30.5.24

आचार्य श्री ओम शङ्कर जी का ज्येष्ठ कृष्ण पक्ष सप्तमी विक्रमी संवत् २०८१ (कालयुक्त संवत्सर ) 30 मई 2024 का सदाचार सम्प्रेषण १०३६ वां सार -संक्षेप ¹ मालाधारी

 मैं तत्व शक्ति विश्वास, 

समस्याओं का निश्चित समाधान, 

मैं जीवन हूँ मानवजीवन

मैं सृजन- विसर्जन-उपादान।


प्रस्तुत है स्रग्धर ¹ आचार्य श्री ओम शङ्कर जी का आज  ज्येष्ठ कृष्ण पक्ष सप्तमी विक्रमी संवत् २०८१  (कालयुक्त संवत्सर )  30 मई 2024  का  सदाचार सम्प्रेषण 

  १०३६ वां सार -संक्षेप

¹ मालाधारी



ये सदाचार संप्रेषण अद्भुत हैं इनको सुनने से हमें शक्ति मिलती है हम दिन भर के लिए ऊर्जस्वित हो जाते हैं हम उत्साह उल्लास से भर जाते हैं हनुमान जी की यह महती कृपा है संकटमोचक हनुमान जी महाराज इस कलियुग के जाग्रत रक्षक देव हैं जो भ्रमित पीड़ित लोगों के संकटों को,कष्टों को दूर करते हैं 

संकट कटे मिटे सब पीरा , जो सुमिरै हनुमत बलबीरा।


किष्किन्धा कांड में भगवान् राम  एक शास्त्रोक्त कथन कहते हैं 


सो अनन्य जाकें असि मति न टरइ हनुमंत।

मैं सेवक सचराचर रूप स्वामि भगवंत॥3॥


हे हनुमान ! अनन्य वही व्यक्ति है जिसकी ऐसी बुद्धि कभी नहीं टलती कि मैं सेवक हूँ और यह जड़ चेतन जगत्‌ मेरे स्वामी भगवान्‌ का स्वरूप है


सेवा धर्म परम गहनो योगिनामप्यगम्यः।

सेवा के अनेक प्रकार हैं 

पद्म पुराण का उल्लेख करते हुए आचार्य जी बताते हैं कि उसमें एक भाग में सेवा विस्तार से बताई गई है 

आचार्य जी शुद्धाद्वैत दर्शन के व्याख्याता श्री वल्लभाचार्य का उल्लेख करते हुए बताते हैं कि 

भक्ति के क्षेत्र में   महाप्रभु श्रीवल्‍लभाचार्य जी का साधन मार्ग पुष्टिमार्ग कहलाया 

सूरदास पुष्टिमार्गीय थे 

वल्लभाचार्य कहते हैं सेवा के तीन स्थान हैं 

गुरु, संत और प्रभु 

गुरु और संत की सेवा साधन है और प्रभु की सेवा साध्य 

सेवा अत्यन्त महत्त्वपूर्ण है जब सेवा  का भाव विचारों में पल्लवित होकर क्रिया में परिवर्तित होता है तो अत्यन्त आनन्ददायक होता है

हनुमान जी ने जो सेवा की वह अवर्णनीय है 

मां जानकी को खोजने का काम 

मां जानकी की सेवा करने के बाद प्रभु राम के पास आते हैं 

रामसेतु बनने के बाद अंगद सेवा करते हैं 

रावण के सम्मुख भरे दरबार में  रावण को शठ कहते हैं 


तोहि पटकि महि सेन हति चौपट करि तव गाउँ।

तव जुबतिन्ह समेत सठ जनकसुतहि लै जाउँ॥ 30॥

जौं अस करौं तदपि न बड़ाई। मुएहि बधें नहिं कछु मनुसाई॥

कौल कामबस कृपिन बिमूढ़ा। अति दरिद्र अजसी अति बूढ़ा॥


सदा रोगबस संतत क्रोधी। बिष्नु बिमुख श्रुति संत बिरोधी॥

तनु पोषक निंदक अघ खानी। जीवत सव सम चौदह प्रानी॥


अंगद सेवा कर रहे हैं मनोवैज्ञानिक रूप से रावण को हतोत्साहित कर रहे हैं 

भगवान् राम के प्रति रावण द्वारा अपमानजनक शब्द बोलने पर क्रोधित हो जाते हैं 

यह सेवा ही है सैनिक भी  सेवा करते हैं 

जब हमें सेवा में आनन्द आने लगता है तो सम्बन्ध अपने आप विकसित होने लगते हैं जिस प्रकार भैया डा सौरभ राय भैया अनिल महाजन जी की निःस्वार्थ भाव से सेवा कर रहे हैं वह एक मिसाल है 

इसके अतिरिक्त शुक्रवार को कौन भैया भारत आ रहे हैं जानने के लिए सुनें