16.6.24

आचार्य श्री ओम शङ्कर जी का ज्येष्ठ शुक्ल पक्ष दशमी विक्रमी संवत् २०८१ (कालयुक्त संवत्सर ) 16 जून 2024 का सदाचार सम्प्रेषण १०५३ वां सार -संक्षेप

 प्रस्तुत है  न्यूङ्ख ¹ आचार्य श्री ओम शङ्कर जी का आज  ज्येष्ठ शुक्ल पक्ष दशमी विक्रमी संवत् २०८१  (कालयुक्त संवत्सर )  16 जून 2024  का  सदाचार सम्प्रेषण 

  १०५३ वां सार -संक्षेप

¹ प्रिय


अत्यन्त प्रिय और अत्यन्त प्रभावशाली इन सदाचार संप्रेषणों से हम सदाचारमय विचार ग्रहण करते हैं स्वदेश और समाज हेतु उद्यत होने की प्रेरणा पाते हैं ये विचार हमें बताते हैं कि स्वदेश -प्रेम प्रदर्शन में न होकर आत्मदर्शन में होता है तत्त्वों से परिपूर्ण ज्ञानवर्धक विचारों का यह परिवेश अद्भुत है जो हमें नित्य संस्कारित करता है  पश्चिमी ईर्ष्यालु भौतिक चिन्तन से हमें दूर करता है 

आजकल आचार्य जी शिक्षा,जो अत्यन्त गहन गम्भीर विषय है,का आधार लेकर हमें उद्बोधित कर रहे हैं 

शिक्षा हेतु हमें गहन चिन्तन और अध्ययन स्वाध्याय करने की आवश्यकता है 

शिक्षा जिनके भीतर प्रविष्ट नहीं है वे अत्यन्त …

प्रस्तुत है  न्यूङ्ख ¹ आचार्य श्री ओम शङ्कर जी का आज  ज्येष्ठ शुक्ल पक्ष दशमी विक्रमी संवत् २०८१  (कालयुक्त संवत्सर )  16 जून 2024  का  सदाचार सम्प्रेषण 

  १०५३ वां सार -संक्षेप

¹ प्रिय


अत्यन्त प्रिय और अत्यन्त प्रभावशाली इन सदाचार संप्रेषणों से हम सदाचारमय विचार ग्रहण करते हैं स्वदेश और समाज हेतु उद्यत होने की प्रेरणा पाते हैं ये विचार हमें बताते हैं कि स्वदेश -प्रेम प्रदर्शन में न होकर आत्मदर्शन में होता है तत्त्वों से परिपूर्ण ज्ञानवर्धक विचारों का यह परिवेश अद्भुत है जो हमें नित्य संस्कारित करता है  पश्चिमी ईर्ष्यालु भौतिक चिन्तन से हमें दूर करता है 

आजकल आचार्य जी शिक्षा,जो अत्यन्त गहन गम्भीर विषय है,का आधार लेकर हमें उद्बोधित कर रहे हैं 

शिक्षा हेतु हमें गहन चिन्तन और अध्ययन स्वाध्याय करने की आवश्यकता है 

शिक्षा जिनके भीतर प्रविष्ट नहीं है वे अत्यन्त व्याकुल और भ्रमित हैं उनकी भाषा व्याकुलता बढ़ा रही है   विचित्र अबूझ वातावरण बना हुआ है लेकिन 


हमारी भावनाओं में हमेशा देश रहता है 

विचारों में हमेशा ही वही परिवेश रहता है 

किसी से करूं तुलना यह हमारा मन नहीं करता 

सदा सत्कर्म करने को हमारा देश कहता है


प्रशंसित वे नहीं जिनके खजाने स्वर्ण-पूरित हैं ,

न वे भी जो बड़ी सी चापलूसी भीड़ घूरित हैं ,

प्रशंसित वे भरत -भू पर रहे हैं और होंगे भी ,

कि जिनके कर्म हैं सेवार्थ और मानस भाव-पूरित हैं ।।


वेद, ब्राह्मण, आरण्यक, उपनिषद्, गीता, पुराण अर्थात् जो पुराना होने पर भी नया लगे और एक अर्थ यह भी कि जिसमें पुरातन आख्यान हो , ब्रह्मसूत्र,छह वेदांग आदि के प्रति हमारी रुचि जाग्रत होनी चाहिए 

इनके द्वारा हमें तेजस्वी वीर बलशाली सामर्थ्यवान् बनने की प्रेरणा मिलती है संगठन का महत्त्व हमें समझ में आता है 

इनसे मिली शिक्षा हमारे यथार्थ चिन्तन को सुस्पष्ट करती है 

संसार क्या है संसार में रहने का तात्पर्य क्या है

संस्कारी शिक्षा अत्यन्त महत्त्वपूर्ण है 


सहजं कर्म कौन्तेय सदोषमपि न त्यजेत्।


सर्वारम्भा हि दोषेण धूमेनाग्निरिवावृताः।।18.48।।

यही शिक्षा हमें बताती है कि 

हम सहज कर्म करते चलें व्याकुल न हों

यह हमें स्वस्थ रहने का संदेश देती है आत्मनिर्भर बनाती है आत्मबोधोत्सव मनाने की प्रेरणा देती है

इसके अतिरिक्त 

कौन कहता था कि पलक न झपके, भैया शुभेन्द्र भैया मनीष कृष्णा आदि का उल्लेख क्यों हुआ  विवेकानन्द क्या कहते थे  भगवान् राम के वे कौन से गुण हैं जो हमें अपनाने चाहिए

किसका हर तत्त्व उपादेय है आदि जानने के लिए सुनें