21.5.24

आचार्य श्री ओम शङ्कर जी का वैसाख शुक्ल पक्ष त्रयोदशी विक्रमी संवत् २०८१ (कालयुक्त संवत्सर ) 21मई 2024 का सदाचार सम्प्रेषण १०२७ वां सार -संक्षेप

 प्रस्तुत है मञ्जुघोष ¹ आचार्य श्री ओम शङ्कर जी का आज वैसाख शुक्ल पक्ष त्रयोदशी विक्रमी संवत् २०८१  (कालयुक्त संवत्सर )  21मई 2024 का  सदाचार सम्प्रेषण 

  १०२७ वां सार -संक्षेप

¹ मधुर स्वर बोलने वाला


भारतीय संस्कृति के शास्त्रोक्त नियमों की ओर उन्मुखता के साथ अद्भुत गुरु -शिष्य परम्परा पर विश्वास बनाए रखते हुए सदाचारमय विचारों को ग्रहण करने के लिए आइये प्रवेश करें आज की वेला में


शास्त्रोक्त नियमों से विमुखता हमें पीड़ा पहुंचाती है हमें उलझनों का अनुभव होता रहता है

 वेद अर्थात् ज्ञान और शास्त्र उस ज्ञान को प्राप्त करने की विधि व्यवस्था हैं 

ज्ञान के बिना हम अज्ञानी हैं अज्ञानी या तो पूर्ण निश्चिन्त होगा जैसे जड़भरत जिनका ज्ञान गुप्त ऊष्मा की तरह भीतर दबा पड़ा था या बहुत बोझ से लदा होगा

हम बहुत से झंझावातों में घिरे हुए हैं ऐसे में उल्लसित मन हमें कमजोरी का अनुभव नहीं होने देता

मन के विषय में कहा जाता है 

मन एव मनुष्याणां कारणं बन्धमोक्षयोः। बन्धाय विषयासक्तं मुक्त्यै निर्विषयं स्मृतम्॥ 

भगवान् से प्रार्थना करें कि मेरा मन बुद्धि शरीर सब पुष्ट रहें


मानस में शिव जी गरुड़ जी को कागभुषुण्डी जी के पास जाने का परामर्श देते हैं रामकथा सुनकर पक्षिराज आनन्दित हो गए  उन्होंने यह भी जाना कि कागभुषुण्डी जी को कौवे का शरीर कैसे मिला


वहां का वातावरण अत्यन्त आनन्दित कर रहा था  राम कथा सदैव आनन्दित करती है समय का चक्र घूमता है लेकिन ज्ञान की ऊष्मा बनी रहती है भारतवर्ष की यही विशेषता है कि वह नाम और रूप से परिवर्तित नहीं होता 

मानस में कलियुग का जिस तरह वर्णन किया गया है आज भी वैसा ही दिखता है 



 पर त्रिय लंपट कपट सयाने। मोह द्रोह ममता लपटाने॥

तेइ अभेदबादी ग्यानी नर। देखा मैं चरित्र कलिजुग कर॥1॥



जो व्यक्ति पराई स्त्री में आसक्त हैं , पर और स्व का ध्यान नहीं रखते,कपट करने में चतुर हैं जो मोह, द्रोह और ममता में लिपटे हुए हैं, वे ही ब्रह्म और जीव को एक बताने वाले ज्ञानी हैं। मैंने कलियुग का यह चरित्र देखा ll

कपटी लोग सत्मार्ग पर चलने वालों को भी दिग्भ्रमित कर देते हैं 

वेदों को लांछित करने का प्रयास किया गया 

अब धीरे धीरे प्रकाश दिखाई दे रहा है  चोटी जनेऊ  तिलक पूजा ध्यान आदि पर पुनः ध्यान दिया जा रहा है 

ये सदाचार के लक्षण दिखने लगे हैं 

 आचार्य जी ने युगभारती की विधि व्यवस्था में हमारे ऊपर कोई बन्धन नहीं रखा लेकिन यह सहजता दुर्बलता में संलिप्त न हो जाए हमें यही देखना है यही इन वेलाओं का उद्देश्य भी है 

आचार्य जी ने कहा समाज में सात्विकता होनी चाहिए 

छोटी सफलताओं से दंभी न बनें इनका श्रेय परमात्मा को दें 

शौर्यप्रमंडित अध्यात्म अनिवार्य है 

इसके अतिरिक्त आचार्य जी ने कल सम्पन्न हुए उन्नाव विद्यालय के किस कार्यक्रम की चर्चा की अधिवेशन के विषय में क्या कहा जानने के लिए सुनें