2.5.24

आचार्य श्री ओम शङ्कर जी का वैसाख कृष्ण पक्ष नवमी विक्रमी संवत् २०८१ (कालयुक्त संवत्सर ) 2 मई 2024 का सदाचार सम्प्रेषण १००८ वां सार -संक्षेप

 प्रस्तुत है आचार्य श्री ओम शङ्कर जी का आज वैसाख कृष्ण पक्ष नवमी विक्रमी संवत् २०८१  (कालयुक्त संवत्सर )  2 मई 2024 का  सदाचार सम्प्रेषण 

  १००८ वां सार -संक्षेप


मनोबुद्ध्यहङकार चित्तानि नाहं

न च श्रोत्रजिह्वे न च घ्राणनेत्रे ।

न च व्योम भूमिर्न तेजो न वायुः



हम शरीर नहीं हैं हम मन नहीं हैं हम बुद्धि नहीं हैं तो हम क्या हैं उत्तर है 


चिदानन्दरूपः शिवोऽहं शिवोऽहम् 




चिदानन्दरूपः शिवोऽहं शिवोऽहम् ॥॥

यह अनुभूति अद्भुत है यदि  प्रतिप्रभातम् कुछ क्षणों के लिए ही हम यह अनुभूति करते हैं तो इसके परिणाम अद्वितीय हैं 

यह अनुभूति कठिन काम है लेकिन इस कठिन काम का रास्ता बहुत सरल है और वह है भक्ति 


भक्ति बेजोड़   है  अपने इष्ट के प्रति एक समर्पण भाव है भक्ति , जिससे हमारे मन में यह विश्वास उत्पन्न होता है कि इष्ट की शरण में हम सदैव सुरक्षित उत्साहित शान्त रहेंगे। आचार्य जी प्रतिदिन भक्तिपूर्वक लगकर निःस्वार्थ भाव से हमें प्रेरित करते हैं हमें ये सदाचार संप्रेषण सुनकर इनका लाभ उठाना चाहिए 

गोस्वामी तुलसीदास जी ने नवधा भक्ति बताई है 


नवधा भगति कहउँ तोहि पाहीं। सावधान सुनु धरु मन माहीं॥

प्रथम भगति संतन्ह कर संगा। दूसरि रति मम कथा प्रसंगा॥4॥

गुर पद पंकज सेवा तीसरि भगति अमान।

चौथि भगति मम गुन गन करइ कपट तजि गान॥35॥


मंत्र जाप मम दृढ़ बिस्वासा। पंचम भजन सो बेद प्रकासा॥

छठ दम सील बिरति बहु करमा। निरत निरंतर सज्जन धरमा॥

सातवँ सम मोहि मय जग देखा। मोतें संत अधिक करि लेखा॥

आठवँ जथालाभ संतोषा। सपनेहुँ नहिं देखइ परदोषा॥2॥

नवम सरल सब सन छलहीना। मम भरोस हियँ हरष न दीना॥

नव महुँ एकउ जिन्ह कें होई। नारि पुरुष सचराचर कोई॥3॥


भक्ति भाव के साथ संयुत रहती है इसमें विचार विलीन हो जाते हैं भावना प्रमुख हो जाती है कुछ लोग भक्ति का आनन्द लेते हैं और कुछ लोग संसार की युक्तियों को खोजते रहते हैं

अभक्त लोगों का जीवन कष्टकारी होता है भक्ति हर क्षेत्र में दिखाई देती है



विषया विनिवर्तन्ते निराहारस्य देहिनः।


रसवर्जं रसोऽप्यस्य परं दृष्ट्वा निवर्तते।।2.59।।

 

निराहारी अर्थात् इन्द्रियोंको विषयों से हटाने वाले  व्यक्ति के  विषय तो निवृत्त हो जाते हैं किन्तु उनके प्रति राग नहीं हटता । परन्तु  स्थितप्रज्ञ का तो रस भी परमात्मतत्त्व की अनुभूति से निवृत्त हो जाता है।

मन प्रमुख है मन को संयमित करना भक्ति के प्रभाव से  संभव हो जाता है


हमारा जिस काम में मन लगे उस काम को भक्तिपूर्वक करें परिणाम विस्मयकारी होगा भक्ति का फल आत्म -दर्शन है

भक्त दुविधा में नहीं रहता ज्ञानी दुविधा में रहता है 


ग्यान पंथ कृपान कै धारा। परत खगेस होइ नहिं बारा॥

जो निर्बिघ्न पंथ निर्बहई। सो कैवल्य परम पद लहई॥1॥

इसके अतिरिक्त आचार्य जी ने भैया डा अजय कटियार जी भैया डा मलय जी भैया डा प्रवीण जी का नाम क्यों लिया जानने के लिए सुनें