20.5.24

आचार्य श्री ओम शङ्कर जी का वैसाख शुक्ल पक्ष त्रयोदशी विक्रमी संवत् २०८१ (कालयुक्त संवत्सर ) 20 मई 2024 का सदाचार सम्प्रेषण १०२६ वां सार -संक्षेप

 रहिमन निज मन की बिथा, मन ही राखो गोय। 


सुनि अठिलैहैं लोग सब, बाँटि न लैहैं कोय॥ 


प्रस्तुत है अधीतिन् ¹ आचार्य श्री ओम शङ्कर जी का आज वैसाख शुक्ल पक्ष त्रयोदशी विक्रमी संवत् २०८१  (कालयुक्त संवत्सर )  20 मई 2024 का  सदाचार सम्प्रेषण 

  १०२६ वां सार -संक्षेप

¹ खूब पढ़ा लिखा


ॐ आप्यायन्तु ममाङ्गानि वाक् प्राणश्चक्षुः श्रोत्रमथो बलमिन्द्रियाणि च सर्वाणि सर्वं ।


हे ईश ! मेरे  सारे अंग परिपूर्ण और बलवान हों,

नेत्र , कान , प्राण , वाणी , बल इन्द्रियों में महान हों।

परमेश्वर की यह अनुभूति आवश्यक है 

और इस अनुभूति के साथ 


अदीना: स्‍याम शरद: शतम् ।


भूयश्‍च शरद: शतात् ।। यजुर्वेद ३६/२४


 


हम सौ वर्ष या उससे भी अधिक समय तक अदीन होकर रहे ।

काम क्रोध लोभ मोह आदि के साथ यदि बोध बना रहता है तो यह अच्छा है बोध होने पर ये अपने में पच जाते हैं 

जिस तरह समुद्र अपने में बहुत कुछ समाहित कर लेता है ऐसे ही हमारे भगवान् राम 

समुद्र इव गाम्भीर्ये धैर्येण हिमवानिव ।।1.1.17।।


हैं जो गम्भीरता, धैर्य के साथ शक्ति विश्वास तप त्याग संयम प्रेम आत्मीयता आदि के पर्याय हैं 

परमेश्वर से प्रार्थना है भगवान् राम के इन गुणों के अंश हमारे भीतर भी प्रविष्ट हों


इन गुणों के कारण भगवान् राम का स्मरण इस सदाचार वेला के प्रारम्भ में हम लोग करते हैं 

भगवान् राम का नाम केवल जप करने के लिए नहीं है यह आधार तप करने हेतु है अर्थात् संसार के जितने भी कार्य हैं हम उन्हें तप स्वरूप मानें हम कर्म पर ध्यान देंगे तो अपनी आयु भी नहीं देखेंगे हम कर्म का उत्साह अपने भीतर भरेंगे संसार परीक्षा स्थल है यहां के हम अच्छे परीक्षार्थी बनें 


एहिं प्रतिपालउँ सबु परिवारू। नहिं जानउँ कछु अउर कबारू॥

जौं प्रभु पार अवसि गा चहहू। मोहि पद पदुम पखारन कहहू॥4॥


श्री रामचरित मानस का केवट प्रसंग हमें अत्यन्त भावुक कर देता है आचार्य जी ने बताया कि उन्हें बी ए  में  पढ़ाने वाले प्रो निशानाथ दीक्षित जी ने अपने दीनदयाल विद्यालय में 

अपने प्रवचन में अत्यन्त भावुक केवट प्रसंग लिया था इस प्रसंग से वहां उपस्थित लोगों में जो भावुक थे वे अश्रुपात करने लगे 

भावुकता आयु और संसार के अनुभव का परिणाम होती है

 आचार्य जी ने उपलब्ध ग्रंथों को पढ़ने  का परामर्श दिया अधिवेशन के लिए जागरूक होने की भी सलाह दी 

इसके अतिरिक्त आचार्य जी ने भैया जस्टिस सुरेश  गुप्त जी भैया संदीप रस्तोगी जी भैया वीरेन्द्र त्रिपाठी जी भैया प्रमोद जी भैया विनय अजमानी जी भैया मुकेश जी का नाम क्यों लिया जानने के लिए सुनें