पछुआ के इस कदर तपे झोंके अमराई में
झुलस झरे सब पात पात बगिया की खाई में
प्रस्तुत है समर्याद ¹ आचार्य श्री ओम शङ्कर जी का आज चैत्र कृष्ण पक्ष एकादशी विक्रमी संवत् २०८० तदनुसार 5 अप्रैल 2024 का सदाचार सम्प्रेषण
९८१ वां सार -संक्षेप
1 शिष्ट
शिष्टता मानव जीवन की सुन्दरता है और प्रतिभा का एक अन्तर्निहित नैसर्गिक तत्त्व है। दिव्य दृष्टि रखने वाले आचार्य जी का प्रयास रहता है कि हम शिष्ट बनें,अन्य सद्गुण धारण करें , षड्रिपु हमसे दूर रहें, फल की इच्छा न करते हुए हम कर्म करते चलें
श्रद्धावाँल्लभते ज्ञानं तत्परः संयतेन्द्रियः।
ज्ञानं लब्ध्वा परां शान्तिमचिरेणाधिगच्छति।।4.39।।
इन सदाचार वेलाओं से हम लाभान्वित होते हैं यहां हमें सांसारिक समस्याओं से उत्पन्न निराशा और हताशा के बाद भी आशा के अंकुर दिख जाते हैं यह हनुमान जी की कृपा है
यदि हम इन वेलाओं से तत्त्व ग्रहण कर उस मार्ग पर चल देते हैं जिस पर महान् लोग चलते रहे हैं तो आचार्य जी को व्यथित न होना पड़े
लक्ष्य को प्राप्त न कर पाने की व्यथा अर्थात् कंचन मृग की अधूरी रह गई खोज को आचार्य जी ने अपनी इस कविता में व्यक्त किया है जो काव्य संग्रह गीत मैं लिखता नहीं हूं के पृष्ठ ९७/९८ पर छपी है
सांझ उतर आयी मन की अभिलाष न पूरी है
कोई चन्द्रगुप्त गढ़ने की साध अधूरी है
शिक्षकत्व यही है
गीता में भगवान् कृष्ण
(इमं विवस्वते योगं प्रोक्तवानहमव्ययम्।
विवस्वान् मनवे प्राह मनुरिक्ष्वाकवेऽब्रवीत्।।4.1।।)
ने भी यही शिक्षकत्व दिखाया है वे कहते हैं
ये यथा मां प्रपद्यन्ते तांस्तथैव भजाम्यहम्।
मम वर्त्मानुवर्तन्ते मनुष्याः पार्थ सर्वशः।।4.11।।
जिस भाव से लोग मेरी शरण ग्रहण करते हैं उसी भाव के अनुरूप ही मैं उन्हें फल प्रदान करता हूँ। सभी लोग जाने अनजाने मेरे मार्ग का ही अनुसरण करते हैं।
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