कठिन संसार से पीछा छुड़ाकर मुक्त विचरण है
कठिन वाणी विभव से मुक्त अन्तर्भाव धारण है
कठिन तप त्याग सेवा साधना की जिंदगी जीना
कठिन संकल्पमयता के सहित जग आचरण भी है
प्रस्तुत है आचार्य श्री ओम शङ्कर जी का आज वैसाख कृष्ण पक्ष चतुर्दशी विक्रमी संवत् २०८१ (कालयुक्त संवत्सर ) 7 मई 2024 का सदाचार सम्प्रेषण
१०१३ वां सार -संक्षेप
सदैव चौकन्ना रहना हमारे स्वभाव में होना चाहिए सदाचार संप्रेषणों के माध्यम से जीवित जाग्रत मूर्ति आचार्य जी का प्रयास भी रहता है कि हम अपनी संकल्पमयता को विस्मृत न करें हम राष्ट्रीय भावना से ओत प्रोत रहें संघर्ष के मार्ग पर चलने के लिए तत्पर रहें शौर्य शक्ति की अनुभूति करें
खाद्याखाद्य विवेक के साथ व्याधिमन्दिर अर्थात् शरीर को सही रखें हम उद्बुद्ध हों राष्ट्र के लिए जाग्रत रहना हमारी संकल्पमयता है
वयं राष्ट्रे जागृयाम पुरोहिताः
आचार्य जी हमें इसलिए प्रेरित करते हैं कि समाज को हम ज्योतियों का वह संगठित स्वरूप दिखे जो ज्वाला के रूप में शत्रु को भयभीत करने की क्षमता रख सके
आइये प्रवेश करें आज की वेला में
हम वेदभूमि में रहते हैं वेदभूमि अर्थात् ज्ञान की भूमि
वैदिक ज्ञान हमारी संपदा है वेद अपौरुषेय है
छन्दः पादौ तु वेदस्य हस्तौ कल्पोऽथ पठ्यते
ज्योतिषामयनं चक्षुर्निरुक्तं श्रोत्रमुच्यते।
शिक्षा घ्राणं तु वेदस्य मुखं व्याकरणं स्मृतम्
तस्मात्सांगमधीत्यैव ब्रह्मलोके महीयते॥
शिक्षा,कल्प,व्याकरण,निरुक्त ,ज्योतिष, छन्द ये छः वेदांग हैं
वेद को पुरुष माना गया
छन्द को वेदों के पैर , कल्प को हाथ, ज्योतिष को नेत्र, निरुक्त को कर्ण , शिक्षा को नासिका , शब्दानुशासन अर्थात् व्याकरण को मुख कहा गया है।
इन सबका विस्तार अनेक ग्रंथों में हुआ
आचार्य जी ने वेदान्त कल्पतरु आदि बाईस ग्रंथों की ओर संकेत किया ये ग्रंथ तब लिखे गए जब ऐबक का शासन शुरु हुआ उस समय हमें अपना शौर्य प्रदर्शित करना था
याद करें वीर पृथ्वीराज चौहान को
पृथ्वीराज चौहान की सेना ने ११९१ में तराइन के प्रथम युद्ध में घुरिदों को पराजित कर दिया था तराइन का दूसरा युद्ध ११९२ में घुरिद बलों और राजपूत संघ के बीच तराइन (हरियाणा, भारत में आधुनिक तराओरी) में हुआ जिसमें आक्रमण करने वाली घुरिद सेनाओं की जीत हुई। मध्यकालीन भारत के इतिहास में इस युद्ध को व्यापक रूप से प्रमुख मोड़ के रूप में माना जाता है क्योंकि इस युद्ध से उत्तर भारत में दृढ़ता से मुस्लिम उपस्थिति स्थापित हो गई
क़ुतुबुद्दीन ऐबक दिल्ली सल्तनत का स्थापक और ग़ुलाम वंश का पहला सुल्तान था। वह ग़ौरी साम्राज्य के सुल्तान मुहम्मद ग़ौरी का एक ग़ुलाम था
गुलाम वंश खिलजी वंश आदि वंशों से घृणा होती है
यदि ज्ञान शक्ति और शौर्य से विहीन है तो पंगु है शौर्य प्रमंडित अध्यात्म आज भी आवश्यक है यही बात सुदर्शन टीवी के संपादक सुरेश चह्वाणके भी कहते हैं
वे कहीं जाते हैं तो उपहार में हथियार देते हैं
वे अपनी बात निर्भीक होकर कहते हैं
आचार्य जी ने परामर्श दिया कि इन संप्रेषणों से हमें कितना लाभ पहुंचा इसका आकलन करें
इसके अतिरिक्त आचार्य जी ने बोरियों वाला क्या प्रसंग बताया धर्म अर्थ काम मोक्ष की कैसी व्याख्या की शौर्यप्रमंडित अध्यात्म का आनन्द कैसे प्राप्त होगा जानने के लिए सुनें