्री ओम शङ्कर जी का आज वैसाख कृष्ण पक्ष सप्तमी विक्रमी संवत् २०८१  (कालयुक्त संवत्सर )  30 अप्रैल 2024 का  सदाचार सम्प्रेषण 

  १००६ वां सार -संक्षेप


मनुष्य का जीवन अद्भुत है उस जीवन की गतिविधि का आधार उसका शरीर है शरीर में ही मन है मन के विस्तार असीमित हैं इसी असीमितता का उपयोग कर हम अपनी क्षमताएं  बढ़ा सकते हैं कर्म का पर्याय बने आचार्य जी प्रतिदिन हमें प्रेरित करते हैं कि हम अपनी क्षमताओं की पहचान करें    दम्भ न करें रामत्व की अनुभूति करें  समस्याओं का समाधान स्वयं खोजने की शक्ति बुद्धि विश्वास प्राप्त करने के लिए ,   पौराणिक वैदिक शास्त्रीय ज्ञान को सरल भाषा में समझने के लिए भक्तिभाव की अद्भुत क्षमता को जानने के लिए आइये प्रवेश करें आज की सदाचार वेला में


ज्ञान के पूर्ण भंडार उत्तरकांड में 

(भगवान् राम अयोध्या लौट आएं हैं )

रामभक्त काकभुशुण्डि जी जिन्हें लोमश ऋषि से शाप मिला था और वह शाप ही जिनके लिए वरदान हो गया और जो एक कौवे के रूप में हैं 

(काकः पक्षिषु चाण्डालः स्मृतः पशुषु गर्दभः । नराणां कोऽपि चाण्डालः स्मृतः सर्वेषु निन्दकः ।।)


परब्रह्म के एक भाग विष्णु भगवान् (त्रिशक्तियों में एक )के वाहन गरुड़ जी के संदेह भ्रम 


कारन कवन देह यह पाई। तात सकल मोहि कहहु बुझाई॥

राम चरित सुर सुंदर स्वामी। पायहु कहाँ कहहु नभगामी॥2॥


आपने यह कौवे का शरीर किस कारण से पाया? हे तात! सब समझाइये । हे स्वामी! हे आकाशगामी! यह सुंदर कल्याणकारी श्रीरामचरित मानस आपने कहाँ पाया,बताइये ॥2॥


नाथ सुना मैं अस सिव पाहीं। महा प्रलयहुँ नास तव नाहीं॥

मुधा बचन नहिं ईस्वर कहई। सोउ मोरें मन संसय अहई॥3॥


हे नाथ! मैंने भगवान् शिव जी से  सुना है कि महाप्रलय में भी आपका नाश नहीं होता और वे कभी मिथ्या वचन  नहीं कहते नहीं।

को दूर करते हैं 


जप तप मख सम दम ब्रत दाना। बिरति बिबेक जोग बिग्याना॥

सब कर फल रघुपति पद प्रेमा। तेहि बिनु कोउ न पावइ छेमा॥3॥


अनेक जप, तप, यज्ञ, शम (मन को रोकना), दम (इंद्रियों को रोकना), व्रत, दान, वैराग्य, विवेक, योग, विज्ञान आदि का फल  प्रभुराम जी के चरणों में प्रेम होना है। इसके बिना कोई कल्याण नहीं प्राप्त कर सकता

यह है भक्तिभाव की अद्भुत क्षमता भक्ति में अद्भुत शक्ति होती है 

संसार जब संस्पर्श करता है भक्ति विलीन हो जाती है तो व्यक्ति परेशान होता है 

आचार्य जी ने परामर्श दिया कि उत्तरकांड में हम ९६वें से १०३ वें  दोहे तक का भाग अवश्य पढ़ें 

सरल ग्रंथों का पारायण करें ध्यान धारणा आदि में रत हों किसी भी स्थान से अच्छा ग्रहण करें सहज रहने की चेष्टा करें 

इसके अतिरिक्त आचार्य जी ने  भैया डा अमित जी भैया अरिन्दम जी का नाम क्यों लिया आरती के लिए कौन खीझा AI की चर्चा क्यों हुई बाबा रामदेव का नाम क्यों आया जानने के लिए सुनें