जल से देह के ऊपरी भाग को धो लेना ही स्नान नहीं है। स्नान तो उसका नाम है, जिससे बाहरी शुद्धि के साथ साथ हम अपनी अन्तःशुद्धि भी कर लें।
प्रस्तुत है आशाजनन आचार्य श्री ओम शङ्कर जी का आज वैसाख कृष्ण पक्ष दशमी विक्रमी संवत् २०८१ (कालयुक्त संवत्सर ) 3 मई 2024 का सदाचार सम्प्रेषण
१००९ वां सार -संक्षेप
¹ आशा बढ़ाने वाला
आत्मा नदी संयम पुण्यतीर्था सत्योदकं शील तटा दयोर्मि ।
तत्राभिषेकं कुरु पाण्डुपुत्र न वारिणा शुद्धयति चान्तरात्मा ।।
आत्मा नदी है जिसमें संयम का पवित्र पावन घाट है, सत्य ही उसका जल है और शील किनारा उसके अन्दर दया की लहरें उठती रहती हैं अतः हे युधिष्ठिर! तुम उसी में गोता लगाओ, भौतिक जल से शरीर धुल जाता है अन्तःकरण नहीं धुलता।
आइये अपनी अन्तः शुद्धि के लिए और आनन्द शान्ति उत्साह विश्वास आशा प्राप्त करने के लिए मनुष्यत्व, जिसमें देवत्व को पार कर ब्रह्मत्व को पा लेने की क्षमता होती है,की अनुभूति कराने वाली शक्ति भक्ति को एक साथ पाने के लिए हम संसारी पुरुष प्रवेश करें आज की वेला में जिसमें हमें हनुमत् कृपा से भावों का विस्तार भी प्राप्त होगा
शरीर के रूप में हमें अद्भुत वाहन मिला है और शरीर का वाणी व्यवहार भी अद्भुत है अमूल्य है
स्वामी अभेदानन्दजी द्वारा लिखित मृत्यु के पार ग्रंथ के साथ ही अनेक ग्रंथों में वर्णित है कि जब शरीर मुक्त हो जाता है तो सूक्ष्म शरीर अपने आत्मीय जनों को समझाने का प्रयास करता है कि मैं मरा नहीं हूं लेकिन चूंकि उसके पास वाणी नहीं होती इस कारण उसकी बात सुनाई नहीं देती
कठिन संसार से पीछा छुड़ाकर मुक्त विचरण है
कठिन वाणी विभव से मुक्त अन्तर्भाव धारण है
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आइये प्रविष्ट हों मानस में
उत्तरकांड में कलियुग का वर्णन हो रहा है
कलिजुग सम जुग आन नहिं जौं नर कर बिस्वास।
गाइ राम गुन गन बिमल भव तर बिनहिं प्रयास ॥“
मनुष्य विश्वास करे तो कलियुग के समान दूसरा युग है ही नहीं क्योंकि इस युग में प्रभु राम के पावन गुणसमूहों को गा गाकर मनुष्य बिना परिश्रम प्रयास ही संसार रूपी सागर से तर जाता है
यह गायन भीतर गूंजने लगता है
प्रगट चारि पद धर्म के कलि महुँ एक प्रधान।
जेन केन बिधि दीन्हें दान करइ कल्यान॥१०३ ख॥
धर्म के चार चरण अर्थात् सत्य, दया, तप और दान अत्यधिक प्रसिद्ध है जिनमें कलियुग में दान रूपी चरण ही प्रधान है। जिस किसी विधि से भी दिया जाए दान कल्याण ही करता है
सत्य दया तपस्या मुश्किल हैं
इसके अतिरिक्त आचार्य जी ने महादेवी वर्मा और निराला का कौन सा प्रसंग बताया, क्या शिव दया करते हैं, आचार्य जी ने किससे पैसा नहीं लिया जानने के लिए सुनें