प्रस्तुत है कर्मयोद्धा आचार्य श्री ओम शङ्कर जी का आज वैसाख शुक्ल पक्ष षष्ठी विक्रमी संवत् २०८१ (कालयुक्त संवत्सर ) तदनुसार 13 मई 2024 का सदाचार सम्प्रेषण
१०१९ वां सार -संक्षेप
परमपिता परमेश्वर जिस समय अपनी निर्विकल्प समाधि से जागता है तो उसके मन में इच्छा होती है एकोऽहं बहुस्याम
एक हूं बहुत होना चाहता हूं एक से अनेक होने पर फिर परमात्मा उन सबका नियन्त्रण और व्यवस्था भी करता है अद्भुत है उसकी लीला वही लीला हम परमात्मा के प्रतिनिधि मनुष्य भी करते हैं जब वह लीला से भटक जाता है तो वह ढोंग हो जाता है जो बहुत विकार उत्पन्न करता है मतदान ढोंग नहीं है यह एक व्यवस्था है हमारा कर्तव्य है कि हम स्वयं तो मतदान करें ही अन्य को भी प्रेरित करें
मत उसे दें जो राष्ट्र का हितैषी, सक्षम,योग्य, समझदार हो जो प्रतिनिधित्व करना जानता हो, समाज के दुःख और सुख में भागीदार हो
वर्तमान में जो प्रतिनिधि दिख रहे हैं उनमें ज्यादातर दिखावा करते हैं लोभ लाभ में अधिक लिप्त रहते हैं लेकिन जो दिखावा नहीं करते उन्हें ज्यादा मेहनत करनी पड़ती है जैसे मोदी जी को अधिक दौरे करने पड़ रहे हैं ऐसा अन्य लोग भी करने लगें तो केवल एक को इतना जूझने की आवश्यकता नहीं होती अन्य शिकायत करते हैं कि उनकी बात कोई सुनता नहीं हमारी बात तभी सुनी नहीं जाती जब हम स्वयं अपनी बात को सुनने के लिए तैयार नहीं होते अपने को पहचानने की आवश्यकता है
इन वेलाओं से विचारों को प्राप्त कर अपनी कार्यशैली को सुधारने की आवश्यकता है
हम उत्साहित रहें अखंड भारत का स्वप्न साकार होगा इसके लिए आशान्वित रहें
आचार्य जी ने इसके अतिरिक्त भैया अरविन्द जी भैया पुनीत जी का नाम क्यों लिया चित्रकूट की चर्चा क्यों की आदि जानने के लिए सुनें