हम उदय के गीत, गति के स्वर, प्रलय के शोर भी हैं
हम गगन के मीत हैं, पाताल के प्रहरी, कभी घनघोर भी हैं
हम हलाहल पी हँसे हैं हर तिमिर काँपा यही इतिहास मेरा
मानवी जय की पताका हम, प्रभा के तूर्य धिक् यह लोभ घेरा ।
बज उठें फिर शंख मंगल आरती के झाँझ और मृदंग,
भागे मुँह छिपा तम जो घनेरा है।
उठो साथी उठो अभी सबेरा है।
उठो अब भी सबेरा है ll
प्रस्तुत है विद्या -पेयुः ¹ आचार्य श्री ओम शङ्कर जी का आज ज्येष्ठ कृष्ण पक्ष द्वितीया विक्रमी संवत् २०८१ (कालयुक्त संवत्सर ) 25 मई 2024 का सदाचार सम्प्रेषण
१०३१ वां सार -संक्षेप
¹ पेयुः =समुद्र
ये सदाचार संप्रेषण अद्भुत हैं इनसे ज्ञान प्राप्त करने हेतु विश्वास आवश्यक है इन्हें मात्र हम सुने ही नहीं अपितु अधिक लाभ लेने के लिए चिन्तन भी करें मात्र चलताऊ ढंग से सुनना पर्याप्त नहीं है यदि आत्मस्थ होकर कुछ क्षणों के लिए हम अपने भीतर प्रवेश नहीं करेंगे तो हम यूं ही संसार की समस्याओं को झेलते झालते समाप्त हो जाएंगे समस्याओं का समाधान हमारे भीतर ही है यह निश्चित रूप से सही है हमारी प्राणिक ऊर्जा हमें पता ही नहीं लगने देती कि हम अनेक व्याधियों से युक्त अत्यधिक वजन का शरीर उठाए घूम रहे हैं
प्राण जाने पर शरीर सुन्दर नहीं लगता
हमारे देश में अनेक महापुरुष हुए हैं हम सौभाग्यशाली हैं कि हमने इस देश में जन्म लिया है हमारा देश अद्भुत है आचार्य जी परामर्श दे रहे हैं कि इन महापुरुषों का जीवन हम विस्तार से पढ़ें और प्रेरणा प्राप्त करें ऐसे ही एक महापुरुष हैं भगवान् आदिशंकराचार्य जिन्हें मात्र ३२ वर्ष की आयु मिली उनकी रचनाएं पढ़कर ऐसा लगता है कि उनमें अलौकिक प्रतिभा थी l
किसी विद्वान् ने लिखा है कि उनमें प्रकांड पाण्डित्य, गम्भीर विचारशैली,प्रचंड कर्मशीलता, अगाध भगवद्भक्ति, सर्वोत्तम त्याग,अद्भुत योगैश्वर्य आदि गुणों का दुर्लभ समुच्चय था
दीनदयाल जी ने भी उन पर आधारित एक छोटी सी पुस्तिका की रचना की
लोग उन्हें अद्वैतवादी मानते हैं
आचार्य जी ने निर्वाण षटकम् की चर्चा की जिसके छहों छंद अद्भुत हैं
मनोबुद्धय्हंकार चित्तानि नाहं
श्रोत्रजिव्हे न च घ्राणनेत्रे
न च व्योमभूमिर्न तेजो न वायुः
चिदानन्दरूपः शिवोऽहं शिवोऽहम्
आचार्य जी ने परामर्श दिया कि ये सारे छंद याद कर लें इन्हें गाएं इन्हें अपनों को सुनाएं यह गायन जब भीतर प्रवेश करेगा तब हमारे ज्ञान -चक्षु खुलेंगे
शंकराचार्य भगवान् ने तो इतनी कम आयु में अनेक ग्रंथ लिख डाले
चार धार्मिक मठ दक्षिण में शृंगेरी शंकराचार्यपीठ, पूर्व में जगन्नाथपुरी में गोवर्धनपीठ, पश्चिम में द्वारिका में शारदामठ तथा उत्तर में बद्रिकाश्रम में ज्योतिर्पीठ भारत की एकात्मकता को आज भी दिग्दर्शित कर रहे हैं
हम भी अपनी भूमिका जानें परमात्मा ने किसी उद्देश्य से हमें यहां भेजा है समय की गम्भीरता को पहचानें
आचार्य जी ने परामर्श दिया कि २ जून की बैठक में अपने लखनऊ के सदस्यों को भी आमन्त्रित करें
इसके अतिरिक्त आचार्य जी ने स्पष्ट किया कि बुद्धि मलिन होने पर क्या होता है
बाहर से आने पर कौन लोटने लगा आदि जानने के लिए सु