19.5.24

आचार्य श्री ओम शङ्कर जी का वैसाख शुक्ल पक्ष द्वादशी विक्रमी संवत् २०८१ (कालयुक्त संवत्सर ) 19 मई 2024 का सदाचार सम्प्रेषण १०२५ वां सार -संक्षेप

 प्रस्तुत है आत्मप्रभ¹ आचार्य श्री ओम शङ्कर जी का आज वैसाख शुक्ल पक्ष द्वादशी विक्रमी संवत् २०८१  (कालयुक्त संवत्सर )  19 मई 2024 का  सदाचार सम्प्रेषण 

  १०२५ वां सार -संक्षेप

¹ स्वयं प्रकाशवान् 


हम लोग संसारी पुरुष हैं लेकिन संसार में  स्व और पर के विवेक के साथ जो सामञ्जस्य स्थापित करता है वही सार है यही संबन्धों का संसार कहलाता है  जिसके संबन्ध व्यापक हो जाते हैं वे वसुधैव कुटुम्बकम् की भाषा बोलते हैं जिनके सम्बन्ध संकुचित हो जाते हैं वे संतुष्ट नहीं रहते हैं और अनेक दुर्व्यसनों में लिप्त हो जाते हैं 

हम घोर कलियुग में रह रहे हैं कलियुग का वर्णन करते हुए गोस्वामी तुलसीदास कहते हैं 


कलिमल ग्रसे धर्म सब लुप्त भए सदग्रंथ।

दंभिन्ह निज मति कल्पि करि प्रगट किए बहु पंथ॥97 क॥


कलियुग के पापों ने सारे धर्मों को ग्रस लिया, अच्छे ग्रंथ लुप्त हो गए, दम्भी लोगों ने अपनी बुद्धि से कल्पना करते करते बहुत सारे पंथ प्रकट कर दिए


कोई कहता यह ठीक है कोई कहता जो हम कह रहे हैं वही ठीक


लोभ और मोह ने दुर्दशा कर रखी है 


भए लोग सब मोहबस लोभ ग्रसे सुभ कर्म।

नारि बिबस नर सकल गोसाईं। नाचहिं नट मर्कट की नाईं॥

सूद्र द्विजन्ह उपदेसहिं ग्याना। मेल जनेऊ लेहिं कुदाना॥1॥



हे गोसाईं! सारे नर नारियों के  वश में दिखाई देते हैं और बाजीगर के बंदर की तरह उनके इशारों पर नाचते हैं। ब्राह्मणों को शूद्र ज्ञान का उपदेश देते हैं और गले में जनेऊ डाल बुरा दान लेते हैं


मारग सोइ जा कहुँ जोइ भावा। पंडित सोइ जो गाल बजावा॥

मिथ्यारंभ दंभ रत जोई। ता कहुँ संत कहइ सब कोई॥2॥


जिसको जो अच्छा लग जाए, वही मार्ग सही है। जो डींगें मारता है, वही ज्ञानी है। जो आडंबररत दंभरत है वही सबकी नजरों में  संत है


ऐसे भयानक कलियुग में भी हनुमान जी महाराज सतयुग का आभास करा देते हैं आचार्य जी का प्रयास रहता है कि हममें कुटुम्बत्व का अनुभव भी हो यद्यपि हम कहते तो हैं वसुधैव कुटुम्बकम् लेकिन यदि कुटुम्बत्व का अनुभव न करें तो यह कहने का अर्थ नहीं 

जिन्हें यह अनुभव हो जाता है वो वन्दनीय हैं 

सौभाग्य से हम भावनासम्पन्न युगभारती परिवार में भी इस कुटुम्बत्व का अनुभव करने वाले लोग हैं आचार्य जी परामर्श दे रहे हैं कि हम उन्हें प्रोत्साहित अवश्य करें

जैसे भैया सौरभ राय जी जिनके अपनेपन ने इतना विस्तार लिया कि वे हमारे लिए उदाहरण बन गए हैं अमेरिका में रह रहे भैया अनिल महाजन जी को पक्षाघात हो गया है और भैया सौरभ उन्हें भारत ला रहे हैं भैया सौरभ जैसे लोग सेवाधर्म के प्रतीक बन गए हैं 

इसके अतिरिक्त आचार्य जी ने भैया सर्वेश अस्थाना जी आचार्य श्री दीपक जी भैया नीरज जी शालिनी दीदी का नाम क्यों लिया जानने के लिए सुनें