29.5.24

आचार्य श्री ओम शङ्कर जी का ज्येष्ठ कृष्ण पक्ष षष्ठी विक्रमी संवत् २०८१ (कालयुक्त संवत्सर ) 29 मई 2024 का सदाचार सम्प्रेषण १०३५ वां सार -संक्षेप

 प्रस्तुत है सद्विद्य ¹ आचार्य श्री ओम शङ्कर जी का आज  ज्येष्ठ कृष्ण पक्ष षष्ठी विक्रमी संवत् २०८१  (कालयुक्त संवत्सर )  29 मई 2024  का  सदाचार सम्प्रेषण 

  १०३५ वां सार -संक्षेप

¹ सुशिक्षित


सुशिक्षित मनुष्य  होना एक महत्त्वपूर्ण विलक्षण उपलब्धि है  जिसमें धीरज  धर्म शक्ति शौर्य आदि बहुत से गुण भी आवश्यक हैं यूं तो मनुष्य होना ही एक अत्यन्त महत्त्वपूर्ण उपलब्धि है उसे  'चिन्तन ' नाम की एक अद्भुत शक्ति  प्राप्त है जो अन्य जीवों को नहीं प्राप्त है  हम सनातनधर्मी हिन्दू हैं और सनातनधर्मी हिन्दू इस पार से उस पार तक की चिन्ता भी करता है और चर्चा भी 

गगन के उस पार क्या, पाताल के इस पार क्या है? क्या क्षितिज के पार? जग जिस पर थमा आधार क्या है?

अद्भुत है हमारा भारतीय जीवन दर्शन कि जहां समरभूमि में भी शिक्षा दी जाती है और वह भी अत्यन्त प्रभावकारिणी 

गीता रामायण धर्म के मानक बन गए 

हमें गर्व करना चाहिए कि हम मनुष्य हैं, भारतवर्ष में हमारा जन्म हुआ है और उसमें भी उत्तर प्रदेश में जन्म हुआ है 

कितने सौभाग्यशाली हैं हम 

घोर संकटों में घिरे होने पर भी जिस मनुष्य का धैर्य स्थिर रहे तो समझ लेना चाहिए उसे भगवान् का वरदान मिल गया है 

इसी धैर्य का हम प्रयास करें  जिसके लिए अध्यात्म के प्रति आकर्षण  अत्यन्त आवश्यक है 

वह ही कवि है जो चिन्तन करता है वेदों का रचयिता भी कवि ही है 

निर्विकल्प समाधि में स्थित परमपिता परमात्मा के मन में जब काव्यात्मक अनुभूति उत्पन्न होती है तो वह सृष्टि की रचना करता है इस प्रकार हम कह सकते हैं कि यह आनन्दपूर्ण रहस्यमय संसार एक कविता है

हम उस संसार के प्रतिनिधि हैं 



न मे मृत्यु शंका न मे जातिभेद:पिता नैव मे नैव माता न जन्म: न बन्धुर्न मित्रं गुरुर्नैव शिष्य: चिदानन्द रूप: शिवोऽहं शिवोऽहम् ॥


हमें इस तत्त्व के प्रति अनुभूति होनी चाहिए 

सोऽहं सोऽहम् 


ज्येष्ठ मास के मंगलवार अत्यन्त महत्त्वपूर्ण हैं  कल मंगलवार था और अपने गांव सरौंहां में एक अत्यन्त सफल कार्यक्रम सम्पन्न हुआ जिसमें लगभग ५० स्वजन उपस्थित हुए 

आचार्य जी ने २ जून को होने वाली बैठक के लिए कुछ परामर्श दिए 

बैठक के अन्दर प्रेम आत्मीयता की सुगंध फैलनी चाहिए 

आगामी राष्ट्रीय अधिवेशन के प्रबन्धन के लिए  केवल धन ही आवश्यक नहीं है प्रबन्धन हेतु व्यक्तियों का मानसिक उल्लास उत्साह अत्यन्त आवश्यक है 



इसके अतिरिक्त आचार्य जी ने भैया सौरभ द्विवेदी जी भैया पुनीत जी भैया अरविन्द जी की चर्चा क्यों की जानने के लिए सुनें