प्रस्तुत है कृतावधान ¹ आचार्य श्री ओम शङ्कर जी का आज चैत्र शुक्ल पक्ष प्रतिप्रदा विक्रमी संवत् २०८१ (कालयुक्त संवत्सर )तदनुसार 9 अप्रैल 2024 मङ्गलवार का सदाचार सम्प्रेषण
*९८५ वां* सार -संक्षेप1 सावधान
हम सावधान रहते हुए नई पीढ़ी को बताएं कि हमारा नववर्ष आज से प्रारंभ हो रहा है
आज सनातन नववर्ष का प्रथम दिवस है कालगणना भारतीय जीवन दर्शन और भारतीय संस्कृति का एक अंग है भारतीय जीवन दर्शन जो कहता है
सर्वे भवन्तु सुखिनः सर्वे सन्तु निरामयाः ।
सर्वे भद्राणि पश्यन्तु मा कश्चित् दुःखभाग्भवेत्।।
और हमें यह अनुभव कराता है कि हम सृष्टिकर्ता के साथी सहयोगी हैं यह संसार एक नाट्यमंच है और हर व्यक्ति उसका एक ऐसा कृशाश्विन् है जिसे अपनी भूमिका सुस्पष्टता के साथ निभानी चाहिए
पूरे वर्ष शक्ति बुद्धि विचार सामञ्जस्यपूर्ण ढंग से हमें उत्साहित रखें हमारा शरीर मन बुद्धि परिवेश स्वस्थ रहे हम शक्ति के लिए अध्यात्म की अनुभूति करें तमस् के दोष सद्गुण बनें हमारा देवत्व जागे जिससे हमारे अन्दर देने की भावना आए और दैत्यत्व हमसे दूर भागे क्योंकि दैत्यत्व शोषण की भावना पैदा करता है
प्रतिकूल परिस्थितियों में हम घबराएं नहीं विकारों की समीक्षा करें अपना चिन्तन पक्ष विकसित करें भारत मां की सेवा में सन्नद्ध हों प्रचार की अधिक कामना न करें इसकी आचार्य जी कामना करते हुए अपने भाव निम्नलिखित कविता के माध्यम से व्यक्त कर रहे हैं इस कविता में आचार्य जी यह भी स्पष्ट कर रहे हैं कि संसार के साथ चलने के लिए सत्व के साथ रजस् का संस्पर्श भी आवश्यक है
नववर्ष मंगलमय सुखद आनन्दमय उल्लासमय हो
हिन्दू सनातन धर्म वैश्विक धर्म चरम विकासमय हो
अध्यात्म मंगल गान गाए युग नए पथ पर प्रगत हो
भारती भावों सहित संसार का हर दर सुगत हो
सत्व रज का हो समन्वय तमस् का अस्तित्व भागे
मानवी जीवन समुन्नत हो प्रखर देवत्व जागे
सिन्धु सर सरिता सरोवर सलिलमय शीतल सुमन हों
सभी का जीवन सरल शुचि सौम्य मंगलमय प्रमन हो
गीता में
सर्वकर्मण्यपि सदा कुर्वाणो मदव्यापाश्रयः।
मत्प्रसादाद्वाप्नोति शाश्वतं पदमव्ययम्।।18.56।।
शुद्ध भक्ति के साथ भगवान् के भाव में रहते हुए हम संसार के कार्य करते रहें संसारी कामों से हमें भागना नहीं है लेकिन भगवान् ही हमें उन कामों को करने की शक्ति दे रहा है इसमें दुविधा नहीं होनी चाहिए
चेतसा सर्वकर्माणि मयि संन्यस्य मत्परः।
बुद्धियोगमुपाश्रित्य मच्चित्तः सततं भव।।18.57।।
हमें अहंकारवश कोई कार्य नहीं करना है
आचार्य जी ने स्पष्ट किया कि जो सितम्बर में हम राष्ट्रीय अधिवेशन करने जा रहे हैं उसके पीछे क्या कारण है
कारण है सत्व और रज के समन्वित स्वरूप को प्रस्तुत करते हुए समाज को एक उम्मीद बंधाना
इसके अतिरिक्त आचार्य जी ने भैया अरविन्द जी भैया पुनीत जी भैया अजय कृष्ण जी का नाम
क्यों लिया जानने के लिए सुनें