प्रस्तुत है अवदात आचार्य श्री ओम शङ्कर जी का आज वैसाख कृष्ण पक्ष एकादशी विक्रमी संवत् २०८१ (कालयुक्त संवत्सर ) 4 मई 2024 का सदाचार सम्प्रेषण
१०१० वां सार -संक्षेप
¹ गुणी
गुणी होने के लिए हम इन सदाचार संप्रेषणों के सार, जिसे कथा कहानियों आदि के माध्यम से विस्तार दिया जाता है, को ग्रहण करने का प्रयास करें सदाचारमय विचारों को तात्विक रूप से मन मानस में संगृहीत करने का अभ्यास भी करें
साधु ऐसा चाहिए जैसा सूप सुभाय, सार-सार को गहि रहै, थोथा देई उड़ाय।
विद्या और अविद्या दोनों को जानें विद्या ज्ञान है अविद्या कर्म है अविद्या अर्थात् संसार में रहने का शिष्टाचार
जो परमात्माश्रित रहते हैं वे भौतिक क्लेशों से दूर रहते हैं उन्हें भय भ्रम नहीं सताता वे दैहिक दैविक भौतिक तापों से मुक्त रहते हैं यह अनुभूति करें कि परमात्मा हमारे भीतर भी विद्यमान है
लोभ लालच आदि से मुक्त होकर इस संसार में परमात्मसत्ता का दर्शन करें
ईशावास्यमिदं सर्वं यत्किञ्च जगत्यां जगत्।
तेन त्यक्तेन भुञ्जीथा मा गृधः कस्यस्विद्धनम् ॥
परमात्मा का सतत स्मरण आवश्यक है क्योंकि हम कलियुग में रह रहे हैं इस कलियुग में हर ओर से आ रही बाधाओं को झेलते हुए हम आत्मस्थ रहने का अभ्यास करें और सचेत भी रहें
तामस बहुत रजोगुन थोरा। कलि प्रभाव बिरोध चहुँ ओरा॥
कलियुग का प्रभाव ही ऐसा है कि तमोगुण अर्थात् लोभ मोह काम क्रोध आदि बहुत हैं एवं रजोगुण थोड़ा है , चारों ओर वैर-विरोध दिख रहा है
हमारी चाह कैसी हो?
हम सेवा में सतत लगे रहना चाहते हैं
न त्वहं कामये राज्यं न स्वर्गं नापुनर्भवम्।
कामये दुःखताप्तानां प्राणिनामार्तिनाशनम्॥
मैं अपने लिए राज्य की, स्वर्ग की अथवा मुक्ति की इच्छा नहीं करता हूंँ मैं तो मात्र यही चाहता हूंँ कि दुःख से पीड़ित प्राणियों के कष्टों का नाश हो।
आचार्य जी चाहते हैं कि हम जहां भी हैं वहां आनन्दपूर्वक अपने कर्म में रत रहें
हम बुद्धिमान् हैं और यदि बुद्धिमान् हैं तो बुद्धिमत्ता पूर्वक कार्य करें ध्यान रखें कि हम सत् और असत् के युद्ध में रत हैं युद्ध राष्ट्र और अराष्ट्र का है
इसके अतिरिक्त आचार्य जी ने भैया मुकेश जी भैया प्रकाश जी का नाम क्यों लिया पाहुल कौन हैं आदि जानने के लिए सुनें