प्रस्तुत है ज्ञान -धत्र आचार्य श्री ओम शङ्कर जी का आज वैसाख कृष्ण पक्ष अमावस्या विक्रमी संवत् २०८१ (कालयुक्त संवत्सर ) 8 मई 2024 का सदाचार सम्प्रेषण
१०१४ वां सार -संक्षेप
¹ ज्ञान का घर
ज्ञान की हमारे भीतर अनुभूति होने लगे कि मैं परमात्मा का अंश हूं
हम आनन्द के क्षणों को अवश्य खोजें भावपूर्ण जीवन व्यतीत करें क्योंकि भाव भक्ति का आधार होते हैं पुरुषत्व जो भक्ति शक्ति का सामञ्जस्य है की अनुभूति करें आचार्य जी नित्य यही प्रयास करते हैं हम संसारी पुरुषों में ज्ञान भक्ति विचार संयम शक्ति सूक्ष्म रूप में विद्यमान रहते हैं अद्भुत है संसार यह गतिमान रहता है न्यायवेत्ता मिथ्याज्ञान से उत्पन्न वासना को संसार कहते हैं
मेदिनीकोष के अनुसार प्रतियत्न, अनुभव और मानसकर्म संसार है
न्यायदर्शन के अनुसार वेगाख्य, स्थितिस्थापक और भावना संसार है
इस संसार में रहते हुए हम भी संसार हो जते हैं
संसार से मिलता जुलता शब्द है संस्कार
हमारे यहां बहुत सारे संस्कार हैं इन संस्कारों को हमारी शिक्षा में सम्मिलित किया गया था
शिक्षा का अर्थ ही संस्कार है बिना संस्कार की शिक्षा मिस्त्रीगिरी होती है जिस शिक्षा में संस्कार नहीं होते वह धनार्जन तो करा देगी लेकिन संतुष्टि नहीं देगी शान्ति नहीं देगी
इस ज्ञान की हमारे भीतर अनुभूति आवश्यक है अपना लक्ष्य सुस्पष्ट है उसे प्राप्त करने तक रुकें नहीं
इसके अतिरिक्त आचार्य जी ने संसार के व्यक्ति व्यक्ति में किसका प्रवेश चाहा भैया पङ्कज जी भैया अरविन्द जी का नाम क्यों लिया श्री राजेन्द्र चड्ढा जी की चर्चा क्यों हुई जानने के लिए सुनें