प्रस्तुत है भीमपराक्रम ¹ आचार्य श्री ओम शङ्कर जी का आज ज्येष्ठ शुक्ल पक्ष पञ्चमी विक्रमी संवत् २०८१ (कालयुक्त संवत्सर ) 11 जून 2024 का सदाचार सम्प्रेषण
१०४८ वां सार -संक्षेप
¹ भयानक पराक्रम वाला
पूर्णत्व की दिशा दिखाने वाले ये सदाचार संप्रेषण इस कारण भी महत्त्वपूर्ण हैं क्योंकि ये बताते हैं कि संसार केवल भौतिकता नहीं है और भौतिक विकास ही पर्याप्त नहीं है भौतिकता के सारे साधन भी हमें संतुष्ट नहीं करते अध्यात्म हमारी व्याकुलता दूर करता है
ये संप्रेषण हमें याद दिलाते हैं कि हमारा लक्ष्य क्या है
हमारा लक्ष्य है राष्ट्र -निष्ठा से परिपूर्ण समाजोन्मुखी व्यक्तित्व का उत्कर्ष
परं वैभवं नेतुमेतत् स्वराष्ट्रं
समर्था भवत्वाशिषाते भृशम् ।।३।।
सारा राष्ट्रीय चिन्तन एक ही स्थान पर जाता है मार्ग भिन्न भिन्न होते हैं
हमारा राष्ट्र एक अद्भुत जीवित जाग्रत स्वरूप है इसकी अद्भुतता उन्हें ही समझ में आती है जो देश दुनिया में घूमते रहते हैं हमारा स्वभाव राष्ट्र -भक्ति की ओर होना चाहिए
अपने परिवार के प्रति स्वदेश के प्रति हमारा अनुराग तब और बढ़ जाता है जब हम अपने भावों को पवित्र करते हैं
हम लोग अपने परिवार से लेकर देश भर में और फिर विश्व भर में इसी अनुराग को उत्पन्न करने की चेष्टा करते हैं हम कहते हैं
कृण्वन्तो विश्वम् आर्यम्
वसुधैव कुटुम्बकम्
उस अनुराग की उत्पत्ति अपने भावों से होती है और भावों की शुद्धि शिक्षा से होती है प्रेम स्नेह श्रद्धा भक्ति के सोपानों पर चलने वाली शिक्षा संस्कार है
इस संसार की सांसारिकता को यथार्थ रूप में समझने के लिए किसी व्यक्ति को स्पष्ट दृष्टि नहीं मिली तो वह उपद्रव करता रहता है उस नटखट बालक की तरह जो अपने घर में उप्रद्रव करता रहता है घर के लोग परेशान रहते हैं उसी तरह देश के नागरिकों का हाल है
कुलद्रोहियों से इतर यहां के नागरिक इस देश को अपना घर परिवार मानकर अपने पूर्वजों के प्रति कृतज्ञता दर्शाते हुए उनसे मार्गदर्शन प्राप्त करते हैं और देश के विकास हेतु अपने श्रम अपनी शक्ति समर्थता को समर्पित करते हैं
शिक्षा इसी कारण महत्त्वपूर्ण हो जाती है पाठ्यक्रम से इतर शिक्षा पर हमें विचार करने की आवश्यकता है
आचार्य जी ने बहुत व्यवस्थित ढंग से संपादित पं दीनदयाल जी के भाषणों पर आधारित एक पुस्तक
राष्ट्र जीवन की एक दिशा की चर्चा की
आचार्य जी ने यह भी स्पष्ट किया कि शिक्षा का कलेवर क्या है और शिक्षा का प्राण क्या है
इस प्राणिक ऊर्जा को हम यदि समझना चाहते हैं तो हमें अध्ययन स्वाध्याय करना होगा परस्पर का संपर्क करना होगा
शिक्षा के कारण समस्याएं उत्पन्न होती हैं लेकिन उनका समाधान भी शिक्षा में ही है
यदि सुशिक्षित समाज होता तो चुनावों में वह सही पार्टी को चुनता
सुशिक्षित समाज ही शासन प्रशासन को सही सुझाव देने में सक्षम है
समाज को सुशिक्षित करने में हमारी सक्रियता आवश्यक है
आचार्य जी कहते हैं शिक्षक में आत्मीयता विकसित होनी चाहिए
वैसे तो शिक्षक में माता पिता और गुरु का समन्वय होता है
इसके अतिरिक्त आचार्य जी ने श्री हरमेश जी का नाम क्यों लिया भैया पुनीत जी का उल्लेख क्यों हुआ जानने के लिए सुनें