5.5.24

आचार्य श्री ओम शङ्कर जी का वैसाख कृष्ण पक्ष द्वादशी विक्रमी संवत् २०८१ (कालयुक्त संवत्सर ) 5 मई 2024 का सदाचार सम्प्रेषण १०११ वां सार -संक्षेप

 प्रस्तुत है प्रवाच् आचार्य श्री ओम शङ्कर जी का आज वैसाख कृष्ण पक्ष द्वादशी विक्रमी संवत् २०८१  (कालयुक्त संवत्सर )  5 मई 2024 का  सदाचार सम्प्रेषण 

  १०११ वां सार -संक्षेप

¹ वक्ता


संसार विचित्र है यह हम सबको प्रभावित करता है  विकार इसका स्वभाव है इसके प्रपंचों में हम फंसे रहते हैं आइये सत्कर्मों को धर्म समझते हुए आज की सदाचार वेला में  सार असार से परिचित होने के लिए ,अभिनय में तत्त्व की खोज के लिए, ईश्वरभक्ति राष्ट्रभक्ति आत्मभक्ति की अनुभूति हेतु प्रवेश करें 



उठो जागो, जगाओ जो पड़े सोये भ्रमों भय में, 

जिन्हें विश्वास किंचित भी नहीं है नीति में नय में, 

स्वयं के आत्मप्रेमी सलिल के छींटे नयन पर दो 

कहो ' हे ! भरतवंशी कर्म अपना है जगज्जय में ' ।



 आचार्य जी परामर्श दे रहे हैं कि ईशावास्योपनिषद् के सारे छंद याद कर लें जो कुल अठारह हैं 

स्मृति में किसी भी अच्छे तत्त्व को प्रविष्ट कराना हमारे ज्ञानपक्ष को संवर्धित करता है निदिध्यासन इसे स्थायित्व प्रदान करता है 


सम्भूतिञ्च विनाशञ्च यस्तद्वेदोभयं सह।

विनाशेन मृत्युं तीर्त्वा सम्भूत्याऽमृतमश्नुते ॥


जो  व्यक्ति तत् को इस रूप में जान लेता है कि वह एक साथ जन्म और जन्म का अन्त दोनों है, वह व्यक्ति जन्म के अन्त से मृत्यु को पार कर जन्म से अमरत्व का आस्वादन करता है।

जब तक सुस्पष्ट ज्ञान न हो हमें तब तक उस पर प्रयोग नहीं करने चाहिए 

केवल स्मरण करते हुए चिन्तन करना चाहिए



हिरण्मयेन पात्रेण सत्यस्यापिहितं मुखम्‌।

तत् त्वं पूषन्नपावृणु सत्यधर्माय दृष्टये ॥



सत्य का चेहरा चमकीले सुनहरे ढक्कन से ढका हुआ है

हे पोषण करने वाले सूर्य देवता ! 

सत्य के विधान की उपलब्धि हेतु साक्षात् दर्शन हेतु आप वह ढक्कन अवश्य हटा दें


और आप अपनी किरणों को व्यूहबद्ध करते हुए व्यवस्थित करते हुए , अपने प्रकाश को एकत्र एवं पुञ्जीभूत कर लें आपका जो तेज  सबसे अधिक कल्याण करने वाला रूप है, वही रूप मैं देखता हूं।

परब्रह्म परमेश्वर संकटकाल में स्वरूप धारण करके आते हैं और नरलीला करते हुए अपने कर्मों से हमें दिशा दृष्टि देते हैं जैसे भगवान् राम जिनका जीवन अनुकरणीय है 

जिन्हें यह दिशा दृष्टि मिल जाती है वे आनन्द में रहते हैं उसी दिशा दृष्टि को पाकर कोई मन्दिर बनवा देता है कोई ग्रंथ लिख देता है ये सारे काम अच्छे हैं लेकिन उनमें लोगों को भटकना नहीं चाहिए 

आचार्य जी ने यह भी स्पष्ट किया कि अध्ययन स्वाध्याय भक्ति विचार चिन्तन मनन संयम साधना के विभिन्न स्वरूप आपने बड़े लक्ष्य को पाने की सीढ़ियां कैसे हैं 

लक्ष्य प्राप्ति हेतु सभी पर मजबूती से पैर जमाने हैं 

इसके अतिरिक्त आचार्य जी ने राष्ट्रीय अधिवेशन के विषय में क्या परामर्श दिया भैया वीरेन्द्र जी का नाम क्यों लिया   

NGO से भय का क्या अर्थ है 

जानने के लिए सुनें