प्रस्तुत है पुष्ट ¹ आचार्य श्री ओम शङ्कर जी का आज वैसाख शुक्ल पक्ष नवमी विक्रमी संवत् २०८१ (कालयुक्त संवत्सर ) 16 मई 2024 का सदाचार सम्प्रेषण
१०२२ वां सार -संक्षेप
¹ बलवान्
प्रस्तुत है पुष्ट ¹ आचार्य श्री ओम शङ्कर जी का आज वैसाख शुक्ल पक्ष नवमी विक्रमी संवत् २०८१ (कालयुक्त संवत्सर ) 16 मई 2024 का सदाचार सम्प्रेषण
१०२२ वां सार -संक्षेप
¹ बलवान्
हमें पुष्ट सशक्त बलशाली भाव -समृद्ध आदि बनाने का एक सिलसिला हमारी भारतीय संस्कृति में चला आ रहा है
हमें उत्साहित उमंगित करने का आचार्य जी का नित्य का यह प्रयास अद्भुत है हमें उद्बोधित करके आचार्य जी प्रयास करते हैं कि इन संप्रेषणों के विचारों से हम वह आत्मिक शक्ति उत्पन्न कर सकें जो हमें बड़ी से बड़ी समस्या का भी आसान समाधान उपलब्ध करा सके
(समस्या आई है तो समझें कि यह परमात्मा की कोई व्यवस्था है यदि वह हल हो गई तो समझें परमात्मा की कृपा है)
आचार्य जी परामर्श देते हैं कि हम अध्ययन स्वाध्याय चिन्तन मनन लेखन में रत हों
संसार में हम हैं तो आचार हमें करना ही पड़ेगा औऱ यदि वह सत् आचार हो तो यह आनन्द वर्णनातीत है
रामचरित मानस का प्रसंग है
अवतारी सिद्ध पुरुष भरत जी कह रहे हैं
(जन्म-जन्म में उनका श्री राम जी के चरणों में प्रेम हो, बस, यही वरदान वह माँगते हैं)
मागउँ भीख त्यागि निज धरमू। आरत काह न करइ कुकरमू॥
अस जियँ जानि सुजान सुदानी। सफल करहिं जग जाचक बानी॥4॥
मैं अपना धर्म ( क्षत्रिय धर्म में मांगा नहीं जाता ) त्याग आप से भीख माँगता हूँ। पीड़ित मनुष्य कौन सा बुरा कर्म नहीं करता?
यह जानकर उत्तम दानी याचनाकर्ता की वाणी को सफल किया करते हैं ll
आचार्य जी कहते हैं हम सब मध्यम जीवन स्तर मध्यम आर्थिक स्थिति वाले हैं मध्यम समाज के स्वरूप हम लोग यह हीनभावना कभी न लाएं कि हमारे साथ मध्यम शब्द संयुत है आचार्य जी ने स्पष्ट किया कि मध्यम कितना महत्त्वपूर्ण है जैसे कंठ से कटि शरीर का मध्यम भाग है जो मनुष्य की साधना का आधार है महापुरुष मध्यम वर्ग के ही हुए माध्यमिक शिक्षा कितनी महत्त्वपूर्ण है देखने की बात है
मध्यम होने का भाव बुरा नहीं है जब इस भाव में शौर्य शक्ति का प्रवेश हो तो ऐसा मनुष्य बहुत कुछ कर सकता है
किशोरावस्था मध्यम का संस्पर्श करती है
आचार्य जी ने बताया कि सृष्टि -तत्त्व में परमात्म स्वरूप का विस्तार से वर्णन है
हमारे देश में अनगिनत संकट आए अन्य देश कुछ संकटों को भी नहीं झेल पाए और बदल गए
हमारा देश अद्भुत है
जिस दिन सबसे पहले जागे,
नव-सिरजन के स्वप्न घने,
जिस दिन देश-काल के दो-दो,
विस्तृत विमल वितान तने,
जिस दिन नभ में तारे छिटके,
जिस दिन सूरज-चांद बने,
तब से है यह देश हमारा,
यह अभिमान हमारा है।
हम उस देश के वासी हैं जिस देश में गंगा बहती है गंगा गायत्री गौमाता गीता वाला यह देश है
हम जो भी अच्छा करेंगे समाज पर उसका प्रभाव होगा
इसके अतिरिक्त आचार्य जी ने सोमलता की चर्चा क्यों की परमात्मा का सृष्टि -बोध क्या है वार्षिक अधिवेशन की चर्चा क्यों हुई
भैया अमित सिंह जो अपने विद्यालय में रहकर, मोतीलाल खेड़िया विद्यालय में पढ़े हैं (आपके पिता श्री राजेन्द्र सिंह जी चित्रकूट में अपने दीनदयाल शोध संस्थान के कार्यकर्ता हैं। )की चर्चा आचार्य जी ने क्यों की जानने के लिए सुनें