17.5.24

आचार्य श्री ओम शङ्कर जी का वैसाख शुक्ल पक्ष दशमी विक्रमी संवत् २०८१ (कालयुक्त संवत्सर ) 17 मई 2024 का सदाचार सम्प्रेषण १०२३ वां सार -संक्षेप

 केनेषितं पतति प्रेषितं मनः। केन प्राणः प्रथमः प्रैति युक्तः।

केनेषितां वाचमिमां वदन्ति। चक्षुः श्रोत्रं क उ देवो युनक्ति ॥



प्रस्तुत है परिनिष्ठित ¹ आचार्य श्री ओम शङ्कर जी का आज वैसाख शुक्ल पक्ष दशमी विक्रमी संवत् २०८१  (कालयुक्त संवत्सर )  17 मई 2024 का  सदाचार सम्प्रेषण 

  १०२३ वां सार -संक्षेप

¹ पूर्ण कुशल


ये सदाचार संप्रेषण अत्यन्त महत्त्वपूर्ण हैं दिन भर तो हम सांसारिक गतिविधियों में व्यस्त रहते ही हैं यदि प्रातः कुछ समय के लिए  पूजा भाव से हम आत्मस्थ होने की चेष्टा करें तो हमारे लिए यह अत्यन्त लाभकारी होगा

हम कामना करें कि जब तक हम इस संसार में रहें हमारा मन हमारे अंग परिपुष्ट रहें 



ॐ आप्यायन्तु ममाङ्गानि वाक्प्राणश्चक्षुः श्रोत्रमथो बलमिन्द्रियाणि च सर्वाणि

हमारा ध्यान हमारा भाव 

यह भी बना रहे कि हमारे शरीर में अवस्थित सारा विभव परमात्मा की कृपा से ही संभव हुआ है हमें दंभ न हो 

तात्विक अहं तो रहे लेकिन सांसारिक दंभ न रहे 

इस भावभूमि पर हम जितनी देर अवस्थित रहेंगे तो सांसारिक समस्याओं के आने पर हम खीझेंगे नहीं और उन समस्याओं को सुलझा भी लेंगे


इसी कारण हमारे यहां पूजा प्रार्थना का विधान है इसे धर्म के साथ संयुत किया गया सनातन धर्म अद्भुत है  अद्वितीय है जिसमें पूजा पाठ की नियमित व्यवस्था है इसकी तुलना किसी अन्य पंथ से नहीं की जा सकती 

एक सज्जन कहते हैं भगवान् राम और  बाबर की तुलना  गुड़ गोबर की तुलना करना है 

औपनिषदिक शिक्षा नई पीढ़ी को भी देने की आवश्यकता है 

जो अच्छा है उसे ग्रहण करें उससे सीख लें उस अच्छाई का शतगुणित विस्तार करें


आज हिमालय की चोटी से फिर हम ने ललकरा है

 दूर हटो ऐ दुनिया वालों हिन्दुस्तान हमारा है



हम संघर्षरत रहे हैं अपने को बचाने की चेष्टा करते रहे हैं लेकिन अब समय है हम अपना विस्तार करें


फिर अन्तरतम की ज्वाला से, जगती में आग लगा दूं मैं।

यदि धधक उठे जल, थल, अम्बर, जड़, चेतन तो कैसा विस्मय?

हिन्दू तन-मन, हिन्दू जीवन, रग-रग हिन्दू मेरा परिचय!

संपूर्ण विश्व को आर्य बनाने के लिए हम कृतसंकल्प हैं 

यह तभी संभव होगा जब हम अपने भाव अपने विचार अपनी भाषा अपना व्यवहार आचरण सही रखेंगे संगठित रहेंगे एक साथ बैठने की आदत डालेंगे 

आचार्य जी ने परामर्श दिया अपनों से टेलीफोन द्वारा भी संपर्क करें 

राष्ट्रीय अधिवेशन के लिए भी सक्रिय हों  इसका अन्तरराष्ट्रीय स्वरूप हो इसके लिए सभी प्रयासरत हों 

जागृति का संदेश दें 

अपने सिद्धांतों पर आधारित लक्ष्य की चर्चा करें विचारों के लिए समय निकालें 

किसी कार्यक्रम को करने की ठान लें तो पीछे नहीं हटें


दसो दिशाओं में जाएं दल बादल से छा जाएं , उमड़ घुमड़  कर इस धरती पर नंदनवन सा लहराएं ।


इसके अतिरिक्त आचार्य जी ने भैया मोहन जी की पुत्री काव्या बिटिया की चर्चा क्यों की मौर्य जी का क्या प्रसंग है जानने के लिए सुनें