प्रस्तुत है करुणापर ¹ आचार्य श्री ओम शङ्कर जी का आज वैसाख शुक्ल पक्ष अष्टमी विक्रमी संवत् २०८१ (कालयुक्त संवत्सर ) 15 मई 2024 का सदाचार सम्प्रेषण
१०२१ वां सार -संक्षेप
¹अत्यन्त कृपालु
अत्यन्त कृपालु हनुमान जी की कृपा से हमें ये सदाचार संप्रेषण प्राप्त हो रहे हैं यह परमात्मा का एक लीला क्रम है जिसमें हम अपने अंदर विद्यमान शक्ति भक्ति बुद्धि भाव विचार की अनुभूति करते हैं
चिदानन्द रूपः शिवोऽहं शिवोऽहम्
अत्यन्त व्यस्त रहने वाले हम लोगों के लिए ये क्षण अत्यन्त महत्त्वपूर्ण हैं हमें इनसे लाभ उठाना चाहिए
विषम से विषम परिस्थितियों में रहने के बाद आचार्य जी हमारा मार्गदर्शन कर रहे हैं यह एक आश्चर्य का विषय है
जो अच्छा है उसकी अनुभूति करना श्रेयस्कर है कबीर कहते हैं
साधो सहज समाधि भली।
गुरु-प्रताप जा दिन तैं उपजी,
दिन-दिन अधिक चली॥
समाधिस्थ अवस्था अद्भुत होती है यदि कुछ क्षणों के लिए भी हमें यह अवस्था प्राप्त हो जाए तो हमारे भीतर का नैराश्य समाप्त हो जाता है आचार्य जी परामर्श दे रहे हैं कि हम इस ओर अवश्य उन्मुख हों अपने भावों को गद्य पद्य नाटक आदि के रूप में अवश्य अंकित करें डायरी लिखें अपने अनुभव लिखें और उपनिषदों का अध्ययन अवश्य करें क्योंकि वे वेद ब्रह्मसूत्र से सरल हैं
केन उपनिषद् से
ॐ आप्यायन्तु ममाङ्गानि वाक्प्राणश्चक्षुः श्रोत्रमथो बलमिन्द्रियाणि च सर्वाणि ।
हमें अध्ययन करने से पहले अपना स्वास्थ्य भी देखना है यदि हम स्वस्थ नहीं रहेंगे हमारे अंग परिपुष्ट नहीं होंगे हम प्रसन्न नहीं रहेंगे तो हम अध्ययन करने पर कुछ समझ नहीं पाएंगे
हम शरीर को कष्ट देकर साधना करेंगे तो सिद्धि तक नहीं पहुंचेंगे लेकिन शरीर को सुविधा देकर भी साधना करेंगे तो भी सिद्धि संभव नहीं
आत्मविश्वास सदैव सफलता दिलाता है इसलिए आत्मविश्वासी बनें
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