1.6.24

आचार्य श्री ओम शङ्कर जी का आज ज्येष्ठ कृष्ण पक्ष नवमी विक्रमी संवत् २०८१ (कालयुक्त संवत्सर ) 1 जून 2024 का सदाचार सम्प्रेषण

 पराए वे नहीं जो कोख के जाए नहीं होते, 

पराए वे सभी जो भावमय साए नहीं होते, 

जगत का प्रेम अपनापन बड़े सौभाग्य से मिलता, 

(क्योंकि)

जगत के जड़ जटिल जंजाल सबके साथ ही सोते



प्रस्तुत है ज्ञान -निदाधकर ¹ आचार्य श्री ओम शङ्कर जी का आज  ज्येष्ठ कृष्ण पक्ष नवमी विक्रमी संवत् २०८१  (कालयुक्त संवत्सर )  1 जून 2024  का  सदाचार सम्प्रेषण 

  *१०३८ वां* सार -संक्षेप

¹ निदाधकरः =सूर्य


आचार्य जी इन सदाचार संप्रेषणों के माध्यम से नित्य हमें उत्साहित उत्थित करते हैं ताकि व्याकुलता में जीवन जीने की अपेक्षा हम, जो बुद्धि से विकसित मन से जाग्रत  और साधना के द्वारा सिद्धि तक पहुंचने की प्रक्रिया में रत हैं, भाव विचार और क्रिया को राष्ट्र हेतु अर्पित करने के लिए कृतसंकल्प हैं,जो मानते हैं कि चूंकि संसार में विकार और विचार साथ साथ चलते हैं इसलिए शुद्धि का प्रयास करते रहना ही उचित है,आनन्द की अनुभूति करते हुए जीवन जिएं

ये संप्रेषण हमारे लिए हमारे परिवार, जो एक भावनात्मक प्रेमात्मक विश्वासात्मक संबन्धों का नाम है, 

 के लिए हितकर हैं हमें मनुष्यत्व की अनुभूति कराते हैं

हमारे भीतर अवस्थित तत्त्वरूप ईश्वरत्व का अनुभव कराते हैं 

 हमें इनसे लाभ लेना चाहिए 

वल्लभाचार्य जी कहते हैं 

सत् चित् और आनन्द नामक त्रिगुणात्मक शक्तियों के द्वारा सृष्टि की संरचना हुई है जड़ में सत् है मनुष्य में सत् और चित् है लेकिन परमात्मा में सत् चित् और आनन्द तीनों शक्तियां हैं अतः वह सच्चिदानन्द है

श्री रामचरित मानस हमारे लिए अत्यन्त लाभकारी है इसके अन्तिम भाग में शिव जी कहते हैं 


गिरिजा संत समागम सम न लाभ कछु आन।

बिनु हरि कृपा न होइ सो गावहिं बेद पुरान॥125 ख॥

अर्थात् 

हे गिरिजे! संत समागम जैसा दूसरा कोई लाभ नहीं है किन्तु संत समागम  श्री हरि की कृपा के बिना नहीं हो सकता, ऐसा वेदों और पुराणों में है

परमात्मा की कृपा के बिना हम अच्छे काम भी नहीं कर सकते इसलिए परमात्माश्रित रहना चाहिए 


जहँ लगि साधन बेद बखानी। सब कर फल हरि भगति भवानी॥

भगति अर्थात्  भक्ति (जैसे हरि -भक्ति, शिव -भक्ति, राष्ट्र -भक्ति) जहां संयुत है वहां लोभ लाभ अलग हो जाते हैं और जिस भक्ति में लोभ लाभ संयुत रहते हैं वह व्यापार है 



सोइ सर्बग्य गुनी सोइ ग्याता। सोइ महि मंडित पंडित दाता॥

धर्म परायन सोइ कुल त्राता। राम चरन जा कर मन राता॥1॥


जिसका मन प्रभु राम ( वे हमारे आदर्श हैं क्योंकि राम का जीवन सारी परिस्थितियों को समेट कर उसका समाधान प्रस्तुत करता है) के चरणों में लगा हुआ है, वही सर्वज्ञ,गुणी,ज्ञानी है। वही पृथ्वी का भूषण, पण्डित,दानी है। वही धर्मपरायण, कुल का रक्षक है



धन्य देस सो जहँ सुरसरी। धन्य नारि पतिब्रत अनुसरी॥

धन्य सो भूपु नीति जो करई। धन्य सो द्विज निज धर्म न टरई॥3॥



वह देश धन्य है, जहाँ मां गंगा  हैं, वह स्त्री धन्य है जो पतिव्रता है वह राजा धन्य है जो न्याय करता है और वह ब्राह्मण धन्य है जो स्वधर्म से नहीं डिगता है



 आचार्य जी ने सीता मां का धरती में समाना, अनुकूलता, द्विजत्व  आदि का अर्थ स्पष्ट किया

इसके अतिरिक्त भैया सौरभ राय भैया अनिल महाजन भैया आकाश मिश्र का नाम आचार्य जी ने क्यों लिया जानने के लिए सुनें