ज्येष्ठ मास के प्रथम मङ्गलवार को आप सबको हार्दिक शुभकामनाएं
प्रस्तुत है गमक ¹ आचार्य श्री ओम शङ्कर जी का आज ज्येष्ठ कृष्ण पक्ष पञ्चमी विक्रमी संवत् २०८१ (कालयुक्त संवत्सर ) 28 मई 2024 मङ्गलवार का सदाचार सम्प्रेषण
१०३४ वां सार -संक्षेप
¹ विश्वासोत्पादक
विश्वास की ही तो कमी है इस कलियुग में
आचार्य जी इन सदाचार संप्रेषणों के माध्यम से प्रयास करते हैं कि हमारा अपने धर्म के प्रति राष्ट्र के प्रति अपनी भाषा के प्रति अपने ग्रंथों के प्रति अपने प्रति अपनों के प्रति विश्वास बढ़े
आचार्य जी यह भी प्रयास करते हैं कि विषम परिस्थितियों में भी हम अपने भावों से दूर न रहें
भाव अर्थात् चिदानन्द रूपः शिवोऽहं शिवोऽहम्
शक्ति भक्ति तत्त्व सत्त्व विश्वास को संगठित रूप में हम यदि प्रदर्शित करते हैं तो अपने निराश हताश लोगों की हिम्मत बंधती है यही हम राष्ट्रीय अधिवेशन,जो हमारी तपोवृत्ति की परीक्षा है,के माध्यम से करने जा रहे हैं
हम मुमुक्षु बनने का प्रयास भी करें
अर्थात् शरीर के रहते हुए ही मोक्ष का अनुभव करें
मोक्ष का अर्थ शरीर का मर जाना नहीं है
चाह गई चिंता मिटी, मनुआ बेपरवाह।
जिनको कछु न चाहिए, वे साहन के साह॥
साहन के साह अर्थात् राजाओं के राजा
मुमुक्षु को तत्त्व का साक्षात्कार हो जाता है
ऐसी स्थिति में प्रारब्ध कर्म का भोग शेष रहता है धृतराष्ट्र का उदाहरण हमारे सामने है लेकिन संचित और क्रियमाण कर्म उसके लिए बन्धन उत्पन्न नहीं करते
जीवनमुक्त की दो अवस्थाएं होती हैं एक समाधि दूसरी उत्थान
समाधि अवस्था में व्यक्ति ब्रह्मलीन रहता है उत्थान अवस्था में व्यक्ति
सभी व्यावहारिक कार्यों को अनासक्त भाव से करता है
कर्मण्येवाधिकारस्ते मा फलेषु कदाचन।
मा कर्मफलहेतुर्भूर्मा ते सङ्गोऽस्त्वकर्मणि।।2.47।।
आचार्य जी ने आदि शङ्कराचार्य जी के शिष्य मंडनमिश्र अर्थात्
सुरेश्वराचार्य की चर्चा की
आचार्य जी ने परामर्श दिया कि जीवन्मुक्ति विवेक पुस्तक अवश्य पढ़ें
इसके अतिरिक्त आचार्य जी ने आज हम लोगों के अपने गांव सरौंहां में होने जा रहे किस कार्यक्रम की चर्चा की
भैया अमित जी भैया पङ्कज जी की चर्चा क्यों की आचार्य जी ने ताण्डव का उल्लेख क्यों किया जानने के लिए सुनें