24.5.24

आचार्य श्री ओम शङ्कर जी का ज्येष्ठ कृष्ण पक्ष प्रतिपदा विक्रमी संवत् २०८१ (कालयुक्त संवत्सर ) 24 मई 2024 का सदाचार सम्प्रेषण १०३० वां सार -संक्षेप

 प्रस्तुत है ज्ञान -पेयुः ¹ आचार्य श्री ओम शङ्कर जी का आज  ज्येष्ठ कृष्ण पक्ष प्रतिपदा विक्रमी संवत् २०८१  (कालयुक्त संवत्सर )  24 मई 2024 का  सदाचार सम्प्रेषण 

  १०३० वां सार -संक्षेप

¹ ज्ञान का सूर्य


संसार का धर्म है कि किसी से मिलते समय अपनी दैन्य अवस्था प्रदर्शित नहीं होनी चाहिए दैन्य विविध प्रकार का होता है भगवान् के सामने भक्त का शरणागत होना और दैन्य अवस्था में होना दोनों में अन्तर है 

युद्ध स्थल में अर्जुन मोहग्रस्त होकर युद्ध नहीं करना चाहते तो भगवान् कृष्ण उन्हें अपने विराटत्व की अनुभूति कराते हैं 


पश्य मे पार्थ रूपाणि शतशोऽथ सहस्रशः।


नानाविधानि दिव्यानि नानावर्णाकृतीनि च।।11.5।।

तो अर्जुन कहते हैं कि 

त्वमादिदेवः पुरुषः पुराण


स्त्वमस्य विश्वस्य परं निधानम्।


वेत्तासि वेद्यं च परं च धाम


त्वया ततं विश्वमनन्तरूप।।11.38।।


आप ही आदिदेव, पुराण पुरुष हैं, आप ही इस संसार के परम आश्रय हैं। निश्चित रूप से आप ही सबको जानने वाले, जानने योग्य और परमधाम हैं। अनन्त रूपों वाले  आपसे ही सारा संसार व्याप्त है।


इस विराटत्व की अनुभूति इन्द्रियों से यदि दृष्टिगोचर हो जाए तो ऐसी शरणागति आनन्दमयी होती है 

कागभुषुण्डी जी जिन्हें भी विराटत्व की अनुभूति हो चुकी थी गरुड़  जी महाराज के भ्रम को दूर करते हुए कहते हैं 



निज अनुभव अब कहउँ खगेसा। बिनु हरि भजन न जाहिं कलेसा॥

राम कृपा बिनु सुनु खगराई। जानि न जाइ राम प्रभुताई॥3॥



हे पक्षीराज गरुड़! सुनिए अब मैं आपसे अपना निजी अनुभव बताता हूँ। 

 भगवान् के भजन बिना क्लेश दूर नहीं होते हैं । प्रभु श्री रामजी की कृपा  बिना श्री रामजी की प्रभुता नहीं जानी जाती


बिनु गुर होइ कि ग्यान ग्यान कि होइ बिराग बिनु।

गावहिं बेद पुरान सुख कि लहिअ हरि भगति बिनु॥89 क॥



गुरु के बिना ज्ञान संभव नहीं वैराग्य के बिना भी संभव नहीं इसी तरह वेद और पुराण कहते हैं कि श्री हरि की भक्ति के बिना सुख नहीं मिल सकता है


बिनु बिस्वास भगति नहिं तेहि बिनु द्रवहिं न रामु।

राम कृपा बिनु सपनेहुँ जीव न लह बिश्रामु॥90 क॥

भगवान् राम की प्रभुता तो ऐसी है कि 


मरुत कोटि सत बिपुल बल रबि सत कोटि प्रकास।

ससि सत कोटि सुसीतल समन सकल भव त्रास॥91 क॥


भक्त को इस प्रकार का विश्वास होता है जो व्यवसायी होते हैं संसारी पुरुष होते हैं उन्हें विश्वास नहीं होता है वे क्यों वाले प्रश्न ज्यादा करते हैं ये प्रश्न समस्याओं की जड़  हैं 

लेकिन ये प्रश्न भक्तिपूर्ण हैं तो ये समस्याओं के समाधान हैं भक्त का भाव अद्भुत है तुलसीदास जी की भक्ति अद्भुत है साक्षात् विश्वासपूर्ण 

इस समय विश्वास की कमी दिखाई देती है आचार्य जी ये प्रसंग इसलिए लेते हैं कि हमारे  विश्वास में वृद्धि होए और इसके लिए आत्मविश्वास आवश्यक है आत्मविश्वास के लिए भगवान् की कृपा आवश्यक है अपने इष्ट पर मानसिक रूप से समर्पित होवें कार्यव्यवहार में मन लगाएं 

भगवान् से सदैव मांगें कि हमारी इन्द्रियां हमारा मन हमारे अंग परिपुष्ट हों ॐ के उच्चारण के साथ 

ॐ आदि स्वर है मन्त्र तन्त्र यन्त्र मूर्त अमूर्त बहुत कुछ है 


समाज और देश के हित हेतु कहें 



ॐ आप्यायन्तु ममाङ्गानि वाक् प्राणश्चक्षुः श्रोत्रमथो बलमिन्द्रियाणि च सर्वाणि सर्वं । 



आचार्य जी ने परामर्श दिया कि हम लेखन -योग अपनाएं


हम समाज और देश,जो हमारा ही विस्तार है,के लिए जाग्रत हों हमें जागृति का संदेश देती ये पंक्तियां 

मैं तत्व शक्ति विश्वास समस्याओं का निश्चित समाधान

मैं जीवन हूं मानव जीवन मैं सृजन विसर्जन उपादान

मैं भाव प्रभाव सुनिष्ठा हूं

धरती की प्राणप्रतिष्ठा हूं

संकट कराल संघर्ष बीच   दृढ़ धैर्य शक्ति मंजिष्ठा हूँ  

मैं  संयम शुचिता  सात्विकता संतोष सरलता मुदिता हूं

मैं गहन निशा में  चन्द्रकिरण प्रमुदित प्रभात का सविता हूं

विभु की कल्पना और अणु की अनुभूति हमारे मन में है..


असत् त्याज्य है सत् ग्राह्य है इन्हीं अभिव्यक्तियों के लिए हम अपना अधिवेशन करने जा रहे हैं जो हमारा उपलक्ष्य भी है हमें अपना लक्ष्य स्पष्ट है 


परं वैभवं नेतुमेतत् स्वराष्ट्र समर्था भवत्वाशिषा ते भृशम्


इसके अतिरिक्त आचार्य जी से आज कौन मिलने वाला है जानने के लिए सुनें