27.5.24

आचार्य श्री ओम शङ्कर जी का ज्येष्ठ कृष्ण पक्ष चतुर्थी विक्रमी संवत् २०८१ (कालयुक्त संवत्सर ) 27 मई 2024 का सदाचार सम्प्रेषण १०३३ वां सार -संक्षेप

 प्रस्तुत है चिन्मय ¹ आचार्य श्री ओम शङ्कर जी का आज  ज्येष्ठ कृष्ण पक्ष चतुर्थी विक्रमी संवत् २०८१  (कालयुक्त संवत्सर )  27 मई 2024 का  सदाचार सम्प्रेषण 

  १०३३ वां सार -संक्षेप

¹ विशुद्ध बौद्धिकता से युक्त



ये सदाचार संप्रेषण अद्भुत हैं और उसी प्रकार हैं कि 

बूड़त कछु अधार जनु पाई॥

मानो डूबते हुए व्यक्ति को कुछ आश्रय मिल गया हो।

सदाचारमय विचारों के बीच रहकर हम डूबने से बच सकते हैं 

विधि विपरीत भलाई नाहीं

मालिन्य से दूर रहने का प्रयास करें 

आचार्य जी का प्रयास रहता है कि हम जो कार्य  करें वह समाज में एक उदाहरण बने जिस प्रकार स्वामी विवेकानन्द, रामकृष्ण परमहंस, आदि शङ्कराचार्य, गुरु गोविन्द सिंह, महाराणा प्रताप,शिवा जी महाराज आदि अनेक उदाहरण बने


सितम्बर में होने जा रहे राष्ट्रीय अधिवेशन के लिए हम सब लोग अत्यन्त उत्साहित हैं इस अधिवेशन हेतु  यात्राएं करें संपर्क करें सम्बन्ध बनाएं विचार करते रहें

हवन करते हाथ न जलें इसका ध्यान भी रखें यह उपलक्ष्य, जिसके लिए हम किसी भी परिस्थिति के आने पर अपने प्रयासों में कमी नहीं आने दे रहे हैं, हमें अपने लक्ष्य को याद दिलाता रहता है और हमारा लक्ष्य है 


जियें तो सदा इसी के लिए, यही अभिमान रहे यह हर्ष ।

निछावर कर दें हम सर्वस्व, हमारा प्यारा भारतवर्ष ।।


परं वैभवं नेतुमेतत् स्वराष्ट्रं, समर्था भवत्वाशिषा ते भृशम्॥ 



हम स्वयं जागें और जागृति का संदेश फैलाएं

 मनीषी चिन्तक विचारक कवि संसार की सांसारिकता से परे जाकर कहता है 

जगे हम, लगे जगाने विश्व, लोक में फैला फिर आलोक ।

व्योम-तम पुंज हुआ तब नष्ट , अखिल संसृति हो उठी अशोक ।।

भाव विचार और क्रिया का क्रम न टूटे इसका हम प्रयास करते रहें यही उपासना अर्थात् अपने पास बैठना है उपासना हमें अनुभूति कराती है कि 

चिदानन्द रूपः शिवोऽहं शिवोऽहम् 

यह अनुभूति अत्यन्त आवश्यक है 


आचार्य जी ने परिवार भाव को भी स्पष्ट किया हमारी संस्था युगभारती में परिवार भाव परिलक्षित होना चाहिए किसी को किसी से संकोच नहीं होना चाहिए-

स्वार्थ के आडंबर से दूर दुराग्रह से किनारा

 समाज के परिवेश पर्यावरण के चिन्तन के साथ हम प्राण पर भी ध्यान दें 

हमारे प्राण विलक्षण हैं 

प्राण अत्यन्त पवित्र हैं और आत्मा को इधर से उधर व्यवहार में लाने का आधार भी हैं  

वायु पर आसीन होकर आत्मतत्त्व विचरण संचरण करता है वह वायु शुद्ध रहे इसके लिए प्राणायाम आवश्यक है 

 इसके अतिरिक्त परम आदरणीय आचार्य जी ने 

भैया मुकेश जी भैया पुनीत जी भैया डा अमित जी भैया डा प्रदीप त्रिपाठी जी भैया मोहन जी भैया सुरेश जी भैया वीरेन्द्र जी का नाम क्यों लिया किसके हाथ में लगातार दर्द बना हुआ है २ जून की बैठक हेतु लखनऊ से कौन कौन आ रहा है भगवान् शंकराचार्य के जन्मस्थान के विषय में आचार्य जी ने क्या कहा जानने के लिए सुनें