अनेजदेकं मनसो जवीयो नैनद्देवा आप्नुवन् पूर्वमर्षत्।
तद्धावतोऽन्यानत्येति तिष्ठत् तस्मिन्नपो मातरिश्वा दधातिप्रस्तुत है द्वयातिग ¹ आचार्य श्री ओम शङ्कर जी का आज चैत्र कृष्ण पक्ष द्वादशी विक्रमी संवत् २०८० तदनुसार 6 अप्रैल 2024 का सदाचार सम्प्रेषण
*९८२ वां* सार -संक्षेप
1 रजोगुण और तमोगुण से रहित
प्रातःकाल के इन सदाचार संप्रेषणों को नित्य सुनने के लाभ अवर्णनीय हैं यह संप्रेषण रूपी अमृतात्मक चैतन्य अद्भुत है यहां भाव -पल्लवन वर्णनातीत है
श्रीमद्भग्वद्गीता, श्रीरामचरितमानस, उपनिषद् हमारे पास होने ही चाहिए और हमें इनका अध्ययन करना ही चाहिए यह पाठ्यक्रम जीवन का पाठ्यक्रम है और इससे हमें शक्ति सामर्थ्य इन्द्रिय बुद्धि कौशल चैतन्य ऊर्जा उत्साह मिलेगा अपनी समस्याओं को हम स्वयं हल कर लेंगे संगठन भी महत्त्वपूर्ण है इसलिए हमें संगठित रहना चाहिए
इष्ट का आश्रय उलझनों में हमें राह दिखाता है उन उलझनों में हम खीजते नहीं हैं इसलिए हमें अपने इष्ट पर विश्वास रखना ही चाहिए
क्योंकि
ईशावास्यमिदम् सर्वं यत्किंच जगत्यां जगत् ।
तेन त्येक्तेन भुञ्जीथा मा गृध: कस्यस्विद्धनम् ॥
उपनिषदों में प्रथम स्थान पर स्थित ईशावास्योपनिषद् का यह प्रथम मन्त्र है
यह उपनिषद् शुक्ल यजुर्वेद का चालीसवां अध्याय है
ईशावास्यमिदं सर्वम्' से प्रारम्भ होने के कारण ही यह 'ईशोपनिषद् ' अथवा 'ईशावास्योपनिषद् ' के नाम से विख्यात है इसमें ईश्वर के गुणों का वर्णन है और अधर्म- त्याग का उपदेश है
इस जगत् में जो कुछ है वह परमात्मा का है हमारा यहाँ कुछ नहीं है
कुर्वन्नेवेह कर्माणि जिजीविषेत् शतं समाः।
एवं त्वयि नान्यथेतोऽस्ति न कर्म लिप्यते नरे ॥
इस संसार में कर्म करते हुए ही मनुष्य को सौ वर्ष जीने की इच्छा करनी चाहिए
असूर्या नाम ते लोका अन्धेन तमसावृताः।तांस्ते प्रेत्याभिगच्छन्ति ये के चात्महनो जनाः ॥
वे लोक सूर्य से रहित हैं और घोर अन्धकार से आच्छादित हैं। उन लोकों में वे सारे लोग यहां से प्रयाण करने पर पहुंचते हैं जो भी अपनी आत्मा का हनन करते हैं।जो केवल संसार में लिप्त रहते हैं उन्हें तो कष्ट मिलेगा ही
तदेजति तन्नैजति तद् दूरे तद्वन्तिके।
तदन्तरस्य सर्वस्य तदु सर्वस्यास्य बाह्यतः ॥
वह गतिशील है और नहीं भी, वह दूर है और पास भी है सबके भीतर है और सबके बाहर भी है।
तुलसीदास जी भी कहते हैं
बिनु पद चलइ सुनइ बिनु काना। कर बिनु करम करइ बिधि नाना॥
आनन रहित सकल रस भोगी। बिनु बानी बकता बड़ जोगी॥
वह बिना पैर के चलता है, बिना कान के सुनता है, बिना हाथ के बहुत से काम करता है, बिना आनन सारे रसों का आनंद लेता है और बिना वाणी के अतियोग्य वक्ता है।
गीता में
सर्वेन्द्रियगुणाभासं सर्वेन्द्रियविवर्जितम्।
असक्तं सर्वभृच्चैव निर्गुणं गुणभोक्तृ च।।13.15।।
वह सारी इन्द्रियों के कार्यों से प्रकाशित होने वाला, परन्तु समस्त इन्द्रियों से रहित है आसक्ति रहित है गुण रहित है फिर भी सारे संसार का भरण पोषण करता है सारे गुणों का भोक्ता है
मत्तः परतरं नान्यत्किञ्चिदस्ति धनञ्जय।
मयि सर्वमिदं प्रोतं सूत्रे मणिगणा इव।।7.7।।
भगवान् से श्रेष्ठ कुछ नहीं है। यह सम्पूर्ण जगत् सूत्र में मणियों के सदृश उसमें पिरोया हुआ है।
इसके अतिरिक्त आचार्य जी ने भैया संतोष मिश्र जी भैया संदीप रस्तोगी जी भैया प्रदीप वाजपेयी जी भैया मनीष कृष्णा जी भैया प्रवीण भागवत जी भैया पीयूष बंका जी का नाम क्यों लिया बल्लियों का उदाहरण आचार्य जी ने क्यों दिया हिरन के जाल में फंसने का क्या तात्पर्य है जानने के लिए सुनें