निराशा और आशामय जगत का जीव हूं मैं
मनन के बाद की अनुभूति यह "संजीव हूं मैं "कभी लगता कि पंकिल भूमि का अभिजीव हूं मैं
कभी सरसिज सरोवर में प्रमुद राजीव हूं मैं l
प्रस्तुत है प्रमुद ¹ आचार्य श्री ओम शङ्कर जी का आज चैत्र कृष्ण पक्ष दशमी विक्रमी संवत् २०८० तदनुसार 4 अप्रैल 2024 का सदाचार सम्प्रेषण
*९८० वां* सार -संक्षेप
1 आनन्दित
आनन्दित रहने के लिए हमें जो भी अवसर मिले उसे चूकना नहीं चाहिए इसी कारण आनन्द के पक्ष को ही इन सदाचार वेलाओं में संजोने का हमें प्रयास करना चाहिए
आनन्दार्णव अद्भुत है
सह नौ यशः। सह नौ ब्रह्मवर्चसम्। अथातः संहिताया उपनिषदं व्याख्यास्यामः।
हमारे उपनिषदों में शिक्षा का जो संधान किया गया है वह अत्यधिक तात्त्विक है
ब्रह्मवर्चस सतत आनन्द है
प्रकृति और पुरुष के संबन्ध से बने इस संसार में यशस्विता भी आनन्दमय पक्ष है इसलिए कहा जाता है
स जीवति यशो यस्य कीर्तिर्यस्य स जीवति।
अयशोऽकीर्तिसंयुक्तः जीवन्नपि मृतोपमः॥
आनन्दमय पक्ष में रहना ही हमारा हित है हम अपनी कला को देखने पर उसी तरह आनन्दित होते हैं वह कला मूर्ति कला चित्र कला काव्य कला कुछ भी हो सकती है जैसे हमारे भीतर विद्यमान परमात्मा इस संसार को रचने पर आनन्दित होता है
ये सदाचार की वेलाएं ज्ञान का प्रदर्शन नहीं है अपितु भाव का विस्तार और अनुभूति का आधार हैं
इन्हें सुनकर हमें आत्मस्थ होने का प्रयास करना चाहिए
हम कुछ भी करने में सक्षम हैं यह अनुभूति ही हमारी निराशा दूर कर देगी
यह संसार एक नाट्य मञ्च है हमें इसमें अपना रोल पूरी लगन से ईमानदारी से निभाना चाहिए
इसी से संबन्धित आचार्य जी ने एक नाटक का प्रसंग बताया
वह नाटक ईश्वर चन्द्र विद्यासागर देखने गए थे
उस नाटक में एक पात्र था जो एक स्त्री को बहुत बुरी तरह परेशान कर रहा था उसके पीछे लगा हुआ था उसे दुःखी कर रहा था विद्यासागर सामने बैठे देख रहे थे, उनको इतना गुस्सा आ गया कि वे यह भूल गए कि यह नाटक है और उन्होंने जूता निकाला और उस विलेन पर फेंक दिया
उनको धीरे धीरे यह लगने लगा था कि यह आदमी बदमाश है और स्त्री को परेशान कर रहा है। लेकिन उस अभिनेता ने उस जूते को हाथ में लिया, सिर से लगाया और कहा कि मेरे जीवन में इससे बड़ा पुरस्कार मुझे कभी भी नहीं मिला।
अपनी भूमिका में मनोयोग से रमना हमें पुरस्कृत अवश्य करेगा
इसके अतिरिक्त किसके तेजस ने राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ के रूप में विस्तार लिया भैया दीप सिंह चौहान जी भैया शिवम कटियार जी भैया मनीष कृष्णा जी भैया प्रवीण भागवत जी भैया पुनीत श्रीवास्तव जी भैया नीरज जी का नाम आचार्य जी ने क्यों लिया जानने के लिए सुनें