कवन सो काज कठिन जग माहीं। जो नहिं होइ तात तुम्ह पाहीं॥
राम काज लगि तव अवतारा। सुनतहिं भयउ पर्बताकारा॥3॥
प्रस्तुत है रुधिराशन -रिपु ¹ आचार्य श्री ओम शङ्कर जी का आज ज्येष्ठ शुक्ल पक्ष षष्ठी विक्रमी संवत् २०८१ (कालयुक्त संवत्सर ) 12 जून 2024 का सदाचार सम्प्रेषण
१०४९ वां सार -संक्षेप
¹ रुधिराशनः =राक्षस
हमारे सद्ग्रन्थों जैसे श्रीमद्भगवद्गीता श्रीरामचरित मानस के समान ही हम लोगों के परिवेश में उपस्थित अत्यन्त प्रभावशाली इन सदाचार संप्रेषणों की सन्निधि भी हमारे भावों को उद्दीप्त करती है भावावेग अद्भुत है यह भावावेग हमारा भगवान् के आधार में भी हो सकता है और राष्ट्र एवं समाज के आधार में भी हो सकता है हमें संस्कृत करने वाले परिवेश से इतर एक परिवेश ऐसा भी होता है जो हमें विकृत कर सकता है हमें ऐसे परिवेश से बचना चाहिए
युद्धस्थल में सेनाएं आमने सामने हैं
पाञ्चजन्यं हृषीकेशो देवदत्तं धनंजयः।
पौण्ड्रं दध्मौ महाशङ्खं भीमकर्मा वृकोदरः।।1.15।।
लेकिन युद्धस्थल में विरोध में खड़े स्वजनों को देखकर अत्यन्त संवेदनशील अर्जुन व्याकुल हो जाता है
वह भीतर तक हिल जाता है
तत्रापश्यत्स्थितान्पार्थः पितृ़नथ पितामहान्।
आचार्यान्मातुलान्भ्रातृ़न्पुत्रान्पौत्रान्सखींस्तथा।।1.26।।
सञ्जय उवाच
तं तथा कृपयाऽविष्टमश्रुपूर्णाकुलेक्षणम्।
विषीदन्तमिदं वाक्यमुवाच मधुसूदनः।।2.1।।
संजय ने कहा -- इस प्रकार करुणा एवं विषाद से अभिभूत अत्यन्त व्याकुल अश्रुपूरित नेत्रों वाले अर्जुन से भगवान् यह बोले
कुतस्त्वा कश्मलमिदं विषमे समुपस्थितम्।
अनार्यजुष्टमस्वर्ग्यमकीर्तिकरमर्जुन।।2.2।।
मित्र आत्मीय सहयोगी श्रीकृष्ण समझाते हैं ज्ञान -चक्षु बन्द किए अर्जुन को कि
इस विषम अवसर पर तुम्हें यह कायरता कहाँ से मिली जो श्रेष्ठ पुरुष नहीं दिखाते
इस कायरता से न तो स्वर्ग मिलता है और न कीर्ति
भगवान् कृष्ण की अवहेलना की तरह भगवान् राम की भी अवहेलना हुई
किष्किन्धा कांड में
को तुम्ह स्यामल गौर सरीरा। छत्री रूप फिरहु बन बीरा ॥
कठिन भूमि कोमल पद गामी। कवन हेतु बिचरहु बन स्वामी॥4॥
प्रभु पहिचानि परेउ गहि चरना।
हनुमान जी पैरों पर गिर गए
क्योंकि ये शिव का स्वरूप हैं हनुमान जी शिव का अवतार हैं और अर्जुन इन्द्र का स्वरूप हैं दोनों में अन्तर है
शिव बहुत जल्दी ज्ञान से सम्पन्न हो जाते हैं इन्द्र बहुत भ्रमित रहते हैं
अर्जुन प्रश्न पर प्रश्न करते रहते हैं
किं तद्ब्रह्म किमध्यात्मं किं कर्म पुरुषोत्तम।
अधिभूतं च किं प्रोक्तमधिदैवं किमुच्यते।।8.1।।
ब्रह्म,अध्यात्म, कर्म अधिभूत अधिदैव अधियज्ञ आदि क्या हैं?
भगवान् समझाते चले जाते हैं
हम गीता मानस का अध्ययन करें इनके प्रसंगों में प्रवेश करें
हम कमाऊ machine न बनकर मनुष्य बनें
इसके अतिरिक्त शून्य से शिखर कैसे बनता है भैया प्रमोद जी का नाम आचार्य जी ने क्यों लिया जगद्गुरु रामभद्राचार्य जी का उल्लेख क्यों हुआ आचार्य जी ने कितने विद्यालयों में पढ़ाया है आदि जानने के लिए सुनें