9.5.24

आचार्य श्री ओम शङ्कर जी का वैसाख शुक्ल पक्ष प्रतिप्रदा विक्रमी संवत् २०८१ (कालयुक्त संवत्सर ) 9 मई 2024 का सदाचार सम्प्रेषण १०१५ वां सार -संक्षेप

 शपथ लेना तो सरल है

पर निभाना ही कठिन है।

साधना का पथ कठिन है

साधना का पथ कठिन है ॥


शलभ बन जलना सरल है

प्रेम की जलती शिखा पर।

स्वयं को तिल-तिल जलाकर

दीप बनना ही कठिन है ॥१॥


है अचेतन जो युगों से

लहर के अनुकूल बहते

साथ बहना है सरल

प्रतिकूल बहना ही कठिन है ॥२॥


ठोकरें खाकर नियति की

युगों से जी रहा मानव।

है सरल आँसू बहाना 

मुस्कराना  ही कठिन है ॥३॥


तप-तपस्या के सहारे

इन्द्र बनना तो सरल है।

स्वर्ग का ऐश्वर्य पाकर

मद भुलाना ही कठिन है ॥४॥


प्रस्तुत है ज्ञान -तिमिरनुद् आचार्य श्री ओम शङ्कर जी का आज वैसाख शुक्ल पक्ष प्रतिप्रदा विक्रमी संवत् २०८१  (कालयुक्त संवत्सर )  9 मई 2024 का  सदाचार सम्प्रेषण 

  १०१५ वां सार -संक्षेप

¹ ज्ञान का सूर्य

हम लोग सौभाग्यशाली हैं कि प्रतिदिन हमें इन सदाचार संप्रेषणों के माध्यम से मार्गदर्शन मिल जाता है हम इन्हें सुनकर और सुनने के पश…

शपथ लेना तो सरल है

पर निभाना ही कठिन है।

साधना का पथ कठिन है

साधना का पथ कठिन है ॥


शलभ बन जलना सरल है

प्रेम की जलती शिखा पर।

स्वयं को तिल-तिल जलाकर

दीप बनना ही कठिन है ॥१॥


है अचेतन जो युगों से

लहर के अनुकूल बहते

साथ बहना है सरल

प्रतिकूल बहना ही कठिन है ॥२॥


ठोकरें खाकर नियति की

युगों से जी रहा मानव।

है सरल आँसू बहाना 

मुस्कराना  ही कठिन है ॥३॥


तप-तपस्या के सहारे

इन्द्र बनना तो सरल है।

स्वर्ग का ऐश्वर्य पाकर

मद भुलाना ही कठिन है ॥४॥


प्रस्तुत है ज्ञान -तिमिरनुद् आचार्य श्री ओम शङ्कर जी का आज वैसाख शुक्ल पक्ष प्रतिप्रदा विक्रमी संवत् २०८१  (कालयुक्त संवत्सर )  9 मई 2024 का  सदाचार सम्प्रेषण 

  १०१५ वां सार -संक्षेप

¹ ज्ञान का सूर्य

हम लोग सौभाग्यशाली हैं कि प्रतिदिन हमें इन सदाचार संप्रेषणों के माध्यम से मार्गदर्शन मिल जाता है हम इन्हें सुनकर और सुनने के पश्चात् गुनकर इनका लाभ उठाते हैं गुनना आवश्यक है

भरसक प्रयत्न करके अपने भीतर का अंधकार दूर करें  (अध्यात्म यही है )


 इस प्रसाद को ग्रहण करने के पश्चात् शक्ति सामर्थ्य का भी अनुभव करें (अर्थात् शौर्य प्रमंडित अध्यात्म  )मलिनता दूर करें विवादों से बचें अपनी कुंठाएं स्वयं व्यक्त न करें मानस -सागर में निमग्न होने का प्रयास करें मन का नियमन करने वाले विविध विधानों का पालन करें लेखन -योग की ओर उन्मुख हों 

नाव का लंगर खोलकर नाव चलाएं अन्यथा समय बीत जाएगा चप्पू चलाते जाएंगे नाव वहीं 

की वहीं खड़ी  मिलेगी 

 संसार अद्भुत है  यह साधनों से भरा हुआ भी है और साधनामय भी है 

साधना को भारतवर्ष में सबसे बड़ा प्राप्तव्य माना गया है यद्यपि साधना का पथ कठिन है


संसार में रहने का विधान है कि 


विद्याञ्चाविद्याञ्च यस्तद्वेदोभयं सह।

अविद्यया मृत्युं तीर्त्वा विद्ययाऽमृतमश्नुते ॥

आचार्य जी ने वर्तमान में चल रहे चुनावों की चर्चा की


मतदान लोकतंत्रीय प्रणाली का पहिया,

पहिए के बिना समूची गाड़ी लँगड़ी है। 

जब जहाँ उपेक्षा इस पहिए की हुई वहीं, 

जड़ता कर्दम के साथ छितर कर बगड़ी है। 

हम सभी उठें इस पहिए को गतिमय करके, 

राष्ट्रीय और मानवधर्मिता सनाथ करें। 

उसको सौंपें इस देवभूमि के नीति-नियम ,

जो तत्व शक्ति शिव शौर्य भक्ति के साथ वरे। ।


आचार्य जी ने एक और अत्यन्त प्रेरक ६ नवम्बर २०१५ को  रची अपनी  एक कविता सुनाई 



यदि संवाद विवाद के लिए करना है 

बेहतर है हम दोनों ही चुपचाप रहें..


यह पूरी कविता क्या है आचार्य जी चित्रकूट कब जा रहे हैं जानने के लिए सुनें