2.6.24

आचार्य श्री ओम शङ्कर जी का ज्येष्ठ कृष्ण पक्ष दशमी विक्रमी संवत् २०८१ (कालयुक्त संवत्सर ) 2 जून 2024 का सदाचार सम्प्रेषण १०३९ वां सार -संक्षेप ¹ सदाचारी

 प्रस्तुत है सद्वृत्त ¹ आचार्य श्री ओम शङ्कर जी का आज  ज्येष्ठ कृष्ण पक्ष दशमी विक्रमी संवत् २०८१  (कालयुक्त संवत्सर )  2 जून 2024  का  सदाचार सम्प्रेषण 

  १०३९ वां सार -संक्षेप

¹ सदाचारी


इन तात्त्विक और यथार्थपरक सदाचार संप्रेषणों से हम नित्य उत्साहित हो जाते हैं यह हनुमान जी महाराज की महती कृपा है इन संप्रेषणों का गतिशील रहना अद्भुत है हमारे लिए लाभकारी है 

भावात्मक संसार में किसी विषय की या वस्तु की गति जब बाधित होती है तो वह विकृत हो जाती है 

जहां गति नहीं वहां जीवन नहीं

हाल में ही चुनाव सम्पन्न हुए 

भैया पवन मिश्र जी की एक टिप्पणी का उल्लेख करते हुए आचार्य जी ने स्पष्ट किया कि मूर्खों का लोकतन्त्र क्या है 

संस्कारी वर्ग वोट डालने में उदासीन हो जाता है इस कारण शिक्षा अत्यन्त महत्त्वपूर्ण हो जाती है शिक्षा संस्कार है विद्या ज्ञान है 

जन्मना ब्राह्मणो ज्ञेयः संस्कारैर्द्विज उच्यते। विद्यया याति विप्रत्वं त्रिभिः श्रोत्रिय उच्यते॥ - (अत्रिसंहिता, श्लोकः १४०)



ब्राह्मण पिता के द्वारा ब्राह्मणी माता के गर्भ से उत्पन्न बालक जन्म से ब्राह्मण कहलाता है ।उपनयन आदि संस्कारों के द्वारा उस ब्राह्मण में द्विजत्व की पात्रता आ जाती है तत्पश्चात् वह    द्विज  जब  साङ्गोपाङ्ग वेद का अध्ययन/ अध्यापन करता  है और  वेद शास्त्र के मनन  चिन्तन से जब वह वैदिक सिद्धान्त के रहस्यों को भली भांति जान  लेता है तब वह विप्र कहलाता है ।  इन सब योग्यताओं से सम्पन्न पुरुष श्रोत्रिय  होता है ।

द्विज विप्र श्रोत्रिय सभी शिक्षित हैं यह कोई भी हो सकता है किसी भी कुल में जन्म लेने वाला 

और ऐसे अनेक उदाहरण हमारे सामने हैं जिसमें व्यक्ति परिश्रम से शिक्षित हुआ 

अच्छे लोग प्रशंसा के पात्र हैं लेकिन यदि उनसे भी त्रुटि होती है तो शिक्षक का धर्म है कि उस त्रुटि के बारे में उस अच्छे व्यक्ति को संकेत करे ऐसा शिक्षक गुरु है 

गुरु का अत्यन्त महत्त्वपूर्ण दायित्व होता है गुरु वशिष्ठ ने ही परामर्श दिया कि भरत के बिना ही राम को राज्य दिया जा सकता है क्यों कि यह मुहूर्त सही है अनहोनी भी गुरु ही संभालते हैं 



सुनहु भरत भावी प्रबल बिलखि कहेउ मुनिनाथ।

हानि लाभु जीवनु मरनु जसु अपजसु बिधि हाथ॥171॥

भरत का धीरज बंध जाता है किन्तु गुरुत्व के वरण के लिए कर्म का तप आवश्यक है यह कर्म की तपस्या चिन्तन मनन अभ्यास के बाद  आती है 

आचार्य जी परामर्श दे रहे हैं कि हम अपनी अपनी समीक्षा करें अपनों की समीक्षा करें 

संशोधन करें कठिनाइयों से घबराएं नहीं आगे चलते जाएं 

संसार में समस्याओं के साथ संघर्ष करें आपस में बांटें आपस में बांटने पर हल्कापन लगेगा रामकथा  इसी कारण हमें सुकून देती है कि भगवान् राम संघर्षों से घबराए नहीं उन्हें केवल अपना लक्ष्य दिखा 


रामकथा मंदाकिनी चित्रकूट चित चारु। तुलसी सुभग सनेह बन सिय रघुबीर बिहारु॥ 

इसके अतिरिक्त आचार्य जी ने भैया प्रमोद जी का नाम क्यों लिया बिजली से संबन्धित क्या प्रकरण था जानने के लिए सुनें