प्रस्तुत है असेचन आचार्य श्री ओम शङ्कर जी का आज वैसाख शुक्ल पक्ष तृतीया विक्रमी संवत् २०८१ (कालयुक्त संवत्सर ) 10 मई 2024 का सदाचार सम्प्रेषण
१०१६ वां सार -संक्षेप
¹ मनोहर
परमात्मा ने मनुष्य का जो शरीर बनाया है वह पशु शरीर से भिन्न है मनुष्य का शरीर मिलने के बाद भी जो मनुष्य पशु जैसा व्यवहार करते हैं वे अन्याय करते हैं
येषां न विद्या न तपो न दानं ज्ञानं न शीलं न गुणो न धर्मः ।
ते मृत्युलोके भुवि भारभूता मनुष्यरूपेण मृगाश्चरन्ति ॥13॥
हमें मनुष्यत्व की अनुभूति होनी ही चाहिए
हमारा शरीर कर्म के लिए बना है
केवल मनुष्य शरीर में ही कर्म करना संभव है। यही एक मात्र कर्म योनि है, अन्य सभी शरीर भोगयोनि हैं
मानव जीवन कर्म प्रधान है।
यही बात हमारे ऋषि महर्षि त्यागी तपस्वी कहते चले आए हैं इसकी परम्परा चली है
प्राचीन काल से गुरु-शिष्य परम्परा द्वारा एक-दूसरे तक यह बात पहुँचती रही है।
ऐसी आदर्श परम्परा को प्राप्त कर हम आनन्दपूर्वक यहां अपना जीवन जी रहे हैं तो हम कर्महीन नहीं रह सकते
जैसे गीता में
इमं विवस्वते योगं प्रोक्तवानहमव्ययम्।
विवस्वान् मनवे प्राह मनुरिक्ष्वाकवेऽब्रवीत्।।4.1।।
हमें अपने साथ कुछ आदर्श लेकर चलने चाहिए जैसे हमारे आदर्श शिक्षक हैं आचार्य विष्णुगुप्त अर्थात् चाणक्य, आदर्श संत हैं आदि शंकराचार्य,
आदर्श सर्वश्रेष्ठ साहित्यवेत्ता गोस्वामी तुलसीदास और आदर्श राजनेता पं दीनदयाल
हमारी भारतीय संस्कृति अद्भुत है यह अत्यन्त गूढ़ है जो इस गूढ़त्व को जान लेते हैं वो आनन्दित रहते हैं हमारी संस्कृति संपूर्ण विश्व को आर्य बनाना चाहती है और इसके लिए सक्षम कौन है सक्षम वह है जिसके अंदर शक्ति भक्ति भाव विचार कौशल तत्परता बुद्धि तप त्याग है
हम इसका चिन्तन करें कि हमें अपना व्यवहार कैसा रखना है
बुरा जो देखन मैं चला, बुरा न मिलिया कोय ।
जो दिल खोजा आपना, मुझसे बुरा न कोय ।।
हम आत्मानुभूति करें ईश्वर हमारे अन्दर विद्यमान है
चिदानन्द रूप: शिवोऽहं शिवोऽहम्
हनुमान जी जैसी शक्ति पाने के लिए हनुमान जैसा भाव हमारे अन्दर आना चाहिए
इसके अतिरिक्त आचार्य जी के साथ चित्रकूट कौन जा रहा है OTC की चर्चा क्यों हुई व्यक्तित्व विकास शिविर कहां चल रहा था जानने के लिए सुनें