14.5.24

आचार्य श्री ओम शङ्कर जी का वैसाख शुक्ल पक्ष सप्तमी विक्रमी संवत् २०८१ (कालयुक्त संवत्सर ) 14 मई 2024 का सदाचार सम्प्रेषण १०२० वां सार -संक्षेप

 प्रस्तुत है वदान्य ¹ आचार्य श्री ओम शङ्कर जी का आज वैसाख शुक्ल पक्ष सप्तमी विक्रमी संवत् २०८१  (कालयुक्त संवत्सर )  14 मई 2024 का  सदाचार सम्प्रेषण 

  १०२० वां सार -संक्षेप

¹ दानशील


हम शिक्षार्थियों को उत्साहित करने के लिए हमें कुंठाओं से मुक्त करने के लिए हमारा कल्याण करने के लिए हमें श्रम पौरुष पराक्रम की अनुभूति कराने के लिए  हमें आत्मस्थता का अनुभव कराने के लिए आचार्य जी नित्य प्रयास करते हैं आइये प्रवेश करें उन्हीं की आज की वेला में


भारतवर्ष का जीवन अद्भुत जीवन है यहां हमेशा श्रम और पौरुष का रिवाज रहा है यहां हम विद्या और अविद्या दोनों प्राप्त करते हैं क्योंकि दोनों ही महत्त्वपूर्ण हैं 

यहां सदाचारमय विचारों को ग्रहण कर जीवन को व्यतीत करना धर्म है 

दुनिया को परिभाषित करते हुए आचार्य जी कहते हैं 


इस दुनिया में सबका अपना अलग अलग अंदाज है

सबकी बोली सबकी शैली अलग अलग आवाज है

तरह तरह के रंग रूप रुचियों का अद्भुत मेल है 

अजब सुहाना अकस्मात् मिट जाने वाला खेल है


प्यार और तकरार प्रेम की पीर सुखद अनुभूति है 

जो जलकर के राख हो गई उसका नाम विभूति है 

सबका सुर सबका तेवर है सबका अपना साज है 

इस दुनिया में...



दुनियादारी की भी सबकी अलग अलग परिभाषा है 

शब्दों का  अंदाज अलग पर वही एक सी भाषा है 

दुनिया में आना जीना जाना तो एक बहाना है 

सचमुच में दुनियादारी का अजब गजब अफसाना है 

यह अफसाना ही दुनिया का अपना एक मिजाज है

हर पारखी यहां पर रखता अपनी अपनी माप है 

पैमानों पर लगी हुई है सबकी अपनी  छाप है 

ये पैमाने ही दुनिया भर के सारे संघर्ष हैं 

क्योंकि सबके यहां हो जाते  अलग अलग निष्कर्ष हैं 

खुश हो जाता एक दूसरे पर जब गिरती गाज है 

दुनिया में रहते रहने पर सबको सभी अखरते हैं 

और गुम हो जाने पर सुधियों में प्रायः रोज उभरते हैं 

अच्छा बुरा प्रेम नफरत दुनियादारी के नखरे हैं 

तरह तरह के छ्ल प्रपंच कोने कोने में पसरे हैं 

दिन में शीश मुफलिसी ढोता रात पहनता ताज है 

ज्ञान नसीहत का खुमार है 

ध्यान यहां सोना चांदी 

विश्वासों की छत के नीचे 

रिश्तों की है आबादी....



इसकी शेष पंक्तियां क्या है इसके अतिरिक्त आचार्य जी ने अन्य कविताएं कौन सी सुनाईं 

निराला जी का उल्लेख क्यों हुआ जानने के लिए सुनें