सभी देशानुरागी बन्धु-भगिनी जागकर सोचें,
मिटाएँ कालिमा अपनी न दर्पण को रगड़ पोछें,
रही गलती स्वयं की क्या कहाँ कब चूक कर बैठे,
भविष्यत् के लिए सन्नद्ध हों मत बाल अब नोचें।
प्रस्तुत है आत्मम्भरि -रिपु ¹ आचार्य श्री ओम शङ्कर जी का आज ज्येष्ठ शुक्ल पक्ष अष्टमी विक्रमी संवत् २०८१ (कालयुक्त संवत्सर ) 14 जून 2024 का सदाचार सम्प्रेषण
१०५१ वां सार -संक्षेप
¹ आत्मम्भरि =स्वार्थी
युगभारती का यश हर दिशा में फैल रहा है युगभारती युगों से चली आ रही भारतीय जीवन दर्शन,भारतीय चैतन्य
जिस दिन सबसे पहले जागे,
नव- सृजन के स्वप्न घने,
जिस दिन देश-काल के दो-दो,
विस्तृत विमल वितान तने,
जिस दिन नभ में तारे छिटके,
जिस दिन सूरज-चांद बने,
तब से है यह देश हमारा,
यह अभिमान हमारा है।
की परम्परा है
इसी भाव को लेकर स्वामी विवेकानन्द ने शिकागो में उल्लेखनीय विश्व धर्म सभा में विश्वासपूर्वक कहा था कि आज भी भारत संपूर्ण विश्व को दिशा देने में सक्षम है उद्यत है जब कि भारत में निर्धनता का तांडव चल रहा था
इसी निर्धनता को देखकर इसे मिटाने के लिए विवेकानन्द ने बार बार जन्म लेने की कामना की मोक्ष की इच्छा नहीं की
इस परम्परा का परिपालन करते हुए अनगिनत उतार चढ़ाव आए हम भ्रमित हुए
हम भ्रमित हुए अस्ताचल वाले देशों को जब देखा
अरुणाचल की छवि बनी नयन मे धुँधली कंचन रेखा
उस भ्रम में हम रस्सी में सांप देखने लगे
भौतिकवादी आज भी भ्रमित भयभीत हैं
लेकिन महापुरुषों की एक लम्बी शृङ्खला भी पनपती चली गई जिसने हमारा भ्रम भय दूर करने का प्रयास किया
पं दीनदयाल जी भी ऐसे ही महापुरुष थे
कष्टों में बीता उनका जीवन हमारे सामने स्पष्ट है लेकिन मन से वे सदैव परिपुष्ट रहे ऐसे महापुरुष की जयचंदों ने मिलकर हत्या कर दी
आज भी उनकी हत्या को रहस्यमय परिस्थितियों में हुई मृत्यु बताया जाता है
हम लोग उस आग को संजोए हुए हैं ऐसी अनगिनत चिङ्गारियां हम लोगों के अन्तःकरण में हैं
दीनदयाल जी की मृत्यु के उपरान्त हमारे विद्यालय का निर्माण हुआ जो भावनाओं की अभिव्यक्ति थी
बूजी ने दीनदयाल की परम्परा को परिपोषित करने का संकल्प लिया
उस परिपोषण के संकल्प का विग्रह है हमारे विद्यालय का भवन
आदरणीय रज्जु भैया ने आचार्य श्री चन्द्रपाल जी को आदरणीय भाउराव जी ने आचार्य श्री शेंडे जी को और आदरणीय अशोक सिंघल जी ने आचार्य श्री ओम शङ्कर जी को कार्यभार सौंपा
जब आपातकाल लागू हुआ तो विद्यालय शैशवावस्था में था आचार्य जी ने उस समय एक पुस्तक लिखी थी युगपुरुष
विद्यालय को मान्यताएं मिलती गईं सन् १९८१ में इंटर का पहला बैच बैठा
भारतवर्ष की परम्परा का सिलसला बना रहे इस कारण युगभारती (पूर्व में तरुणभारती )का जन्म हुआ
महापुरुषों से सम्बन्ध बना रहा वह सिलसिला आजतक टूटा नहीं है
आचार्य जी भी उसी परम्परा के वाहक हैं
कि जब तक इस देश का एक कुत्ता भी भूखा है मैं (विवेकानन्द ) बार बार जन्म लूं
भूखे का अर्थ पेट की आग नहीं
इसका अर्थ है हमारा मान सम्मान शक्ति भक्ति कौशल हमारा अपना हो
शिक्षा स्वास्थ्य स्वावलंबन सुरक्षा हमारे कार्य करने के आधारभूत बिन्दु हैं इन्हें आदर्श के रूप में प्रस्तुत करने के लिए हम उद्यत हुए हैं ऐसे और विद्यालय हो जाएं तो हमारे जीवन का वे अमृत कुंड बन जाएंगे
यूं तो विद्यालयों में नौकरी की शिक्षा दी जाती है जीवन जीने की शिक्षा नहीं दी जाती
हमें ऐसे विद्यालयों को स्थापित करने की आवश्यकता है जो जीवन जीने की भी शिक्षा दें जो जीवनव्रती
विचारवान संकल्पी स्वदेशभक्त तैयार करें
आचार्य जी ने बताया कि
वेद उपनिषद् आरण्यक आदि हमारे शिक्षा के आधार में होने चाहिए
हम लक्ष्य प्राप्ति तक रुकें नहीं
इसके अतिरिक्त आचार्य जी ने भैया पुनीत जी भैया शुभेन्द्र जी का नाम क्यों लिया जानने के लिए सुनें