7.4.24

आचार्य श्री ओम शङ्कर जी का चैत्र कृष्ण पक्ष त्रयोदशी विक्रमी संवत् २०८० तदनुसार 7 अप्रैल 2024 का सदाचार सम्प्रेषण *९८३ वां* सार -संक्षेप

 गरीबी जिन्दगी भर बोझ ढोती जूझती रहती

कि अपनों की पहेली को जनम भर बूझती रहती..
गरीबी अमीरी उत्थान पतन लाभ हानि यश अपयश संसार का स्वरूप हैं लेकिन हम केवल संसार नहीं हैं हमें यह समझना चाहिए

प्रस्तुत है निराशङ्क ¹ आचार्य श्री ओम शङ्कर जी का आज चैत्र कृष्ण पक्ष त्रयोदशी विक्रमी संवत् २०८० तदनुसार 7 अप्रैल 2024 का सदाचार सम्प्रेषण
  *९८३ वां* सार -संक्षेप
1 निर्भय

अपने समय का सदुपयोग करने के लिए ये सदाचार संप्रेषण एक अच्छा माध्यम हैं हमें यहां अपनी समस्याओं को सुलझाने का एक उपाय मिल जाता है यहां हम, जिन पर मोह के पर्दे पड़े हैं, आध्यात्मिक आनन्द का अनुभव प्राप्त करते हैं


उठो उत्साह से जनतंत्र का उत्सव मनाओ ,
भरत भू के सुखद भवितव्य के शुभ गीत गाओ,
अभी भी देश द्रोही भिनभिनाते फिर रहे हैं,
इन्हें यज्ञाग्नि के शिव धूम्र से बाहर भगाओ।


परमार्थी योगी जाग्रत आचार्य जी का हमारे भीतर ज्ञान की रश्मि को प्रवेश कराने का हमें उत्साहित उद्बुद्ध ऊर्ध्वमुखी करने का हमको अपने चैतन्य की अनुभूति कराने का हमारे विवेक को जाग्रत करने का यह प्रयास अद्भुत है हमें इष्ट की कृपा की अनुभूति करनी चाहिए
अपना खानपान सही रखना चाहिए प्राणायाम आदि करना चाहिए हमें आत्मानन्द की अनुभूति करनी चाहिए भाव जब जगतमय हो जाते हैं तो कमजोरी आती है और जब भक्तिमय हो जाते हैं तो शक्ति आती है


एहिं जग जामिनि जागहिं जोगी। परमारथी प्रपंच बियोगी॥
जानिअ तबहिं जीव जग जागा। जब सब बिषय बिलास बिरागा॥


इस जगत रूपी रात में योगी जन जागते हैं, जो परमार्थी हैं और प्रपंचों से छूटे हुए हैं। जगत में जीव को तभी जाग्रत मानना चाहिए जब उसे सारे भोग-विलासों से वैराग्य हो जाए

रामचरित मानस एक अद्भुत ग्रंथ है
पार्वती जी का एक गम्भीर प्रश्न है राम कौन हैं?

जौं नृप तनय त ब्रह्म किमि नारि बिरहँ मति भोरि।
देखि चरित महिमा सुनत भ्रमति बुद्धि अति मोरि॥

यदि वे राजा हैं तो ब्रह्म कैसे और यदि ब्रह्म हैं तो स्त्री के विरह में उनकी मति बावली कैसे?
 उनके ऐसे चरित्र देखकर और उधर उनकी महिमा सुनकर मेरी बुद्धि चकरा गई है
पिछले जन्म में भी ऐसा ही हुआ था
मैं बन दीखि राम प्रभुताई। अति भय बिकल न तुम्हहि सुनाई॥
तदपि मलिन मन बोधु न आवा। सो फलु भली भाँति हम पावा॥


रघुपति चरित महेस तब हरषित बरनै लीन्ह॥

जेहि इमि गावहिं बेद बुध जाहि धरहिं मुनि ध्यान।
सोइ दसरथ सुत भगत हित कोसलपति भगवान॥ 118॥

जिनका वेद और पंडित इस प्रकार से वर्णन करते हैं और मुनिजन जिनका ध्यान धरते हैं, वही दशरथनंदन, भक्तों के हितकारी, अयोध्या के स्वामी प्रभु राम हैं॥

मुनि जेहि ध्यान न पावहिं नेति नेति कह बेद।
कृपासिंधु सोइ कपिन्ह सन करत अनेक बिनोद॥117 क॥


इसके अतिरिक्त आचार्य जी आज कहां कहां जा रहे हैं आचार्य जी ने भैया पीयूष बंका का नाम क्यों लिया जानने के लिए सुनें